नहीं रहे सेना के वीर कर्नल 'बुल', पाक से बचाया था सियाचिन, PM ने जताया शोक
उन्होंने साल 1977 में पाकिस्तानी का सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने का मकसद भांप लिया था। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 'ऑपरेशन मेघदूत' चलाने की इजाजत दी थी।
नई दिल्ली: भारतीय सेना के वीर कर्नल ‘बुल’ कुमार का 87 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया। इस बात की जानकारी भारतीय सेना ने दी है। बता दें कि 'बुल' ही वो वीर थे, जिनकी रिपोर्ट के आधार पर सेना 13 अप्रैल, 1984 को ऑपरेशन मेघदूत चलाकर पाकिस्तान से सियाचिन को बचाने में कामयाब रही और उस पर अपना कब्जा बरकरार रखा था। यह दुनिया की सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में पहली कार्रवाई थी। कर्नल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने दुख प्रकट किया है।
भारतीय सेना ने दी निधन की जानकारी
इंडियन आर्मी ने उनके निधन पर ट्वीट करते हुए लिखा कि भारतीय सेना (Indian Army) कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार (Col Narendra ‘Bull’ Kumar) को श्रद्धांजलि अर्पित करती है। बुल ऐसे सोल्जर माउंटेनियर थे, जो कई पीढ़ियों के प्रेरणास्रोत रहेंगे। कर्नल नरेन्द्र ’बुल’ कुमार का आज निधन हो गया, लेकिन वो अपने पीछे साहस, बहादुरी और समर्पण की गाथा छोड़ गए हैं।
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पीएम मोदी ने जताया दुख
दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा लहराने वाले अदम्य साहस के प्रतीक कर्नल बुल के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि एक अपूरणीय क्षति! कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार (सेवानिवृत्त) ने असाधारण साहस और परिश्रम के साथ देश की सेवा की। पहाड़ों के साथ उनका विशेष बंधन याद किया जाएगा। उनके परिवार और शुभचिंतकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।
बुल की ही रिपोर्ट पर चलाया गया 'ऑपरेशन मेघदूत'
कर्नल बुल कुमार को 1953 में कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला था। बुल अकेले नहीं थे जो भारत की सेवा करने के लिए सेना में शामिल हुए, बल्कि उनके तीन और भाई सेना में थे। उन्होंने साल 1977 में पाकिस्तानी का सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने का मकसद भांप लिया था। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 'ऑपरेशन मेघदूत' चलाने की इजाजत दी थी। इसके बाद सेना द्वारा पूरे सियाचिन पर कब्जा बरकरार रखा गया।
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आपको बता दें कि कर्नल बुल कुमार ऐसे पहले भारतीय थे, जो नंदादेवी चोटी पर चढ़े थे। इसके अलावा वह माउंट एवरेस्ट, माउंट ब्लैंक और कंचनजंघा पर भी तिरंगा लहराया था। शुरुआती अभियानों ने बुल ने अपनी चार उंगलियां खो दीं, लेकिन फिर अभी अपने साहस से इन चोटियों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे।
1965 में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता टीम के उपप्रमुख बुल ही थे। वो अपना निकनेम बुल हमेशा अपने नाम के साथ जोड़ते थे। कर्नल बुल कुमार को विशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल और कीर्ति चक्र जैसे सम्मान से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें अर्जुन पुरस्कार और पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है।
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