मदरसों में हिंदू छात्रों का इजाफा! आखिर ये क्या चल रहा है पश्चिम बंगाल में
पिछले कुछ सालों से हिंदू छात्रों की संख्या में हर साल लगभग 2-3 फीसदी का इज़ाफा हो रहा है। एक जानकारी के मुताबिक पिछले साल लगभग 12.77 फीसदी हिंदू छात्र मदरसा बोर्ड की परीक्षा में शामिल हुए थे।
नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में मदरसों से कुछ चौंकाने वाले आँकड़े सामने आए हैं। पश्चिम बंगाल में इस बार 70 हज़ार छात्र मदरसा बोर्ड की परीक्षा में बैठने वाले हैं। जिसमें से करीब 18 फीसदी छात्र हिंदू हैं। पिछले कुछ सालों से हिंदू छात्रों की संख्या में हर साल लगभग 2-3 फीसदी का इज़ाफा हो रहा है। एक जानकारी के मुताबिक पिछले साल लगभग 12.77 फीसदी हिंदू छात्र मदरसा बोर्ड की परीक्षा में शामिल हुए थे।
वजह क्या है ?...
आमतौर पर मदरसों को मुस्लिम समुदाय से जोड़ कर देखा जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल के मदरसों में मुसलमान और हिंदू दोनों पढ़ते हैं। पूरे राज्यभर में कुल 600 मदरसे हैं। जिन्हें सरकारी फंड मिलता है। जानकारी के मुताबिक कई इलाकों में दूसरा कोई स्कूल नहीं होने की वजह से हिंदू छात्र भी मदरसों को तरजीह देते हैं।
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मदरसों में शिक्षा का स्तर भी पहले के मुक़ाबले काफ़ी बेहतर हुआ है और छात्रों को स्कॉलरशिप की भी सुविधा प्राप्त है। ऐसे में बीरभूम, बर्धवान और बांकुड़ा ज़िले में ग़ैर-मुस्लिम छात्रों और अभिभावकों में इन मदरसों के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है।
मदरसों की स्थापना....
बंगाल में मदरसों में शिक्षा की शुरुआत 1780 में हुई थी। 1851 में इसमें बदलाव किए गए। यहां करीब-करीब सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड के सिलेबस को फॉलो किया जाता है। आमतौर पर मदरसा बोर्ड में दो तरह के ब्रांच होते हैं- हाई मदरसा, जहां अरबी ऑप्शनल होता है। जबकि दूसरे ब्रांच को सीनियर मदरसा कहा जाता है। इसमें सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड के सिलेबस को फॉलो किया जाता है।
गरीब व निर्धन क्षात्रों का मदरसों की तरफ रुख़....
मदरसों में गैर-मुस्लिम क्षात्रों की संख्या बढ़ने का एक प्रमुख कारण है कि अन्य स्कूलों के द्वारा बच्चों से एडमिशन के लिए डोनेशन की मांग की जाती है। जिसकी वजह से कमजोर आर्थिक स्थिति के क्षात्र मदरसों की तरफ अपना रुख करते हैं। बंगाल मदरसा बोर्ड का कहना है कि मदरसों को भी सामान्य स्कूलों जैसा बना दिया गया है, यहां छात्र और छात्राएं साथ ही पढ़ते हैं। दकियानूसी परंपराओं को ख़त्म कर दिया है।
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