होली हैः ऐसे हुई उत्तर प्रदेश के इस जिले से होली की शुरुआत
अगर ऐतिहासिक कथानक या जनश्रुति पर गौर करें तो होली की जन्मदाता उत्तर प्रदेश की पावन धरती है। जहां भगवान राम और कृष्ण का अवतार हुआ।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: होली है। ये एक ऐसा पर्व है जिसमें साधना का मूल मंत्र है आपस में मेल मिलाप लोगों का एक दूसरे के मिलना लिपटना, चिपटना, दूसरे पर अपना रंग चढ़ाने के क्रम में रंगों से पोत देना। खुद दूसरे के रंग में रंग कर खुद के अहंकार को खत्म कर देना। न कोई छोटा न कोई बड़ा। होली के बहाने करीब पहुंच जाना। नीच ऊंच का भेद मिट जाना। कुल मिलाकर सबका एक रंग में नजर आना। इसीलिए होली विश्व का सबसे बड़ा त्योहार है जब करोड़ों लोग एक रंग में रंगे नजर आते हैं। बात होली की चली है तो ये बात मौजूं हो जाती है कि होली कितना पुराना है। पहली होली किसने खेली। कब खेली।
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ऐतिहासिक कथानक या जनश्रुति पर गौर करें तो होली की जन्मदाता उत्तर प्रदेश की पावन धरती है
अगर ऐतिहासिक कथानक या जनश्रुति पर गौर करें तो होली की जन्मदाता उत्तर प्रदेश की पावन धरती है। जहां भगवान राम और कृष्ण का अवतार हुआ। इसी धरती पर भगवान नृसिंह का भी अवतार हुआ जो विष्णु का ही स्वरूप हैं।
हरदोई जिले का संबंध हिरण्यकश्यप और होलिका से माना जाता है
इस संबंध में उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का संबंध हिरण्यकश्यप और होलिका से माना जाता है। कहते हैं इस शहर का प्राचीन नाम हरि-द्रोही था, यानी भगवान विष्णु से द्रोह करने वाला नगर। किंवदती यह भी है कि हरिद्रोही नाम होने के कारण ही हरदोई के लोग र का उच्चारण ही नहीं करते। यह परंपरा आज भी हरदोई में दिखती है। लोग हद्दोई बोलते हैं।
हिरण्यकश्यप हरदोई का राजा था
कहते हैं हिरण्यकश्यप हरदोई का राजा था। हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से आशीर्वाद प्राप्त हुआ था कि उसकी मृत्यु ना तो सुबह होगी ना शाम को होगी। ना उसे कोई जानवर मार सकेगा और ना ही मनुष्य। इसके साथ ही उसे यह भी वरदान दिया था कि उसकी मौत ना तो आकाश में होगी और ना ही धरती पर। न घर के भीतर होगी न घर के बाहर ऐसे में हिरण्यकश्यप ने खुद को देवता मान लिया।
उसने अपने राज्य में भगवान की पूजा पर रोक लगा दी
ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद वह अहंकार में इतना चूर हो गया था कि उसने अपने राज्य में भगवान की पूजा पर रोक लगा दी। लेकिन कहते हैं कि उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त हो गया।
हिरण्यकश्यप की दूसरी पत्नी का जन्म स्थान हरदोई था
कहा तो यह भी जाता है कि हिरण्यकश्यप की दूसरी पत्नी का जन्म स्थान हरदोई था। यही प्रहलाद की माता थी। यह भी भगवान विष्णु की भक्त थी। हिरण्यकश्यप को यह सब पसंद नहीं था। उसे भगवान विष्णु से इतनी नफरत करता था कि उसने अपने नगर का नाम ही हरि-द्रोही घोषित कर दिया था। लेकिन प्रहलाद दिन-रात हरि नाम जपता था और अपने पिता को भी प्रभु हरि का नाम लेने को कहता था।
प्रहलाद हर बार हरि कृपा से बच गया
हिरण्यकश्यप अपनी पत्नी और पुत्र की हरि भक्ति से क्रोधित रहता था और उसने अपने बेटे और पत्नी पर लगातार अत्याचार किए। प्रहलाद को मार डालने के कई प्रयास भी किए। लेकिन प्रहलाद हर बार हरि कृपा से बच गया। प्रहलाद की हरि भक्ति देख भगवान विष्णु ने प्रहलाद को दर्शन भी दिए थे।
जब अनेक कोशिशों के बाद भी प्रहलाद हर बार बच गया तो हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की एक साजिश रची। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में बैठ जाए। होलिका के पास एक ऐसी दुशाला थी जिसे ओढ़ लेने पर उसके ऊपर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
दुशाला के प्रभाव से होलिका को कुछ नहीं होगा
इस तरह से दुशाला के प्रभाव से होलिका को कुछ नहीं होगा और प्रहलाद जलकर मर जाएगा। लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था जब होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी तो तेज़ हवा चलने लगती है और उसका दुशाला उलट कर प्रहलाद पर लिपट गया। इस कारण होलिका भस्म हो गई, लेकिन प्रहलाद बच गया। कहते हैं इस पर प्रहलाद को खंभे से बांधकर उस का सिर काटने के लिए हिरण्यकश्यप ने इरादा किया लेकिन खंभा फट गया और उससे क्रोध में भरे नरसिंह भगवान प्रकट हुए। भगवान का यह रूप आधा सिंह का था और आधा मनुष्य का। यह समय संध्या का था न दिन था न रात। वह हिरण्यकश्यप को उठाकर उसके महल के दरवाजे की चौखट पर ले गए इस समय पर न तो घर के अंदर था न बाहर।
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उन्होंने उसे अपनी गोद में लिटाया इस तरह न वह जमीन पर था और न आकाश में
इसके बाद उन्होंने उसे अपनी गोद में लिटाया इस तरह न वह जमीन पर था और न आकाश में। इसके बाद उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। एक अत्याचारी शासक का अंत होने पर जनता ने होलिका की चिता की राख से जमकर होली खेली। बाद में यह एक परंपरा बन गई। जिसे दुनिया भर में अपनाया गया। हरदोई में नरसिंह भगवान का मंदिर भी है। और मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन टीला भी मौजूद है जिसे हिरण्यकश्यप के महल का खंडित भाग माना जाता है।
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