Governor Vs CM: पहले भी होता रहा है राज्यपाल-राज्य सरकारों के बीच विवाद, गवर्नर के पास होते हैं ये अधिकार

Governor Vs CM: मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की सरकार ने गुरूवार को एक सख्त फैसला लेते हुए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को राज्य के कुलाधिपति के पद से हटा दिया है।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-11-11 15:10 IST

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन-राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान (photo: social media ) 

Governor Vs CM: राज्यपाल बनाम राज्य सरकार की लड़ाई का ताजा एपिसोड इन दिनों देश के एकमात्र वामपंथी राज्य केरल में देखने को मिल रहा है। दक्षिण भारत का यह राज्य राजभवन और मुख्यमंत्री दफ्तर के बीच जारी टकराव को लेकर खबरों में है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की सरकार ने गुरूवार को एक सख्त फैसला लेते हुए राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को राज्य के कुलाधिपति के पद से हटा दिया है।

दोनों के बीच पिछले कई दिनों से विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर खींचतान मची हुई थी। मामला हाईकोर्ट तक पहुंच चुका है। सीएम विजयन और राज्यपाल के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है। हालांकि, राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच ये कोई पहला विवाद नहीं है। दोनों के जटिल रिश्तों के कई उदाहरण देश के सियासी इतिहास में दर्ज हैं। केरल के अलावा इन दिनों तमिलनाडु, तेलंगाना,पश्चिम बंगाल और दिल्ली में राज्यपालों और सत्तारूढ़ सरकार के बीच टकराव है।

राज्यपाल को जब राज्य छोड़कर भागना पड़ा

1960 के दशक में जब पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार सत्ता में थी, जब धर्मवीर राज्यपाल हुआ करते थे। उस दौरान अजय मुखर्जी मुख्यमंत्री और ज्योति बसु उपमुख्यमंत्री थे। बताया जाता है कि 1969 में माकपाईयों से तंग आकर राज्यपाल ने वामपंथी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद राजधानी कोलकाता की सड़कों पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। ऐसे में राज्यपाल धर्मवीर ने जल्द से जल्द बंगाल को छोड़ना ही उचित समझा और दिल्ली जाकर अपना ट्रांसफर करा लिया।

बगल के राज्य त्रिपुरा में भी इसी तरह मार्क्सवादी सरकार और राजभवन के बीच छत्तीस का आंकड़ा चल रहा था। तब वहां के राज्यपाल रोमेश भंडारी हुआ करते थे। दोनों के बीच संबंधों में इतने तनाव आ चुके थे कि सरकार ने राजभवन का बिजली – पानी तक रोक दिया था। भंडारी को त्रिपुरा छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और वे वापस दिल्ली आ गए।

सीएम से था मनमुटाव, राज्यपाल की गाड़ी पर चले पत्थर

राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच टकराव कई बार हिंसक भी हो चुका है। इसके भी उदाहरण मौजूद हैं। तमिलनाडु की दिवंगत नेत्री जयललिता जब मुख्यमंत्री थीं तब उनके संबंध राज्यपाल डॉक्टर मर्री चन्ना रेड्डी के साथ अच्छे नहीं थे। रेड्डी के पास पुडुचेरी का अतिरिक्त कार्यभार था। रेड्डी जब पुडुचेरी जा रहे थे तो रास्ते में एआईएडीएमके यानी जललिता की पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उनकी गाड़ी पर पथराव कर दिया। वहां मौजूद पुलिस कुछ नहीं कर सकी। बताया जाता है कि अगर उस दौरान राज्यपाल के साथ मौजूद परिसहायक उनकी ढाल न बनते तो चन्ना रेड्डी को अस्पताल की सैर करनी पड़ जाती।

इसी तरह जब केशरीनाथ त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने तो उनके ऊपर सत्ताधारी टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने पत्थरबाजी कर दी। कोलकाता के राजभवन में उनका समय बेहद चुनौती पूर्ण रहा। उनके जाने के बाद जगदीप धनखड़ आए जो कि अब मौजूदा उपराष्ट्रपित हैं। धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच संबंध इस कदर बिगड़ चुके थे कि ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जब बंगाल से दोनों के बीच तूतू-मैंमैं की खबरें न आती थीं। ममता ने धनखड़ को सोशल मीडिया पर ब्लॉक तक कर दिया था। तत्तकालीन राज्यपाल को कई मौकों पर टीएमसी कार्यकर्ताओं के भारी आक्रोश का सामना करना पड़ा था।

