G 20 Summit in Rishikesh: लिंग-विभेद रोधी तथा भ्रष्टाचार-रोधी प्रयास: जी-20 के लिए एजेंडे का निर्धारण

G 20 Summit in Rishikesh: सामाजिक मानदंडों के परिणामस्वरूप, रूढ़िबद्ध लैंगिक सामाजिक भूमिकायें और विशिष्ट आवश्यकतायें महिलाओं के लिए गतिविधि के क्षेत्रों का निर्धारण करतीं हैं, जहाँ उन्हें भ्रष्टाचार के उच्च जोखिम का अक्सर सामना करना पड़ता है।

Update:2023-05-25 23:28 IST
G 20 Summit in Rishikesh (Pic: Social Media)

G 20 Summit in Rishikesh: जी-20 भ्रष्टाचार-रोधी कार्यसमूह की बैठक, जो इस महीने के अंत में ऋषिकेश में आयोजित की जायेगी, के महत्वपूर्ण विषयों में एक है - भ्रष्टाचार का लैंगिक आयाम। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए भ्रष्टाचार का अनुभव अलग होता है, क्योंकि वे आर्थिक और सामाजिक रूप से अधिक कमजोर होती हैं। भेदभाव के ऐतिहासिक पैटर्न पर आधारित लैंगिक शक्ति विभेद, भेदभावपूर्ण व्यवहार को बढ़ावा दे सकते हैं, जो महिलाओं को बलपूर्वक भ्रष्टाचार और शोषण के अन्य रूपों की पीड़ा देते हैं।

इसके अलावा, सामाजिक मानदंडों के परिणामस्वरूप, रूढ़िबद्ध लैंगिक सामाजिक भूमिकायें और विशिष्ट आवश्यकतायें महिलाओं के लिए गतिविधि के क्षेत्रों का निर्धारण करतीं हैं, जहाँ उन्हें भ्रष्टाचार के उच्च जोखिम का अक्सर सामना करना पड़ता है। जहां महिलाएं परिवार की प्राथमिक देखभाल करने वाली की भूमिका निभातीं हैं, वहां उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी और स्वच्छता जैसी सार्वजनिक सेवाओं की सुविधा के लिए नियमित रूप से भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। इस बात पर आम सहमति है कि भ्रष्टाचार का महिलाओं की शिक्षा के परिणामों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है और यह उनके मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ लैंगिक समानता को प्रभावित करता है, जिससे अंततः दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक प्रगति भी प्रभावित होती है।

भ्रष्टाचार-विभेद के प्रभाव को देखते हुए श्रम बाजार और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं के समावेश पर भी विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि विविधता के विस्तार और समावेश में वृद्धि से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। आईएलओ के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि 25 से 54 वर्ष की आयु-वर्ग के लोगों के बीच श्रम बल भागीदारी में लैंगिक अंतर 29.2 प्रतिशत है, जिसमें महिला भागीदारी 61.4 प्रतिशत और पुरुष भागीदारी 90.6 प्रतिशत है। भ्रष्टाचार से संबंधित कानूनों समेत उपयुक्त विधायी और संस्थागत व्यवस्थाओं को लागू करने से औपचारिक अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ सकती है।

कई अध्ययनों ने निर्विवाद रूप से स्थापित किया है कि कैसे सूचना विषमता के परिणामस्वरूप महिलाओं की ऋण सुविधा तक पहुंच सीमित हो जाती है, जिससे उनके व्यापार निवेश और रोजगार सृजन के अवसरों में कमी आती है। वित्तीय सेवाओं का डिजिटलीकरण एक समाधान हो सकता है, लेकिन पूरी दुनिया में एक बहुत स्पष्ट डिजिटल लैंगिक अंतर मौजूद है। अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, केवल 57 प्रतिशत महिलाओं की इंटरनेट तक पहुंच है, जबकि पुरुषों के लिए यह संख्या 62 प्रतिशत है। इस कारण, ई-वाणिज्य और डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से उपलब्ध असंख्य अवसरों के उपयोग करने के क्षेत्र में महिलायें गंभीर नुकसान की स्थिति में होतीं हैं।

विश्व के विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया जाता रहा है। जैसा कि यूएनओडीसी की दिसंबर 2020 में प्रकाशित 'द टाइम इज नाउ' शीर्षक रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है, लैंगिक समानता के पक्ष में किये गए कार्य, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, लेकिन इसका विपरीत भी सत्य है। वैश्विक स्तर पर, यह सहजीवी संबंध लिंग-जागरूकता और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण के लिए बड़ी संभावनाओं के द्वार खोलता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 2021 के विशेष सत्र की राजनीतिक घोषणा के माध्यम से, सदस्य देश लैंगिक आधार और भ्रष्टाचार के बीच संबंधों की अपनी समझ में सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसमें भ्रष्टाचार महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित कर सकता है और प्रासंगिक कानून, नीति विकास, अनुसंधान, परियोजनाओं और कार्यक्रमों को मुख्यधारा में सम्मिलित करके लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जैसे विचारों को भी शामिल किया गया है।

