HP News : 'मैटरनिटी लीव से इनकार, मौलिक मानव अधिकारों का उल्लंघन'...हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
Maternity Leave Is A Fundamental Human Right : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मैटरनिटी लीव को 'मौलिक मानव अधिकार' के रूप में घोषित किया है। अदालत ने एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को 'डीम्ड' मातृत्व अवकाश के लाभ के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए अपना आदेश सुनाया।
Maternity Leave Is A Fundamental Human Right : हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने मातृत्व अवकाश यानी 'मैटरनिटी लीव' को मौलिक मानव अधिकार (Fundamental Human Rights) बताया है। एक मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस तरलोक सिंह चौहान (Justice Tarlok Singh Chauhan) और जस्टिस वीरेंद्र सिंह (Justice Virendra Singh) की दो सदस्यीय बेंच ने एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को 'डीम्ड' मातृत्व अवकाश के लाभ के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
आपको बता दें, ये मामला एक प्रतिवादी से संबंधित था, जिसे प्रति वर्ष 240 दिन काम करने की न्यूनतम आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहने की वजह से लाभ नहीं मिले थे। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई अहम बातें कही। दरअसल, 1996 में प्रतिवादी ने जन्म देने के बाद तीन महीने के लिए मातृत्व अवकाश लिया था। अपनी गर्भावस्था और प्रसव के कारण, उसने एक वर्ष में आवश्यक 240 दिनों के बजाय केवल 156 दिन काम किया।
क्या है मामला?
हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (HP Administrative Tribunal) ने दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को 'डीम्ड मैटरनिटी लीव' का लाभ दिया था। इससे न्यूनतम आवश्यकता और संबंधित लाभ पूरे हुए। राज्य ने इस आदेश को मौजूदा याचिका में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने जांच के बाद विभिन्न सम्मेलनों, संधियों तथा संवैधानिक प्रावधानों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने मानवाधिकारों की 'सार्वभौम घोषणा' (Universal Declaration) के अनुच्छेद- 25 (2) का उल्लेख किया है। जिसके अनुसार, मातृत्व और बचपन दोनों 'विशेष देखभाल और सहायता' के हकदार हैं।'
'प्रत्येक महिला मातृत्व अवकाश की हकदार'
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि, 'प्रत्येक महिला चाहे उसकी रोजगार की स्थिति कुछ भी हो, मातृत्व अवकाश की हकदार है। अदालत ने कहा कि, मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) का उद्देश्य मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना और महिला तथा उसके बच्चे दोनों की भलाई सुनिश्चित करना है।'
जच्चा-बच्चा को हो सकता था खतरा
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा, 'प्रतिवादी, दैनिक वेतन भोगी महिला कर्मचारी है। गर्भवती होने के दौरान कठिन श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए था। ऐसा करने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर होता। साथ ही, उस बच्चे के लिए भी ऐसा करना ठीक नहीं था। इससे महिला को खतरा हो सकता था, जबकि होने वाले बच्चे की भलाई और विकास से भी समझौता होगा। हाई कोर्ट ने आगे कहा कि, 'प्रतिवादी के 'मौलिक मानव अधिकार' के रूप में मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकता था। जिससे याचिकाकर्ता के कार्यों को भारत के संविधान के अनुच्छेद- 29 और 39D का उल्लंघन माना जाता है।'