U'Khand: उत्तरकाशी में गंगनानी मेले की धूम, जानें क्यों है मशहूर

Update:2018-02-14 13:13 IST
ganganani mela in uttarkashi

उत्तरकाशी: जिले के बड़कोट से मात्र सात किमी के फासले पर सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के उद्घाटन के बाद गंगा-यमुना नदी के तट पर गंगनानी मेला धूमधाम से चल रहा है। आज (14 फरवरी) इस मेले का आखिरी दिन है। मेले में हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल निशंक और टिहरी सांसद माला राज लक्ष्मी शाह भी आ चुके हैं।

स्थानीय भाषा में इस मेले को कुंड की जातर भी कहा जाता है। मेले के मौके पर मुख्यमंत्री ने उत्तरकाशी की जनता के लिए 83 लाख, 4 हजार 970 रुपए की योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण भी किया। मेले में जिला पंचायत सहित सभी विभाग अपने-अपने स्टॉलों के माध्यम से आम जनता को सरकार योजनाओं से रूबरू करवा रहे हैं। ये मेला यहां की धरोहर है। इसके साथ ही समूचा हिमालय और पहाड़ की नदियां विश्व धरोहर हैं।

ये है पौराणिक कथा

मेले में जो लोग दर्शन करने आ रहे हैं वह घर से ही नंगे पांव इस कुंड के लिए चलते हैं। कुंड के पानी आचमन से ही लोग अपने को पुण्यवान मानते हैं। कुंड का संबंध गंगाजल से है। बताया जाता है, कि प्राचीन समय में परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि ने इस स्थान पर घोर तपस्या की थी। हालांकि, वे गंगाजल लेने उत्तरकाशी ही जाते थे, अपितु शिव उनकी तपस्या से अभिभूत हुए और सपने में आकर कहा कि गंगा की एक धारा तपस्या स्थल पर आएगी, परन्तु जमदग्नि ऋषि ने जब कमण्डल गंगा की ओर डुबोया तो आकाशवाणी हुई और कहा कि तुम तुरन्त वापस जाओ। ऋषि वापस आकर अपने तपस्थली पर बैठ गए। प्रातःकाल भयंकर गरजना हुई। आसमान पर कोहरा छाने लगा। कुछ क्षणों में जमदग्नि ऋषि की तपस्थली पर एक जलधारा फूट पड़ी। इस धारा के आगे एक गोलनुमा पत्थर बहते हुए आया। जो आज भी गंगनाणी नामक स्थान पर विद्यमान है। तत्काल यहां पर एक कुंड की स्थापना हुई। यह कुंड पत्थरों पर नक्कासी कर बनवाया गया। जिसका अब पुरातात्विक महत्त्व है। वर्तमान में इस कुंड के बाहर स्थानीय विकासीय योजनाओं के मार्फत सीमेंट लगा दिया गया है। परन्तु कुंड के भीतर की आकृति व बनावट पुरातात्विक है। यहां पर जमदग्नि ऋषि का भी मंदिर है। लोग उक्त स्थान पर मन्नत पूरी कर रहे हैं।

गंगनानी का महत्व यह भी है कि यहां पर तीन धाराएं संगम बनाती हैं। कहती हैं कि इलाहाबाद में तो दो ही जिन्दा नदियां संगम बनाती हैं। तीसरी नदी मृत अथवा अदृश्य है यद्यपि गंगनानी में एक धारा जो जमदग्नि ऋषि की तपस्या से गंगा के रूप में प्रकट हुई। सामने वाली धारा को सरगाड़ अथवा सरस्वती कहती हैं तथा बगल में यमुना बहती है। इन तीनों का संगम गंगनानी में ही होता है। लोग उक्त दिन भी कुंड के पानी को बर्तन में भरकर घरों को ले जाते हैं। यह पानी वर्ष भर लोगों के घरों में पूजा के काम आता है।

Tags:    

Similar News