जी20 भ्रष्टाचार-रोधी कार्यसमूह (एसीडब्ल्यूजी) भ्रष्टाचार से संबंधित उभरते मुद्दों का समाधान करने में सबसे आगे रहा है। 2019 जी20 राजनेताओं की घोषणा के माध्यम से, जी20 देशों ने भ्रष्टाचार और लैंगिक आधार के बीच संबंधों पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा किए जा रहे कार्यों का स्वागत किया। जी20 एसीडब्ल्यूजी कार्ययोजना 2019-21 और 2022-24 में सदस्य देशों द्वारा निम्न के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी है - सदस्य देश लैंगिक आधार और भ्रष्टाचार के बीच संबंधों की अपनी समझ को गहरा करना जारी रखेंगे और भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रमों व नीतियों में लैंगिक आयाम को कैसे शामिल किया जा सकता है, इस पर ध्यान देते हुए संभावित कार्रवाइयों पर चर्चा करेंगे।

शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में भारत सरकार द्वारा कई पहलें की गई हैं, जिनका महिला सशक्तिकरण पर और भ्रष्टाचार के प्रति उनकी कमजोरी में कमी लाने पर गुणात्मक प्रभाव पड़ा है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) जैसी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजनाओं ने महिलाओं की आय और उनकी वित्तीय निर्णय लेने की क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि की है। जैम ट्रिनिटी, धन के सीधे अंतरण को सक्षम करने के लिए जन धन बैंक खातों, आधार के तहत प्रत्यक्ष बायोमेट्रिक पहचान और मोबाइल फोन को एकीकृत करता है। प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) ने बैंक खाता स्वामित्व में लैंगिक अंतर को प्रभावी ढंग से कम किया है - 55.6% जन धन खाते महिलाओं के पास हैं।

आधार आधारित प्रमाणीकरण और मोबाइल फिन-टेक सेवाओं के साथ, जेएएम ट्रिनिटी की महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में भूमिका महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के माध्यम से महिला उद्यमियों को अत्यधिक समर्थन मिला है। 2030 तक, अनुमानित 30 मिलियन महिलाओं के स्वामित्व वाले एमएसएमई के भारत में फलने-फूलने की उम्मीद है, जिनसे 150 मिलियन लोगों को रोजगार मिलेगा। सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) की 'वुमनिया' पहल; महिला उद्यमियों को स्थानीय सरकारी खरीदारों के साथ दूर-दराज स्थित महिला उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं को जोड़कर बाजार, वित्त और मूल्य-संवर्धन तक पहुंच प्रदान करती है। 15 जनवरी, 2023 तक, 1.44 लाख से अधिक महिला सूक्ष्म और लघु उद्यम (एमएसई) – जेम पोर्टल पर विक्रेता और सेवा प्रदाता के रूप में पंजीकृत हैं और 21,265 करोड़ रुपये के सकल व्यापारिक मूल्य (जीएमवी) के लिए 14.76 लाख से अधिक ऑर्डर पूरे किए हैं।

ऋषिकेश में जी20 भ्रष्टाचार-रोधी कार्यसमूह की बैठक में जी20 सदस्य देशों के लैंगिक संवेदनशील शासन और लैंगिक आयाम के साथ भ्रष्टाचार-रोधी सर्वोत्तम तौर तरीकों से जुड़े वैश्विक और भारतीय अनुभवों को प्रस्तुत किया जाएगा, जिनके आधार पर सदस्य देश भविष्य की पहलों के लिए विषय-वस्तु निर्धारित करेंगे।

जिन कुछ प्रश्नों पर आगे विचार-विमर्श किया जाएगा, उनमें शामिल हैं:

(क) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में नीति निर्माता; भ्रष्टाचार के लैंगिक अंतर प्रभाव को समझने की आवश्यकता तथा महिलाओं और पुरुषों की विशिष्ट चिंताओं और अनुभवों का समाधान करने वाली नीतियों को डिजाइन करने की आवश्यकता को किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं?

(ख) सरकार, शासन में महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयासों के साथ भ्रष्टाचार-रोधी नीतियों को कैसे जोड़ सकती है?

(ग) भ्रष्टाचार-रोधी उपायों में लैंगिक विश्लेषण तथा भ्रष्टाचार पर लिंग संबंधी अलग-अलग डेटा की क्या भूमिका है? भारत और विदेश के पैनल विशेषज्ञ इन मुद्दों पर व्यापक रूप से चर्चा करेंगे और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में लैंगिक संवेदनशील शासन और नीति-निर्माण के क्षेत्र में आगे का रास्ता दिखाएंगे।

(लेखिका भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में सचिव हैं।)

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