रास के लिए जस्टिस गोगोई के नामांकन पर जूडिशियरी में छिड़ी भयानक जंग

इसके अलावा पूर्व न्यायाधीश जे, चेल्मेश्वर और मदन बी. लाकुर ने 12 जनवरी 2018 को उस समय के मुख्य न्यायाधीश के तहत सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। इन पूर्व न्यायाधीशों का भी कहना है कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अपक्षपातपूर्ण महान सिद्धांतों से समझौता किया है।  

Update:2020-03-18 17:40 IST

नई दिल्लीः पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का राज्यसभा के लिए नामांकन का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इसे लेकर जूडिशियरी के दिग्गजों में जबर्दस्त जंग छिड़ गयी है। जस्टिस गोगोई को लेकर जहां सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कडेंय काटजू ने तीखा हमला बोला है वहीं कहीं अन्य न्यायाधीशों की भी कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।

सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की राज्यसभा के लिए दावेदारी के बाद उन पर तीखा हमला किया है। इस संबंध में अपने ट्विटर एकाउंट से काटजू ने जबर्दस्त शब्दबाण चलाए हैं।



उन्होंने लिखा है कि पहले बीस साल एक वकील के रूप में और दूसरे बीस साल एक न्यायाधीश के रूप में उन्होंने तमाम अच्छे और खराब न्यायाधीशों को देखा। लेकिन रंजन गोगोई जैसा खराब जज उन्होंने पूरी भारतीय न्यायपालिका में नहीं देखा। शायद ही इस आदमी के खिलाफ कोई आवाज न उठी हो।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब जस्टिस काटजू ने जस्टिस गोगोई के खिलाफ मोर्चा खोला है। इससे पहले जनवरी में भी उन्होंने गोगोई के प्रति कड़े शब्दों का प्रयोग किया था। उस समय उन्होंने जस्टिस काटजू पर आरोप लगाने वाली महिला की बहाली को लेकर सवाल खड़े किये थे।

तमाम पूर्व न्यायाधीश उतरे विरोध में

लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि जस्टिस काटजू अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं। कई अन्य पूर्व न्यायाधीशों ने भी इस पर सवाल खड़े किये हैं। जिसमें पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ भी शामिल हैं।

इसके अलावा पूर्व न्यायाधीश जे, चेल्मेश्वर और मदन बी. लाकुर ने 12 जनवरी 2018 को उस समय के मुख्य न्यायाधीश के तहत सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। इन पूर्व न्यायाधीशों का भी कहना है कि गोगोई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अपक्षपातपूर्ण महान सिद्धांतों से समझौता किया है।

पूर्व न्यायाधीश का कहना है कि उनके अनुसार राज्यसभा के सदस्य के लिए नामांकन को स्वीकार करके पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के प्रति आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है, जो कि भारत के संविधान के आधारभूत ढांचे में से एक है।

न्यायपालिका को बड़ा खतरा है

न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि वह तीन अन्य जजों के साथ जनता के बीच इस संस्था को खतरे को देखते हुए गए थे लेकिन अब वह महसूस करते हैं कि खतरा उससे कहीं अधिक बड़ा है। उन्होंने कहा कि उन्हें आश्चर्य हो रहा है कि गोगोई ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कैसे किया।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए पी शाह और सेवानिवृत्त एचसी न्यायाधीश आर एस सोढ़ी ने भी सरकार द्वारा गोगोई के नामांकन पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

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न्यायमूर्ति सोढ़ी ने कहा कि एक न्यायाधीश को सेवानिवृत्ति के बाद के पदों को कभी भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरी हमेशा से यह राय रही है कि न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद की नौकरियों को स्वीकार नहीं करना चाहिए।

प्रलोभन का विरोध करने का साहस होना चाहिए

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को अपनी स्वतंत्रता से समझौता करने के किसी भी प्रलोभन का विरोध करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत होना चाहिए, जो किसी ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व में हो जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्वस्त कर सकता है।

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एक अन्य पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि आपकी अपनी अखंडता है। एक न्यायाधीश को कभी सेवानिवृत्त नहीं होना चाहिए। पोस्ट रिटायरल लाभ को स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं है।

भारत के विधि आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति शाह ने एक साक्षात्कार में न्यायमूर्ति गोगोई को राज्यसभा के लिए नामित किये जाने को एक प्रकार का प्रलोभन मानते हैं। जोसेफ ने कहा कि उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं लेने का फैसला किया था। जस्टिस गोगोई ने संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद मामले सहित कई प्रमुख निर्णय सुनाए थे, उन्हें सोमवार को सरकार द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया।

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