भूकंप से तहस नहस पूरा शहर, मिले तबाही के साक्ष्य, हिमालय खतरे में
असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित हिमबस्ती गाँव में भूकंप का पहला भूगर्भीय साक्ष्य मिला है। यह खोज से पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूंकप की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान हो सकेगी।
लखनऊ- वैज्ञानिकों को असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित हिमबस्ती गाँव में भूकंप का पहला भूगर्भीय साक्ष्य मिला है। इतिहासकारों ने इसे इस क्षेत्र में बड़े विनाश का कारण बने सदिया भूकंप के रुप में दर्ज किया है। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 1667 ईसवी में आए इस भूकंप ने सदिया शहर को पूरी तरह से तहस नहस कर दिया था।
वैज्ञानिकों को पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूकंप के भूगर्भीय साक्ष्य मिले
यह खोज पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूंकप की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान करने और उसके अनुरुप यहां निर्माण गतिविधियों की योजना बनाने में मददगार हो सकती है।
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ऐतिहासिक अभिलेखागारों में पूर्वी हिमालय क्षेत्र में अक्सर आने वाले ऐसे भूकंपों के बारे में भूवैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होने की बात कही गई है। ऐसे में ये सवाल उठना स्वाभिक था कि लाखों की आबादी वाले ऐसे क्षेत्र में आते रहे भूकंपों के बारे में कोई जानकारी अभी तक क्यों नहीं जुटाई जा सकी या इन्हें नजरअंदाज किया गया।
असम और अरुणाचल की सीमा पर मिला भूकंप का पहला भू-गर्भीय साक्ष्य
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST ) के तहत एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG) के वैज्ञानिकों ने अरुणाचल प्रदेश के हिमबस्ती गाँव के उस क्षेत्र में उत्खनन किया जहाँ 1697 में सादिया भूकंप आने के ऐतिहासिक साक्ष्य मिले हैं। उत्खनन में प्राप्त इन साक्ष्यों का आधुनिक भूवैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से विश्लेषण किया गया।
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अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि इस क्षेत्र में जमीन के नीचे चट्टानें खिसकने से आए भूकंप के निशान नदियों और झरनों के पास सतह के उपर जमा भूगर्भीय पदार्थों के रूप में मौजूद हैं। इस बारे में और गहन अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने यहां उत्खनन स्थल से इक्कीस रेडियोकार्बन नमूने इकठ्ठा किए।
पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूंकप की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करेगी खोज
उन्होंने सुबनसिरी नदी के डेल्टा क्षेत्र में गादर वाले स्थान पर बड़े बड़े वृक्षों की टहनियां (सदिया सुबनसिरी नदी के दक्षिण-पूर्व में लगभग 145 किमी दूर स्थित है) गाद में दबी पाईं जो यह बताता है कि भूकंप के बाद भी छह महीने तक आते रहे इसके हल्के झटकों की वजह से नदी में इतनी मिट्टी और मलबा जमा हो गया था कि उसकी सतह उपर उठ गई। यह शोध हाल ही में 'साइंटिफिक रिपोर्ट' पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
लोहित नदी के दाहिने किनारे पर घने वनों से आच्छादित पूर्वी हिमालय क्षेत्र के घास से ढके मैदानी इलाके में मौजूद रहकर सादिया में सदियों पहले आए भूकंप का अध्ययन काफी मायने रखता है। इससे घनी आबादी वाले इस क्षेत्र में भूकंप के खतरे वाले इलाकों को पहचानने तथा आगे यहां आधारभूत संरचनाओं के निर्माण की योजनाएं बनाने में काफी मदद मिलेगी।
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