कारगिल युद्ध : नमन उस ताशी नामग्याल को भी

बीस साल पहले कारगिल की पहाड़ियों पर भारत पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई में हमने 527 जांबाज जवान खोए। 1363 जवान घायल हुए। सबको नमन। नमन उस ताशी नामग्याल को भी जिसने घुसपैठ की सबसे पहली जानकारी दी थी।

Update: 2019-07-26 11:39 GMT

योगेश मिश्र

लखनऊ: बीस साल पहले कारगिल की पहाड़ियों पर भारत पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई में हमने 527 जांबाज जवान खोए। 1363 जवान घायल हुए। सबको नमन। नमन उस ताशी नामग्याल को भी जिसने घुसपैठ की सबसे पहली जानकारी दी थी। नामग्याल ने यह माना है कि अगर उसका याक नया नबेला नहीं होता तो शायद वह उसकी तलाश करने खुद पहाड़ी पर नहीं जाता। पाकिस्तानी घुसपैठियों को नहीं देख पाता। नामग्याल डेढ़ घंटे बाद भारतीय सेना के 6-7 जवानों के साथ वापस आया और उसने कारगिल पर काबिज पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सेना के जवानों को दिखाये। नामग्याल ने यह याक बारह हजार रुपये में खरीदा था। उसके गांव का नाम ताशी गारकोन है। जो कारगिल से 60 किमी. दूर सिंधु नदी के किनारे बसा है। नामग्याल ही नहीं इस गांव के लोगों को इस बात पर गर्व है कि उन्होंने कारगिल युद्ध में भारत की जीत की भूमिका निभाई थी।

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8 मई, 1999 को पाकिस्तान की छह नॉरर्दन लाइट इंफेंट्री के कैप्टन इफ्तेखार बारह सैनिकों के साथ आजम चौकी पर कब्जा जमाए बैठे थे। इस बात की इत्तिला हमारी सेना और हमारी खुफिया एजेंसियों को भी नहीं थी। उस समय के रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडिज को अगले दिन रूस जाना था। वायु सेना प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक पोलैंड और चेक गणराज्य की यात्रा पर थे। यह सामयिक रूप से पाकिस्तान का जबर्दस्त प्लान था। वे लेह, कारगिल सड़क पर हावी हो गये थे। उनका मकसद सियाचिन गिलेशियर की लाइफलाइन एनएच-1डी को काट कर उस पर नियंत्रण करना था।

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उनकी कोशिश उन पहाड़ियों पर पहुंचने की थी, जहां से वो लद्दाख की ओर जाने वाली रसद रोक दें। मजबूर होकर भारत को सियाचिन छोड़ना पड़े। भारतीय सेना ने आनन-फानन में लामा हेलिकाप्टर कारगिल के पहाड़ियों से गुजारा। दूसरे दिन लामा हेलिकाप्टरों ने आजम, तारिक और तसफीन चौकियों पर गोलाबारी की। पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड कर्नल अशफाक हुसैन ने अपनी किताब ‘विटनेस टू ब्लंडर- कारगिल स्टोरी आनफोर्ड‘ में माना है कि पाकिस्तानी कैप्टन इफ्तेखार ने बटालियन मुख्यालय से भारतीय हेलिकाप्टरों पर गोली चलाने की अनुमति मांगी पर उन्हें नहीं मिली।

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भारत ने 1984 में सियाचिन पर कब्जा किया था। उस समय परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान की कमांडो फोर्स में मेजर थे। उन्होंने सियाचिन को खाली कराने की बहुत कोशिश की पर सफल नहीं हुए। शायद यही वजह थी कि कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी कब्जे की बात उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी नहीं पता थी। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने अपनी आत्मकथा ‘नीदर अ हॉक नॉर अ डव‘ में लिखा है कि जब अटल विहारी वाजपेयी ने नवाज शरीफ को फोन करके कहा कि आप लाहौर में गले मिल रहे हैं और कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर रहे हैं।

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तब शरीफ ने साफ कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है परवेज मुशर्रफ से बात करके जवाब दे पायेंगे। मुशर्रफ ने अपनी आत्मकथा ‘इन द लाइन ऑफ फायर‘ में लिखा है कि यह उनका बहुत अच्छा प्लान था। जिसने भारतीय सेना को दिक्कत में डाला था। सामरिक दृष्टि से पाकिस्तानी सैनिक पहाड़ी के ऊपर थे, भारतीय सेना को नीचे से चढ़कर उन्हें खदेड़ना था। एक पाकिस्तानी जवान को हटाने के लिए 27 भारतीय सैनिक चाहिए थे।

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पर्वतीय लड़ाई में हम कमजोर थे। ऊपर ऑक्सीजन की कमी थी। भारत की बड़ी सफलता तोलोलिंग पर जीत थी। नवाज शरीफ को युद्ध विराम के लिए अमेरिका की शरण में जाना पड़ा। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति क्विलटन ने साफ कहा कि कारगिल युद्ध के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराया जाएगा। ठीक उसी समय भारत ने टाइगर हिल पर अपना कब्जा कर लिया था। बोफोर्स तोपों ने लड़ाई का रुख बदला। टाइगर हिल के मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना के कैप्टन कर्नल शेर खान ने इतनी बहादुरी दिखाई कि भारतीय सैनिकों को दाद देनी पड़ी। शेर खान नॉरर्दन लाइट इंफेंट्री के थे। शेर खान को गिराने में भारतीय सेना का घायल जवान कृपाल सिंह कामयाब हुआ। भारत की सिफारिश पर उन्हें मरणोपरांत पाकिस्तान का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार निशान-ए हैदर दिया गया।

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