हर चीज पसंद करने वाले गणेश जी को नहीं पसंद ये चीज, गलती से भी ना चढ़ाएं चतुर्थी के दिन
2 सितंबर से देश भर में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। वैसे तो गणेश जी बहुत कोमल ह्रदय व विघ्नविनाशक है। उनको मोदक और प्रेम से अर्पित हर चीज पसंद है लेकिन फिर भी एक चीज जो गणेश जी नहीं पसंद है वो तुलसी दल है। तुलसी छोड़कर सभी चीज प्रिय हैं।
जयपुर : 2 सितंबर से देश भर में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। वैसे तो गणेश जी बहुत कोमल ह्रदय व विघ्नविनाशक है। उनको मोदक और प्रेम से अर्पित हर चीज पसंद है लेकिन फिर भी एक चीज जो गणेश जी नहीं पसंद है वो तुलसी दल है। तुलसी छोड़कर सभी चीज प्रिय हैं। पर इन सब चीजों में गणपतिजी को दूर्वा अधिक पसंद है। सफेद या हरी दूर्वा चढ़ानी चाहिए। जानें गणेश पूजा के महत्व….
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दूः+अवम्, इन शब्दों से दूर्वा शब्द बना है। ‘दूः’ यानी दूरस्थ व ‘अवम्’ यानी वह जो पास लाता है। दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है।गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम् कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है।
दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए।पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करें, परंतु मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएं।
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जैसे समिधा एकत्र बांधते हैं, उसी प्रकार दूर्वा को भी बांधते हैं। ऐसे बांधने से उनकी सुगंध अधिक समय टिकी रहती है। उसे अधिक समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं। इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं।
गणेशजी पर तुलसी कभी भी नहीं चढ़ाई जाती। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया है कि ‘गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया’ अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए।भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है।
इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं।गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल और रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।