विवाद के कुछ और किस्से

देश में जहां – जहां विपक्षी दलों की सरकार है, अक्सर वहां से राजभवन बनाम सीएम सचिवालय के बीच टकराव की खबरें आती रहती हैं। कई राज्यों में विवाद काफी अधिक बढ़ जाता है, वहीं कुछ राज्यों में आंशिक मनमुटाव का दौर जारी रहता है। उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव की कोई बड़ी घटना सामने नहीं आई है। इसी तरह बिहार से भी मनमुटाव की कोई खबर नहीं है। हालांकि, झारखंड में जरूर राज्यपाल सत्ताधारी गठबंधन के निशाने पर आ गए हैं।

वहीं, सरकार बदलने के साथ ही रिश्ते भी सामान्य हो जाते हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण है महाराष्ट्र। जहां जब तक महाविकास अघाड़ी की सरकार रही राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के साथ रिश्ते असहज रहे। यहां तक कि उद्धव सरकार ने राज्यपाल को सरकारी विमान उपलब्ध कराने तक से इनकार कर दिया था। अब जब राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ है तो राज्यपाल कोश्यारी और शिंदे सरकार के बीच रिश्ते मधुर हैं।

राज्यपालों ने कई सरकारों को किया बर्खास्त

इतिहास में कई ऐसी घटनाएं दर्ज हैं, जब राजभवन ने दिल्ली के इशारों पर बहुमत की सरकारों को बर्खास्त किया है। कई बार तो अदालत को इसमें दखल देना पड़ा था। इसकी शुरूआत सबसे पहले 1958 में केरल से ही हुई थी। जब नेहरू सरकार के इशारे पर तत्कालीन राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद की वामपंथी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद तो एक सिलसिला सा शुरू हो गया। बाद के दौर में जब भी दिल्ली में सरकार बदली उसने विरोधी दलों की राज्य सरकारों को बर्खास्त करना शुरू कर दिया। इसमें राज्यपालों की अहम भूमिका होती थी। राज्यपालों ने केंद्र के दवाब में ऐसे कृत्य भी किए, जिनकी वजह से उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ी। 1984 में टीडीपी नेता एनटी रामाराव को सीएम पद से हटाना हो या आधी रात में उत्तर प्रदेश में जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद का शपथ दिलाना ऐसे कई उदाहरण हैं, जिससे राजभवन में रहने वाले राज्य के प्रथम नागरिक की साख को बट्टा लगा।

राज्यपाल की शक्तियां

संविधान के अनुच्छेद 153 के तहत हर राज्य का राज्यपाल होगा। राज्य के राज्यपाल के पास कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायिक शक्तियां होंगी।

कार्यकारी शक्तियां – राज्यपाल, राष्ट्रपति को किसी राज्य में संवैधानिक आपातकाल लगाने की सिफारिश कर सकता है। किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल को राष्ट्रपति के एजेंट के रूप में व्यापक कार्यकारी शक्तियां हासिल होती हैं। वहीं, आम दिनों में राज्य मंत्रिपरिषद राज्यपाल के नाम पर कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करता है।

विधायी शक्तियां

राज्यपाल के समक्ष जब राज्य सरकार मनी बिल के अलावा अन्य विधेयक सहमति के लिए प्रस्तुत करती है, तो वह या तो इस विधेयक पर अपनी सहमति प्रदान करते हैं या फिर विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेज देते हैं। ऐसे में यदि सरकार गवर्नर के पास दोबारा विधेयक भेजती है तो उन्हें उसे पारित करना होता है।

वित्तीय शक्तियां

राज्यपाल, नगर पालिका और पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए हर 5 वर्ष में वित्त आयोग का गठन करता है। संविधान में प्रदत शक्तियों के मुताबिक, अप्रत्याशित खर्च को पूरा करने के लिए उनकी सिफारिश पर आकस्मिकता निधि से पैसा निकाला जा सकता है। मनी बिल केवल उनकी पूर्व सिफारिश पर ही राज्य विधानमंडल में पेश किया जा सकता है।

न्यायिक शक्तियां

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 राज्यपाल को विशेष न्यायिक शक्ति प्रदान करता है। इसके तहत किसी अपराध के लिए साबित दोषी की सजा को क्षमा करने, विराम करने अथवा परिहार करने की शक्ति गवर्नर को हासिल है।

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