आतंकी घटनाओं से मातम: BJP नेताओं समेत 35 की मौत, आम जनता भी बनी निशाना

जम्मू-कश्मीर में इस साल हुई आतंकी घटनाओं में आठ बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ 35 से अधिक स्थानीय नागरिकों की मौत हो चुकी है। 

Update: 2020-11-07 12:49 GMT
इस साल आतंकी घटनाओं में 8 बीजेपी कार्यकर्ताओं समेत 35 लोगों की मौत

जम्मू-कश्मीर: जम्मू-कश्मीर में लगातार आतंकी सक्रिय हैं और घाटी में आतंक फैलाने के मकसद से आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में जुटे हुए हैं। हालांकि सेना की मुस्तैदी की वजह से उनके कई मंसूबे फेल हो गए। लेकिन कई आतंकी घटनाएं ऐसी भी हुई हैं, जिसमें बेगुनाहों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस साल हुई आतंकी घटनाओं में आठ बीजेपी कार्यकर्ताओं समेत 35 से अधिक स्थानीय लोगों की मौत हो चुकी है।

किन आठ BJP कार्यकर्ताओं की हुई मौत

आतंकी घटनाओं में जिन आठ बीजेपी कार्यकर्ताओं की मौत हुई है, उनमें उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले के युवा मोर्चा के अध्यक्ष वसीम बारी, उसके भाई उमर शेख और पिता बशीर शेख, ओमपोरा बडगाम के अब्दुल हमीद नजार, कुलगाम सोपट के हारून रशीद बेग, कुलगाम जिले के भाजयुमो महासचिव फिदा हुसैन और वाईके पोरा के उमर रमजान का नाम शामिल है। इसके अलावा बीडीसी चेयरमैन भूपेन्द्र सिंह की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

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(फोटो- सोशल मीडिया)

इनकी भी आतंकी घटनाओं में गई जान

इसके अलावा श्रीनगर के खोंमुह के निसार अहमद उर्फ कोबरा का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई, जिनका शव साउथ कश्मीर के शोपियां जिले के दंगम गांव से बरामद हुआ था। पहले खबरें थी कि उनका संबंध भाजपा से था, लेकिन बाद में पार्टी ने इस बात को खारिज कर दिया। बता दें कि ना केवल राजनीतिक कार्यकर्ता बल्कि कई स्थानीय नागरिक भी इन घटनाओं में मारे गए हैं। बता दें कि दक्षिणी कश्मीर के बिजबिहाड़ा में निहान भट नाम के एक चार साल के मासूम की ग्रेनेड हमले में मौत हो गई थी। इस हमले में CRPF का एक जवान भी शहीद हो गया था।

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अब तक पांच हजार राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हुई मौत

आपको बता दें कि 1989 से अब तक आतंकवाद के चलते करीब पांच हजार राजनीतिक कार्यकर्ताओं की मौत हो चुकी है। सबसे पहले 21 अगस्त, 1989 को नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकर्ता मोहम्मद यूसुफ हलवाई की हत्या हुई थी। मोहम्मद यूसुफ हलवाई को श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में आतंकियों ने सिर्फ इसलिए गोली मार दी थी क्योंकि उसने 15 अगस्त को घर की लाइट बंद करने से इंकार कर दिया था। उस वक्त डॉ. फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे।

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