गजब: अब कीड़े बचाएंगे फल और सब्जियां, यहां जानें कैसे?

जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में अमृतसर स्थित खालसा कालेज के एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट नेराज्य के किसानों का हाथ थामने का प्रायास किया है। अपने इस प्रयास के तहत विभाग ने फसलों के दुश्मन कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों की बजाए परभक्षी कीटों का प्रयोग करने पर बल दिया है।

Update: 2019-12-11 10:32 GMT

दुर्गेश पार्थसारथी

अमृतसर: जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में अमृतसर स्थित खालसा कालेज के एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट नेराज्य के किसानों का हाथ थामने का प्रायास किया है। अपने इस प्रयास के तहत विभाग ने फसलों के दुश्मन कीटों को मारने के लिए कीटनाशकों की बजाए परभक्षी कीटों का प्रयोग करने पर बल दिया है।

इसके लिए कालेज प्रबंधन ने लगभग डेढ. साल पहले नवंबर 2015 में कीट फार्मिंग शुरू की थी। उसे समय प्रबंधकों ने यह सोचा भी नहीं था कि इतने कम समय में उन्हें उम्मीद से ज्यादा सफलता मिलेगी।

कीटफार्मिंग के इंचार्ज डा. राजिंद्रपाल सिंह का दवा है कि यह प्रदेश का दुसरा ऐसा लैब है जहां किसानों के मित्र कीटों को तैयार कर किसानों को 20 रूपये के मामूली शुल्क पर उपलब्ध करवाया है।

उनका कहना है कि वैसे तोइन कीटों को शुगर मिल प्रबंधकोंद्वारा गन्ने की फसल को सुडियों के हमने से बचाने के लिए पाला जाता है, लेकिन वे आम किसानों को उपलब्ध नहीं कराते। कृषि विभाग की अध्यक्षा डाॅरणदीप कौर कहती हैं है जहरीली होती खेती को रोकने के लिए चीन, ब्राजील, मलेशीया, तनजानीया व फिलिपिन्स जैसे देश भी मित्र कीटों का सहारा ले रहे हैं।

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35-45 दिनों में तैयार होते हैं कीड़े

विशेषज्ञों के मुताबिक मिनिमम टंप्रेचर युक्त कमरेमे लकड़ी की एक छोटी सी पेटी में लगभग 500ग्राम ज्वार की दरिया रखते हैं। इसकेबाद पर कीटों के अंडों को रख कर पेटी बंद कर देते हैं। और इसी ज्वार के दरिया पर रखे इन्हीं अंडों से 35- 45 दिनों के भीतर कीट निकल आते हैं।इस लैब में लाल कीट, सिरफिड, मकडी, कैराबिड., स्टेफाईलिनिड, डैगन, सोनममक्खी वैपैटाटीड आदि परभक्षी कीट तैयार किए जाते हैं।

ऐस काम करते हैं परभक्षी कीट

डॉ. राजिंद्र पाल सिंह बताते हैं कि अंडों से भरे कागज केएक कार्ड को कई भागों में काट कर 10-10 फुट की दूरी पर फसलों के पत्तों पर स्टेपल कर दें। इन अंडों से निकलेपरभक्षी मित्र कीट मात्र चार घंटे में अपना काम करना शुरू कर देंगे।

इसके 10-15 दिन लोकेशन चेंज कर किसान फिर से इसी प्रक्रिया को दोहराएं। निश्चित तौर पर ये कीट किसानों की सब्जियों नुकसान होने से बचाएंगे। इससे न केवल उनकी फसल बचेगी, बल्कि कीटनाशक दवाओं पर खर्च होने वालेपैसों की बचत भी होगी।

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20 रूपये में उपलब्ध करवाए जाते हैं कीट

जरूरतमंद किसानों को खालसा कालेज प्रंधन की ओर से मात्र 20 में ये कीट उपलब्ध करवाए जाते हैं। जबकि लैब में प्रति एकड कीट तैयार करने का खर्च 500रूपये आता है। डॉ. धर्मेंद्र सिंह रटौल कहते हैं जमीन को जहरीली होने से बचाने के लिए उठाए गए इस कदम के तहत ये कीट किसानों को उपलब्ध करवाए जाते हैं।

काश्तकार चाहें तो बैंगन, माटर, भिंडी, करेला, फूलगोभी, बंदगोभी, शिमलामिच, सहित गन्ना, कपास व मक्की फसोलों में कीटनाशकों का छिडकाव करने के बजाय इन कीटों का प्रयोग कर इन्हें जहरीला होने से बचा सकते हैं।

लगाए जा चुके हैं दो सौ से अधिक जागरूकता कैंप

एकग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की मुखी के मुताबिक प्रदेश स्तर पर 1000 से अधिक किसान जागरूकता कैंप लगा कर कुदरती खेती के तहत जीव-जंतु पर्यावरण को दूषित करने वाले घातक कीटनाशकों को छोड मित्र कीटोंको अपनाने पर बल दिया जाता है। बायोकंटोल लैब के मुखी का दावा है कि 2000 से अधिक किसान मित्र कीटों को अपना कर खेती को ‘विष’ मुक्त कर चुके हैं।

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