India Alliance: इंडिया गठबंधन अब अविश्वास से ज्यादा स्थानीय महत्वाकांक्षा का शिकार

India alliance: आखिर इंडिया गठबंधन से ही बगावत की खबरें क्यों आ रही है? इसका जवाब यह है कि इसमें शामिल दलों के बीच में अब अविश्वास से ज्यादा स्थानीय स्तर पर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का मजबूत होना है। हर क्षेत्रीय पार्टी अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के ऊपर हावी दिखना चाहती है।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Update:2023-11-14 12:14 IST

समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव, बिहार सीएम नीतीश कुमार, एनसीपी शरद पवार, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, अधीर रंजन, दिल्ली सीएम केजरीवाल: Photo- Social Media

India Alliance: आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी खेमें में इंडिया गठबंधन से एक उम्मीद जगी थी। लेकिन समय के साथ इसकी लौ खत्म होती दिखाई पड़ती है। पहले अखिलेश यादव ने बयान दिया कि कांग्रेस ने उन्हें धोखा दिया और अगर उत्तर प्रदेश में कोई गठबंधन होगा तो सपा 65 सीटों पर लड़ेगी। बाकी 15 सीटों पर गठबंधन में शामिल अन्य पार्टियां लड़ेंगी। वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने बिहार में कहा कि कांग्रेस का पूरा ध्यान विधानसभा चुनावों पर है। उसे अभी इंडिया गठबंधन से उतनी दिलचस्पी नहीं है। अब इन दोनों बयानों के बाद से राजनीति गर्म है। कयासों का दौर जारी है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या 2024 चुनाव तक इंडिया गठबंधन बचेगा? असल में सवाल यह भी है कि आखिर इंडिया गठबंधन से ही बगावत की खबरें क्यों आ रही है? इसका जवाब यह है कि इसमें शामिल दलों के बीच में अब अविश्वास से ज्यादा स्थानीय स्तर पर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का मजबूत होना है। हर क्षेत्रीय पार्टी अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के ऊपर हावी दिखना चाहती है। खासकर उत्तर भारत में यह राजनीतिक घटनाक्रम ज्यादा दिखाई पड़ता है। इसका एक कारण यहां कांग्रेस का कमजोर होना है। आज पार्टी के पास उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे दो बड़े राज्यों में कोई आधार नहीं हैं, जिस पर क्षेत्रीय पार्टियों के साथ समझौता किया जाए।

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क्या गठबंधन में असंतोष सिर्फ उत्तर प्रदेश में हैं

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के मुखर होने से गठबंधन में दरार दिखाई पड़ती है। लेकिन यह समस्या अन्य राज्यों में भी मौजूद है। चूँकि मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ना चाहती थी । लेकिन कांग्रेस से बात बिगड़ गई, तो यूपी में बगावत सामने आ गई। जबकि अन्य राज्यों में भी विरोध के सुर सीट बंटवारे का इंतजार कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस को दो सीट देना चाहती है। इस शर्त पर कि वह लेफ्ट के साथ राज्य में गठबंधन नहीं करेंगी। जबकि कांग्रेस और लेफ्ट बंगाल में साथ चुनाव लड़ना चाहते हैं। वहीं बिहार में जदयू+ राजद+ लेफ्ट के बीच कांग्रेस बड़ी दुविधा में हैं। आज की परिस्थितियों में कांग्रेस को दो सीटें भी ज्यादा दिखाई पड़ती हैं। अगर इससे ज्यादा कुछ मिलता हैं तो फिर राजद को अपने कोटे में से देना होगा। वैसे ही तमिलनाडु में कांग्रेस का भविष्य डीएमके के भरोसे है। यहां डीएमके तय करेगी कि कांग्रेस को कितनी सीट मिलनी चाहिए। महाराष्ट्र में भी शरद पवार का एनसीपी गुट, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और कांग्रेस का गठबंधन कई सीटों पर बगावत का रुप ले सकता है। क्योंकि राज्य में ये गठबंधन पहली बार कोई बड़ा चुनाव साथ लड़ने जा रहा है। अंत में सबसे बड़ी समस्या आम आदमी पार्टी की तरफ से होने वाली है। आज पंजाब और दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल को तय करना है कि वह कांग्रेस के लिए कितनी सीट छोड़ेंगे।

इंडिया गठबंधन: Photo- Social Media

इंडिया गठबंधन में अभी हमले कांग्रेस पर ही क्यों

इंडिया गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है, जिसका एक राष्ट्रव्यापी प्रभाव है। लेकिन, कांग्रेस राज्य स्तर पर अपना हित देख रही क्षेत्रीय पार्टियों के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पा रही है। दूसरी तरफ इसकी कुछ गलतियां भी क्षेत्रीय दलों को मौका दे रही है। उदहारण के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में निर्णय लिया गया की देश के 14 टीवी पत्रकारों का बायकॉट किया जाएगा। लेकिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने और राजस्थान में अशोक गहलोत ने उन्हीं टीवी पत्रकारों को इंटरव्यू दिया । जिनके बायकॉट की सूची निकाली गई थी। इसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस, समाजवादी पार्टी, रालोद आदि जैसे तमाम दलों ने कांग्रेस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। कांग्रेस चाहती तो मध्य प्रदेश में सपा के साथ रास्ता निकाल सकती थी। लेकिन पार्टी ने वहां अखिलेश यादव को नाराज कर दिया।

असल में कांग्रेस की एक बड़ी समस्या यह है कि इनका बड़ा स्थानीय नेता राज्य में अपनी राजनीति बचाने के लिए राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ममता बनर्जी को साथ लाना चाहती है । लेकिन प्रदेश में अधीर रंजन चौधरी लगातार तृणमूल कांग्रेस पर आक्रामक रहते हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के बिना कांग्रेस का लोकसभा में कोई वजूद नहीं है । लेकिन नए नवेले प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए अखिलेश यादव पर टिप्पणी करने से नहीं चुके। यही हाल कमलनाथ और अशोक गहलोत का है। उन्हें अपने राज्य की राजनीति से फर्क पड़ता है ना कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के फैसलों से।

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वर्तमान में पांच राज्यों में जो परिणाम रहे लेकिन 2024 में प्रधानमंत्री के लिए इंडिया गठबंधन एक बिखरी चुनौती दिखाई पड़ता हैं। आज क्षेत्रीय दल इस गठबंधन को कांग्रेस की शहादत पर बरकरार रखना चाहते हैं। कांग्रेस कितना सीट छोड़ने को तैयार है, अब इस बात पर गठबंधन की उम्र तय होगी। शायद यह भी देखने को मिले कि बंगाल में साथ लड़ रही लेफ्ट और कांग्रेस केरल में खिलाफ लड़े। सच तो यही हैं कि इस गठबंधन ने मोमेंटम खो दिया है और अब चुनाव कि तैयारी के लिए समय कम बचा है।

(लेखक एनआईटी राउरकेला में शोधार्थी हैं। अर्थव्यवस्था एवं राजनीति के ज्वलंत मुद्दों पर नियमित लिखते रहते हैं। व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।)

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