आपको ही नहीं बादशाह अकबर को भी पसंद थी कुल्फी,ऐसे बनती थी उस जमाने में

Update:2016-05-28 16:30 IST

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लखनऊ: गर्मियों के मौसम में रबड़ी वाली कुल्फी का स्वाद ही कुछ और है। तपती धूप में बर्फ में जमी ठंडी-ठंडी आइसक्रीम कमाल लगती है। आजकल तो वैसे भी बाजार में मलाई, केसर, चॉकलेट आदि फ्लेवर्स वाली कुल्फी उपलब्ध है, जो मन चाहे खा लो।

टेस्टी और लाजवाब चीज जिसे कोई भी खाने से मना नहीं कर सकता वो है गर्मियों में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली कुल्फी आईस्क्रीम। इसे हम कुल्फी के नाम से भी जानते हैं। अगर आप गर्मियों में बाहर जाना पसंद नहीं करते तो घर पर ही कई तरीकों से कुल्फी जमाकर खां सकते हैं।

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कभी आपने सोचा है कि आज तो सब ठीक है, लेकिन उस जमाने में, जब ऐसी कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी तब लोग कुल्फी का लुत्फ कैसे उठाते होंगे? अब आप सोच रहे होंगे कि जिस जमाने की बात हम कर रहे हैं, वहां कुल्फी या आइसक्रीम का नाम भी जानते थे लोग? देखिए तब आम जनता तो नहीं, लेकिन दीन-ए-इलाही, बादशाह जलालुद्दीन अकबर को इस के स्वाद से कैसे वंचित रखा जा सकता था।

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जलालुद्दीन अकबर

अब आप सोच रहे होंगे कि कैसी बेवकूफी भरी बात कर रहे है। जी हां, सही सोच रहे हैं, बिना फ्रिज के भी बादशाह अकबर कुल्फी का मजा उठाते थे और वो भी बकायदा बर्फ में जमी हुई कुल्फी।

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कोन के आकार का कप

बादशाह अकबर और कुल्फी के बीच का मजबूत रिश्ता आपको तभी समझ आ जाएगा जब आप ये जानेंगे कि कुल्फी एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है कोन के आकार का कप, कुल्फी का आकार भी तो कुछ ऐसा ही होता है।

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अबुल फजल

अबुल फजल ने कुल्फी बनाने की विधि को आज से 500साल पहले ही आइन-ए-अकबरी में ही लिख दिया गया था। बादशाह अकबर के महल में अबुल फजल नाम का एक लेखक भी था, जिसने बादशाह की जीवनी में उनका कुल्फी के प्रति प्रेम को भी उकेरा है।

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कुल मिलाकर 30-35 दस्तों की सहायता से बर्फ आगरा पहुंचती थी और यहां लाकर उसे एक संरक्षित कमरे में रख दिया जाता था ताकि वो पिघल ना सके। एक और रोचक बात ये है कि...

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आपको लगता होगा कि केमिकल की सहायता लेना आज की तकनीक है, लेकिन आपको बता दें अकबर के काल में कभी-कभी सॉल्टपीटर नामक केमिकल का प्रयोग किया जाता था, जिसे पानी में मिलाकर पानी को जमाया जाता था।

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हिमालय से बर्फ

अकबर के काल में काफी मशक्कत के साथ सीधे हिमालय से बर्फ मंगवाई जाती थी, इसके लिए हाथी, घोड़ों और सिपाहियों की सहायता ली जाती थी। आगरा से हिमालय पर्वत करीब 500 मील दूर है, मतलब इतनी दूरी तय करके बर्फ बादशाह के महल तक पहुंचती थी। बुरादे और जूट के कपड़े में लपेटकर बर्फ को हिमालय से आगरा तक पहुंचाया जाता था। दूरी बहुत होने के कारण बर्फ की बहुत बड़ी सिल्ली, आगरा पहुंचते-पहुंचते छोटी सी रह जाती थी।

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बेगमों के लिए कुल्फी

सबसे पहले तो बर्फ का उपयोग शर्बत को ठंडा करने के लिए किया गया था, लेकिन जैसे-जैसे बर्फ का सिलसिला शुरू हुआ इसे बादशाह और उनकी बेगमों के लिए कुल्फी जमाने के लिए प्रयोग किया जाने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता गया, कुल्फी का नाम दुनिया की बेहतरीन खाद्य पदार्थों में शामिल हो गई और हमें मिल गया एक टेस्टी डेजर्ट।

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