देसी वैक्सीन ने तोड़ा ऑक्सफोर्ड और फाइजर का गुरूर, जानिए इसकी खासियत

देश में इन दिनों दो वैक्सीन का इस्तेमाल कोरोना टीकाकरण में किया जा रहा है। हैदराबाद की भारत बॉयोटेक की कोवैक्सिन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवीशील्ड। इन दोनों वैक्सीन में अब तक कोविशील्ड को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है, लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है।

Update:2021-03-05 23:00 IST
फाइजर और ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के मुकाबले कोवैक्सीन का असर अफ्रीकी देशों में भी हो रहा है जबकि ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड वहां फेल हो चुकी है।

अखिलेश तिवारी

नई दिल्ली: आईसीएमआर की मदद से तैयार हुई कोरोना वायरस की देसी वैक्सीन ने दुनिया की बड़ी कंपनियों का गुरूर तोड़ दिया है। कोवैक्सीन के तीसरे ट्रायल का परिणाम आने के बाद कोवैक्सीन की कई खूबियां सामने आ चुकी हैं। फाइजर और ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के मुकाबले कोवैक्सीन का असर अफ्रीकी देशों में भी हो रहा है जबकि ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड वहां फेल हो चुकी है। इसी तरह कोवैक्सीन का वॉयल खोलने के बाद बीस दिन से ज्यादा सुरक्षित है जबकि कोविशील्ड को चार घंटे के अंदर इस्तेमाल किया जाना जरूरी है। कोविशील्ड का असर भी 72 प्रतिशत ही है जबकि कोवैक्सीन की सफलता 81 प्रतिशत है।

देश में इन दिनों दो वैक्सीन का इस्तेमाल कोरोना टीकाकरण में किया जा रहा है। हैदराबाद की भारत बॉयोटेक की कोवैक्सिन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवीशील्ड। इन दोनों वैक्सीन में अब तक कोविशील्ड को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है, लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। कोवैक्सीन के तीसरे ट्रायल का परिणाम सामने आने के बाद अब कोवैक्सीन ही अव्वल है। कोवैक्सीन का असर 81 प्रतिशत पाया गया है जबकि कोविशील्ड 72 प्रतिशत ही कारगर पाई गई है।

कोवीशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ब्रिटिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर तैयार किया है। इसे भारत में पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया बना रही है। वहीं, कोवैक्सिन को हैदराबाद की भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी के साथ मिलकर बनाया है।

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तीसरे ट्रायल से मिली जीत

भारत सरकार ने 3 जनवरी को कोवैक्सिन को टीकाकरण अभियान के लिए आपात स्थितियों में अनुमति दी थी तब इसकी खूब आलोचना हुई थी, लेकिन बाद में तस्वीर ही बदल गई। फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के नतीजे दो दिन पहले आए हैं जिसमें कोवैक्सीन को कोविशील्ड से भी ज्यादा अच्छा पाया गया है। कोवैक्सिन के फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स में 25,800 वॉलंटियर्स शामिल हुए थे। वॉलंटियर्स के लिहाज से भी यह अब तक देश का सबसे बड़ा क्लीनिकल ट्रायल है। पहले दो चरण के ट्रायल में करीब एक हजार वॉलंटियर्स शामिल हुए थे। अमेरिका की फाइजर कंपनी को ट्रायल के वॉलंटियर ही नहीं मिल सके।

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कोवैक्सीन के ऐसे रहे परिणाम

कोवैक्सिन के ट्रायल में 2,433 वॉलंटियर्स की उम्र 60 वर्ष या अधिक रही है। 4,500 वॉलंटियर्स पहले से किसी न किसी गंभीर बीमारी का शिकार थे फिर भी कोवैक्सीन का इन पर अच्छा असर हुआ। कोवैक्सीन के तीसरे चरण में शामिल वॉलंटियर में 43 लोग संक्रमित हुए। इनमें से 36 को प्लेसिबो ग्रुप वाला और सात को वैक्सीन गु्रप का पाया गया है। इस आधार पर वैक्सीन की प्रभाव क्षमता को 81 प्रतिशत माना गया है।

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कोवैक्सिन बेहतर क्यों ?

कोवैक्सिन का टीकाकरण करने के लिए स्टोर का तापमान 2 से 8 डिग्री तक ही रखना जरूरी है। इस लिहाज से इसे स्टोर करना आसान है। इसके अलावा इसकी शीशी खोलने के बाद 25 से 30 दिन में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है जबकि कोविशील्ड में यह सुविधा नहीं है। कोविशील्ड की शीशी खेालने के चार घंटे के अंदर इस्तेमाल करना जरूरी है। कोरोना वायरस में छोटे-मोटे बदलाव आते हैं तो भी कोवैक्सिन का असर कम नहीं होगा। कोवीशील्ड दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन पर बेअसर साबित हुई है।

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