जोकीहाट में जदयू की हार से भी सत्ता को फायदा

Update:2018-06-01 12:47 IST

शिशिर कुमार सिन्हा

पटना: दो महीने पहले तक लग रहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कन्फ्यूज़ हैं। कोई खुलकर बोले या नहीं, मगर इस कन्फ्यूज़न की चर्चा जदयू के दफ्तर में भी थी। बिहार विधानसभा चुनाव में राजद-कांग्रेस के साथ जनादेश लेने वाले नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी का साथ तो लिया, लेकिन इस साथ पर कन्फ्यूजन से भाजपा में भी कहीं न कहीं चिंता जरूर थी। अब जोकीहाट विधानसभा सीट के चुनाव परिणाम ने भाजपा की इस चिंता को लगभग साफ कर दिया। कन्फ्यूजन की चर्चा को चुपचाप दबाए बैठे जदयू ने दो दिन पहले ही स्पष्ट किया था कि राजद या कांग्रेस के साथ जाने का कोई इरादा नहीं है और भाजपा के साथ सरकार कायम रहेगी।

‘दीन बचाओ’ प्रकरण से बढ़ा कन्फ्यूजन

15 अप्रैल को पटना के गांधी मैदान में ‘दीन बचाओ-देश बचाओ’ रैली के जिस मंच से भाजपा पर लगातार तीखे हमले हो रहे थे, वहां सत्ता में उसके सहयोगी दल के मुखिया और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का होना और सम्मेलन के तुरंत बाद मंच संचालक ख़ालिद अनवर को जदयू कोटे से विधान परिषद का टिकट दिया जाना- यह दो बड़े संकेत भाजपा के लिए परेशानी का सबब बने हुए थे। इसके पहले सरकार में भाजपा ताकत दिखाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इस सम्मेलन के बाद वह कुछ हद तक बैकफुट पर नजर आने लगी थी। ‘दीन बचाओ’ के नारे में जदयू के शरीक होने से यह बात फिज़ा में बुरी तरह फैली हुई थी कि जदयू मुसलमानों को साधने का प्रयास कर रही है। विधान परिषद टिकट खालिद अनवर को दिए जाने के पीछे एक कारण यह भी गिनाया जा रहा था। इतना कुछ होने के बाद सभी की नजर विधान परिषद चुनाव खत्म होते ही जोकीहाट उपचुनाव पर टिक गई।

राजद-जदयू के साथ कई कद्दावरों की प्रतिष्ठा फंसी थी

विधानसभा की यह सीट जदयू विधायक सरफराज आलम के राजद में जाने से खाली हुई थी। सरफराज विधायकी छोड़ अपने पिता तस्लीमुद्दीन के निधन से खाली हुई अररिया लोकसभा सीट पर हाथ आजमाने के लिए जदयू से राजद में चले गए थे। अररिया सीट राजद सांसद तस्लीमुद्दीन की थी और जोकीहाट विधानसभा सीट उनके बेटे जदयू विधायक सरफराज के पास। सरफराज ने अररिया संसदीय उपचुनाव में संवेदना के आधार पर बड़ी जीत हासिल कर ली। उनके संसद जाने से खाली हुई जोकीहाट सीट पर जदयू का दावा था, लेकिन मुस्लिम बहुत क्षेत्र होने के कारण राष्ट्रीय जनता दल इसे पूरी तरह अपना मान रहा था। इसलिए उसने ज्यादा कुछ सोचे बगैर अररिया के नवनिर्वाचित सांसद सरफराज आलम के भाई शहनवाज को मौका दिया। विधानसभा चुनाव में यहां से भले ही जदयू के सरफराज आलम विधायक बने हों, लेकिन महागठबंधन के दलों राजद और कांग्रेस का इसमें बड़ा योगदान था। इन दोनों दलों का बिहार के इन इलाकों में मुस्लिम वोटरों पर एक तरह का वर्चस्व रहा है।

राजद इन बातों को समझते हुए उपचुनाव में जीत को लेकर काफी हद तक आश्वस्त था, जबकि जदयू ने ‘दीन बचाओ’ सम्मेलन से होने वाले फायदे को परखने के लिए जोकीहाट में पूरी ताकत झोंक दी थी। जदयू कोटे के विधायकों के साथ अररिया, सुपौल, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार आदि से करीबी वास्ता रखने वाले मंत्री जोकीहाट में कैंप कर रहे थे। एक तरफ जेल में बंद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव कांग्रेस के साथ मिलकर जोकीहाट में मुस्लिम वोटरों को बांधे रखने में लगे थे तो दूसरी ओर जदयू अपनी प्रतिष्ठा के लिए हर दांव खेल रही थी। चूंकि इस सीट पर निर्णायक भूमिका मुसलमान वोटरों की है और भाजपा को इस इलाके से वोट की उम्मीद नहीं के बराबर है, इसलिए जदयू एक तरह से अकेले मोर्चा लिए खड़ा रहा। लगातार नजर रखने के कारण ही जदयू के नेताओं ने वोटिंग के बाद ही समझ लिया था कि यह सीट राजद के खाते में जा रही है।

यही कारण है कि मतदान के बाद इस सीट पर जीत का दावा जदयू के किसी बड़े-विश्वसनीय नेता ने नहीं किया। और तो और, मतगणना से पहले जदयू के दिग्गज नेताओं ने मीडिया के समक्ष भाजपा से टूट की आशंकाओं को नकारने का बयान भी दिया।31 मई को जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव की मतगणना शुरू हुई तो जदयू को पौने दो घंटे ही राहत मिली। पांचवें दौर की मतगणना तक जदयू के प्रत्याशी मुर्शीद आलम राजद उम्मीदवार शहनवाज से आगे चल रहे थे। लेकिन इसके बाद न सिर्फ मामला उलट गया बल्कि राजद के पास जदयू से दोगुना वोट नजर आने लगे। यही अंतर अंत तक कायम रहा। राजद उम्मीदवार शहनवाज को 81 हजार से ज्यादा वोट मिले, जबकि जदयू प्रत्याशी मुर्शीद आलम 40 हजार पार कर रुक गए।

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