केंद्र सरकार के गठन और राज्य मंत्रिपरिषद् के विस्तार के साथ राजग में गांठ

Update:2019-06-10 13:09 IST

शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: 40 में 39 .. .. लोकसभा चुनाव में बिहार की ऐसी बड़ी जीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए मुसीबत भी खड़ी कर सकती है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के ईद संबंधित बयान, उसपर जदयू का खुल्लमखुल्ला विरोध और अंतत: अमित शाह का डैमेज कंट्रोल एक बानगी भर है। यह इशारा भर है कि बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में पड़ रही गांठ अगले साल विधानसभा चुनाव का सीन बदल सकती है। नेताओं के स्तर पर बयान तो केंद्रीय मंत्रीपरिषद के गठन और राज्य मंत्रिपरिषद के विस्तार के साथ शुरू हुए लेकिन उससे पहले चुनाव परिणाम के साथ ही भाजपा के अंदर से आवाज उठने लगी है - विधानसभा चुनाव भाजपा अकेले लड़े। उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी को छोड़ दें तो बिहार भाजपा के ज्यादातर नेता इस आवाज में बुदबुदा रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व की राह को समझे बगैर कोई खुलकर बोलना नहीं चाह रहा। गिरिराज सिंह ने भी सीधे नहीं बोला लेकिन केंद्र के कैबिनेट मंत्री की बिहार की राजग सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत टिप्पणी में कहीं न कहीं वह गूंज जरूर सुनाई दे रही थी।

जदयू-भाजपा की अलग राह के लिए निचले पायदान से आवाज

लोकसभा चुनाव के परिणामों ने दो चीजें साफ कीं। एक तो यह कि जदयू के साथ रहने पर भी राजग को मुसलमानों का वोट नहीं मिल सकता। दूसरी यह कि इस बार गांव से नरेंद्र मोदी को मौका देने की मुहिम चली। लगभग इसी संदेश को अब भारतीय जनता पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता ऊपर तक पहुंचाना चाह रहे हैं। एक आवाज कार्यकर्ताओं के स्तर से उठती हुई सुनाई दे रही है कि विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को पीछे छोड़ कर भाजपा आगे निकले। वर्षों से भाजपा से जुड़े व्यवसायी बिनोद हिसारिया कहते हैं कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दर्जनभर सीटों पर घूमने के बाद यही बात सामने आ रही थी कि जदयू के साथ रहने के बावजूद राजग को मुसलमानों का वोट नहीं मिल रहा है। बेगूसराय एक प्रमाण है, जहां भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह को हराने के लिए मुसलमानों ने राजद के मुसलमान प्रत्याशी को छोड़ वामपंथी कन्हैया कुमार को एकमुश्त वोट दे दिया। भाजपा को इसकी समीक्षा करनी चाहिए।

दूसरी तरफ, जदयू कार्यकर्ताओं को भी ऐसा लग रहा है कि बिहार की 40 में से 39 सीटों पर राजग की जीत बिहार की नीतीश कुमार सरकार के कामकाज की वजह से हुई। यानी, दोनों दलों के अंदर नीचे से यह आवाज है कि उसकी पार्टी अपने बूते पर लोकसभा चुनाव में इतना अच्छा परिणाम लाने में कामयाब रही। कार्यकर्ताओं के स्तर पर दोनों दलों में उठ रही आवाज से इतर, बड़े और पुराने नेताओं की मानें तो कार्यकर्ताओं की यह सोच गलत है, क्योंकि बिहार के परिणाम में नमो-नीतीश, दोनों की भूमिका रही। केंद्रीय मंत्री रामबिलास पासवान ने अनौपचारिक बातचीत में कहा भी है कि बिहार में लोकसभा चुनाव का परिणाम केंद्र और बिहार सरकार की विकासशील नीतियों के कारण इस तरह आया। पासवान कहते हैं कि राजग के अंदर किसी तरह की टूट या गांठ नहीं है, बस कुछ लोगों की बात का अंदाज ऐसा है कि भ्रम की स्थिति बन जा रही है।

दरअसल, अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा में निश्चित तौर पर उधेड़बुन की स्थिति है। केंद्र सरकार के गठन में जदयू को उसके हिसाब से हिस्सेदारी नहीं मिली तो बिहार में राज्य मंत्रिपरिषद के विस्तार के समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा-लोजपा के किसी एक को मंत्री नहीं बनाया। इतना कुछ होने के बावजूद उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी मुख्यमंत्री नीतीश के साथ खड़े नजर आए। एक तरफ ऐसा लग रहा है कि ‘सुमो’ नीतीश को मैनेज करने में लगे हैं तो दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि सुमो के अलावा भाजपा का कोई बड़ा नेता नीतीश के साथ विधानसभा चुनाव में उतरना नहीं चाह रहा। वैसे, बिहार भाजपा के नेताओं का साफ कहना है कि दो राहें दिख रही हैं। जिस राह पर चलने वालों का मैसेज लाउड और क्लियर राष्ट्रीय नेतृत्व तक जाएगा, उसी हिसाब से बिहार में राजग चलेगा।

एक्सपर्ट की राय : बेहतर विकल्प है साथ चलना

अरसे से बिहार की राजनीति पर रिसर्च के साथ नए लोगों को राजनीति का पाठ पढ़ा रहे ‘चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलीटिकल राइट्स एंड रिसर्च’ के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं कि गिरिराज के बयान को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। गिरिराज ने ईद को लेकर गलत टिप्पणी नहीं की, उन्होंने हिंदुओं के पर्व में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वैसी ही सक्रियता को लेकर ट्वीट किया था। भाजपा की ओर से किसी ने गिरिराज का साथ भी नहीं दिया, अमित शाह ने फटकार ही लगाई लेकिन जदयू पूरी गति से विरोध में उतर आया। जदयू प्रवक्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा में नहीं चलने और राम मंदिर निर्माण की तारीख नहीं घोषित करने पर भाजपा को घेरने के लिए उतर आए।

इसे थर्मामीटर समझिए। दोनों ही दल इसी बहाने कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मिजाज देख रहे हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। वैसे, जहां तक विधानसभा चुनाव की बात है कि जदयू का राजग में रहना भाजपा के लिए भी फायदेमंद रहेगा। जदयू का राजद के साथ रहते महागठबंधन में जाना असंभव है, हालांकि रघुवंश सिंह जैसे नेता नीतीश को न्यौता देने में पीछे नहीं रहे हैं। राजद को कांग्रेस से कोई फायदा नहीं मिला और कांग्रेस को राजद-रालोसपा से। ऐसे में जदयू अगर कांग्रेस और हम के साथ मिलकर चुनाव में उतरे तो कुछ बात बन सकती है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में वोटरों का बड़ा हिस्सा नीतीश के साथ जाएगा ही।

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