सरना धर्म कोड को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र, केंद्र के पास भेजा जाएगा प्रस्ताव
मानसून सत्र के दौरान राज्य सरकार ने सदन में सरना धर्म कोड को लेकर विशेष चर्चा कराने की बात कही थी। हालांकि, उस दौरान सरना धर्म कोड को लेकर चर्चा नहीं हो सकी। सरकार ने भरोसा दिलाया था कि, विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म कोड पर चर्चा कराई जाएगी और केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा।
रांची: आदिवासी समाज अलग धर्म कोड की मांग को लेकर पिछले कई वर्षों से आंदोलनरत है। जनगणना 2021 के कॉलम में सरना धर्म के लिए आदिवासी समाज हेमंत सोरेन सरकार पर लगातार दबाव बनाता रहा है। सरकार भी आदिवासियों की मांग का समर्थन करती आई है। लिहाज़ा, राज्य सरकार ने झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर आदिवासी सरना धर्म कोड के प्रस्ताव पर चर्चा कर उसे ध्वनिमत से पारित किया। अब इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। सरकार का मानना है कि, सरना धर्म कोड को मान्यता मिल जाने से आदिवासी समाज की पहचान बाक़ी रहेगी।
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सरकार ने किया वादा पूरा
मानसून सत्र के दौरान राज्य सरकार ने सदन में सरना धर्म कोड को लेकर विशेष चर्चा कराने की बात कही थी। हालांकि, उस दौरान सरना धर्म कोड को लेकर चर्चा नहीं हो सकी। सरकार ने भरोसा दिलाया था कि, विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म कोड पर चर्चा कराई जाएगी और केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि, झारखंड के लिए 11 नवंबर का दिन बेहद ख़ास है। सरकार ने पहली सीढ़ी पार कर दी है। हालांकि, अभी कई पायदान बाक़ी हैं। उन्होने कहा कि, इस मामले को लेकर सरकार आगे बढ़ेगी ताकि, झारखंड और देश के आदिवासियों को संरक्षण मिल सके। केंद्र से सहयोग मिलने के सवाल पर हेमंत सोरेन ने कहा कि, राज्य सरकार ने अपना क़दम आगे बढ़ा दिया है।
घोषणा पत्र में सरना धर्म कोड का वादा
झारखंड विधानसभा से सरना धर्म कोड के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इसका वादा किया था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने कहा कि, विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराना एक महत्वपूर्ण क़दम है। पार्टी की ओर से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से भी इस सिलसिले में केंद्र सरकार पर दबाव बनाने का आग्रह किया गया है।
उन्होने कहा कि, सरना धर्म कोड अस्तित्व में आ जाने से एक बड़े वर्ग को न्याय मिल पाएगा। सरना धर्मावालंबियों की सही संख्या का पता चल पाएगा। उन्हे संवैधानिक अधिकार दिलाने में मदद मिलेगी। आदिवासियों की भाषा, संस्कृति और इतिहास का संरक्षण हो सकेगा। उन्होने बताया कि, 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रावधान था लेकिन 1961-62 जनगणना प्रपत्र से इसे हटा दिया गया। साल 2011 के सेंसस में 21 राज्यों के आदिवासियों के लगभग 50 लाख आदिवासियों ने जनगणना प्रपत्र में सरना धर्म लिखा।
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क्या है सरना धर्म कोड की मांग
झारखंड की पहचान जल, जंगल और ज़मीन के साथ ही आदिवासियों से जुड़ी है। आदिवासी मूर्ति पूजा के बजाय प्रकृति प्रेमी रहे हैं। हालांकि, आमतौर पर मान्यता रही है कि, आदिवासी कोई धर्म नहीं बल्कि जीवन पद्धति है। इनके रीति-रिवाज़ और मान्यताएं हिंदू धर्म के क़रीब रही हैं। पूजा-पाठ से लेकर रहन-सहन हिंदू धर्म से मिलता-जुलता रहा है। इन सबके बावजूद आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग की जाती रही है। विभिन्न राजनीतिक दल आदिवासी संगठनों की मांगों का समर्थन करते आए हैं। हालांकि, इसके पीछे वोटबैंक की राजनीति बड़ा कारण रही है। चुनावी घोषणा पत्रों में भी सरना धर्म कोड की वक़ालत की गई है।
रिपोर्ट- शाहनवाज़
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