अयोध्‍या केस: एतिहासिक फैसले के बाद गोगोई की विशेष अदालत, शामिल होंगे ये   

फैसले के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई आज अयोध्या मामले में सुनवाई करने वाले जजों को डिनर देंगे। यह डिनर दिल्‍ली के ताजमान सिंह होटल में आयोजित किया गया है। डिनर में CJI के साथ जस्टिस बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस DY चन्द्रचूड़ और जस्टिस नज़ीर शामिल होंगे।

Update:2019-11-09 17:51 IST

नई दिल्‍ली: अयोध्या मामला आजतक का सबसे विवादित मामला था जिसका फैसला आज सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुनाया गया। बता दें कि फैसले के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई आज अयोध्या मामले में सुनवाई करने वाले जजों को डिनर देंगे। यह डिनर दिल्‍ली के ताजमान सिंह होटल में आयोजित किया गया है। डिनर में CJI के साथ जस्टिस बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस DY चन्द्रचूड़ और जस्टिस नज़ीर शामिल होंगे।

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फैसले की पृष्‍ठभूमि में इन जजों की प्रोफाइल पर आइए डालते हैं एक नजर-

जस्टिस रंजन गोगोई, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया

रंजन गोगोई 3 अक्टूबर 2018 को भारत के मुख्य न्यायधीश बने थे। 18 नवंबर, 1954 को जन्मे जस्टिस रंजन गोगोई ने 1978 में बार काउंसिल ज्वाइन की थी। इनके पिता केशव चंद्र गोगोई दो महीने के लिए असम के मुख्यमंत्री रहे थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और लॉ की डिग्री लेने के बाद गुवाहाटी हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। 2010 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट आए। और अगले साल वहीं चीफ जस्टिस बना दिए गए।

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रंजन गोगोई ने शुरुआत गुवाहाटी हाई कोर्ट से की, 2001 में गुवाहाटी हाई कोर्ट में जज भी बने। इसके बाद वह पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में बतौर जज 2010 में नियुक्त हुए, 2011 में वह पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने। 23 अप्रैल, 2012 को जस्टिस रंजन गोगोई सुप्रीम कोर्ट के जज बने। बतौर चीफ जस्टिस उन्‍होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक मामलों को सुना है, जिसमें अयोध्या केस, NRC, जम्मू-कश्मीर पर याचिकाएं शामिल हैं।

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जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े (एस.ए. बोबड़े)

जस्टिस एस. ए. बोबड़े नागपुर से हैं। इनके पिता अरविंद बोबड़े महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल रह चुके हैं। नागपुर यूनिवर्सिटी से बीए और एलएलबी की डिग्री हासिल की। बोबड़े ने 1978 में उन्होंने बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र को ज्वाइन किया था। इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में लॉ की प्रैक्टिस की, 1998 में वरिष्ठ वकील भी बने। साल 2000 में उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में बतौर एडिशनल जज पदभार ग्रहण किया। इसके बाद वह मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 2013 में सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज कमान संभाली। 17 नवंबर को जस्टिस रंजन गोगोई के रिटायर होने के बाद देश के अगले चीफ जस्टिस होंगे। जस्टिस एस. ए. बोबड़े 23 अप्रैल, 2021 को रिटायर होंगे।

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जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ मूल रूप से मुंबई के हैं। इनके पिता यशवंत चंद्रचूड़ देश के सबसे ज्यादा लंबे समय तक पद पर रहने वाले चीफ जस्टिस थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी से LLB करने के बाद हार्वर्ड लॉ स्कूल से वकालत की पढ़ाई की। 1998 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें सीनियर एडवोकेट का पद दिया। इसी के साथ वो एडिशनल सोलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया भी रहे। 2000 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने। इन्होंने 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट के जज का पदभार संभाला था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ दुनिया की कई बड़ी यूनिवर्सिटियों में लेक्चर दे चुके हैं। वह सबरीमाला, भीमा कोरेगांव, समलैंगिकता समेत कई बड़े मामलों में पीठ का हिस्सा रह चुके हैं।

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जस्टिस अशोक भूषण

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से आने वाले जस्टिस अशोक भूषण साल 1979 में यूपी बार काउंसिल का हिस्सा बने, जिसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस की। इसके अलावा उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में कई पदों पर काम किया और 2001 में बतौर जज नियुक्त हुए। 2014 में वह केरल हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए और 2015 में चीफ जस्टिस बने। 13 मई 2016 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में कार्यभार संभाला। 2017 में इनकी मौजूदगी वाली डिविजन बेंच ने एक पेटीशन को खारिज किया, जिसमें सिविल सर्विसेज एग्जाम में शारीरिक रूप से अक्षम कैंडिडेट्स के लिए कोशिशों की संख्या सात से बढ़ाकर दस करने की मांग की गई थी। जस्टिस भूषण ने कहा था कि फिजिकली हैंडीकैप्ड अपने आप में एक कैटेगरी है।

2015 में इनकी मौजूदगी वाली केरल हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने आदेश दिया कि पुलिस को FIR की कॉपी लगानी होगी। अगर उसकी मांग RTI में की जाती है तो, इसमें छूट तभी मिलेगी अगर संबंधित अथॉरिटी ये निर्णय ले कि FIR को RTI एक्ट से छूट मिली हुई है।

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जस्टिस अब्दुल नज़ीर

जस्टिस अब्दुल नज़ीर कर्नाटक के बेलूवाई से आते हैं। अयोध्या मामले की बेंच में शामिल जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने 1983 में वकालत की शुरुआत की। उन्होंने कर्नाटक हाई कोर्ट में प्रैक्टिस की, बाद में वहां बतौर एडिशनल जज और परमानेंट जज कार्य किया। 17 फरवरी, 2017 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज कार्यभार संभाला।

ट्रिपल तलाक

ट्रिपल तलाक मामले में इनकी बेंच ने ट्रिपल तलाक (तलाक-ऐ-बिद्दत) को गैरकानूनी घोषित करने का फैसला दिया। पांच जजों की इस बेंच में दो जजों ने ट्रिपल तलाक को बनाए रखने के पक्ष में निर्णय दिया, और तीन ने विपक्ष में। नज़ीर पक्ष में फैसला देने वाले दो जजों में से एक थे। ये उन 9 जजों की बेंच का हिस्सा भी थे जिस बेंच ने कहा था कि निजता का अधिकार यानी Right to privacy नागरिक का एक मौलिक अधिकार है।

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