झारखंड के इस मंत्री ने 35 साल तक किया ये काम, अब बन गये मिसाल

जब किसी चीज के प्रति आस्था जुड़ती है तो वो धर्म से ऊपर हो जाती है। अभी पूरे एक माह तक रमाजान का पवित्र माह चल रहा था। और  पूरी दुनिया के मुसलमान  इस रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखते हैं। इसमें कोई ताजुब्ब की बात नहीं हैं, लेकिन जब कोई हिंदू या किसी अन्य धर्म का व्यक्ति रोजा रखता है तो बात थोड़ी अलग होती है।

Update:2020-05-24 10:15 IST

रांची : जब किसी चीज के प्रति आस्था जुड़ती है तो वो धर्म से ऊपर हो जाती है। अभी पूरे एक माह तक रमजान का पवित्र माह चल रहा था। और पूरी दुनिया के मुसलमान इस रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखते हैं। इसमें कोई ताजुब्ब की बात नहीं हैं, लेकिन जब कोई हिंदू या किसी अन्य धर्म का व्यक्ति रोजा रखता है तो बात थोड़ी अलग होती है।

हम बात कर रहे हैं झारखंड के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव की जो 35 सालों से रोजा रख रहे हैं। उन्होंने एक या दो नहीं, बल्कि 35 साल तक लगातार रोज़ा रखा है। साल 1972 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी और प्रतिष्ठित पटना विश्वविद्यालय के छात्र रहे डॉ रामेश्वर उरांव कहते हैं कि उन्‍होंने इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट करने के लिए पटना विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक्स में एडमिशन लिया था।उस समय वहां के हॉस्टल में उनके दोस्त हुआ करता थे मोहम्मद इकबाल। जो पूर्णिया का रहने वाला है।

 

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मो .इकबाल उनका ऐसा दोस्त बन गया कि वह उनके साथ हर सोमवार को उपवास रखने लगा। इसी तरह समय बीतता गया और रमजान के महीना आया तो इकबाल रोज़ा रखने की तैयारी करते करते बोला कि मैं हर सप्ताह तुम्हारे लिए साल भर सोमवारी उपवास रखा,अब तुम मेरे लिए एक महीने रोजा नहीं रख सकते?

इस तरह शुरु हुई रोजा रखने की आदत

दो दोस्तों की दोस्ती का बंधन ऐसा की हमने भी रोजा रखना शुरू कर दिया। इस तरह रोजे की शुरुआत हुई और यह सिलसिला दो साल तक चला।

झारखंड के वित्त मंत्री कहते हैं कि पीजी खत्म हो जाने के बाद हम दोनों अलग-अलग हो गए। फिर 1972 बैच में IPS में सेलेक्शन के बाद 1977 में वह आरक्षी अधीक्षक (SP) बनकर चाईबासा गए। जहां मो. शरीफ उनके पास आकर रमज़ान के महीने में बतौर SP उनको निमंत्रित करना चाह रहे थे। डॉ रमेश्वर उरांव के शब्दों में, 'उस वक्त हमें लगा कि क्यों नहीं साल 1969 के बाद से रोजा रखने का सिलसिला छूट गया था उसे फिर शुरू की जाए और इस तरह 1977 से मैं पुलिस अधिकारी होते हुए भी हर साल रोजा रखने लगा। साल दर साल पूरी निष्ठा और आस्था के साथ सेहरी से लेकर इफ्तार करता, दावते इफ्तार देता और दूसरे किसी के दावते इफ्तार में भी शामिल भी होता। यह सिलसिला आईपीएस की नौकरी और बाद में सांसद बनने तक चलता रहा।

उनके अनुसार, 1977 से 2013 तक लगातार उन्होंने रोजा रखा। फिर 2014 में राष्ट्रीय जनजातीय आयोग के अध्यक्ष के रूप में लेह से लौटने के बाद शरीर मे ऑक्सीजन की कमी के चलते डॉक्टर ने रोजा नही रखने की सलाह दी और 2015 में धर्मपत्नी की निधन के बाद रोजा रखने की इच्छा नहीं हुई।

त्याग की भावना

वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव रोज़ा के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि पाक महीने में एक महीने तक रोजा रखने से त्याग की भावना इंसान के अंदर आती है। गुस्सा मन मे कम आता है और एक महीने का कष्ट इसका अहसास कराता है कि देश और दुनिया मे वैसे लोग जिनको गरीबी के चलते भूख और पानी के लिए हर दिन नियति से जूझना पड़ता गया उनको जीवन मे कितना कष्ट होता होगा।

 

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इंसानियत ही सभी धर्मों से ऊपर

35-37 साल तक रमजान के पाक महीने में पूरी तरह कायदे कानून का पालन करते हुए रोजा रखने वाले झारखंड के वित्त मंत्री कहते हैं कि मैं सरना हिन्दू आदिवासी हूं पर बुद्ध के विचार के करीब मैं खुद को मानता हूं।

1968 यानि आज से करीब 52 साल पहले पटना विश्वविद्यालय के हॉस्टल में रमज़ान महीने में रोजा रखने के लिए प्रेरित करने वाले दोस्त को इकबाल को याद करते हुए रामेश्वर उरांव कहते हैं कि कई वर्षो तक उससे बातें होती थी। फिर वह अरब देश चला गया,लेकिन उससे मुलाकात की हसरतें अभी भी है। आज के समय मे जब धार्मिक सहिष्णुता और एक-दूसरे के धर्म के प्रति आदर और प्रेम का भाव कम होता जा रहा है। ऐसे ये कहना सही है कि इंसान एक है इसलिए इंसानियत ही सभी धर्मों से ऊपर है।

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