Karnataka: कांग्रेस का छोड़ किसी भी दल का नहीं जीता मुस्लिम प्रत्याशी, वादे का असर, अब मांग रहे डिप्टी CM का पद

Karnataka: चुनाव परिणामों को देखकर माना जा रहा है कि राज्य के 13 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस को भारी समर्थन मिला है। कांग्रेस को इस बार 135 सीटों पर जीत हासिल हुई है और भाजपा सिर्फ 66 सीटों पर सिमट गई है।

Update:2023-05-15 16:49 IST
Karnataka Election 2023 (photo: social media )

Karnataka: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली शानदार जीत में मुस्लिम समुदाय का भारी समर्थन भी बड़ा कारण माना जा रहा है। चुनाव परिणामों को देखकर माना जा रहा है कि राज्य के 13 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस को भारी समर्थन मिला है। कांग्रेस को इस बार 135 सीटों पर जीत हासिल हुई है और भाजपा सिर्फ 66 सीटों पर सिमट गई है। एक दिलचस्प बात यह भी है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में नौ मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है और सभी कांग्रेस से ही जुड़े हुए हैं।

कांग्रेस को मुस्लिम समुदाय के भारी समर्थन के पीछे आरक्षण के वादे को भी बड़ा कारण माना जा रहा है। कांग्रेस ने मुस्लिमों से वादा किया था कि सत्ता में आने पर मुस्लिमों के चार फीसदी आरक्षण को बहाल किया जाएगा। राज्य की पूर्ववर्ती बोम्मई सरकार ने इसे समाप्त कर दिया था मगर कांग्रेस की ओर से इसे बहाल करने का वादा किया गया है। कर्नाटक से जुड़े मुस्लिम नेताओं ने राज्य में डिप्टी सीएम का पद मांग कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मुस्लिम नेताओं ने राज्य में पांच अच्छे विभाग भी देने की मांग की है।

सिर्फ कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशियों को मिली जीत

इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से 15 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए थे और इनमें से 9 मुस्लिम उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई है। जनता दल एस ने कांग्रेस से ज्यादा 23 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे मगर पार्टी का कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार जीत हासिल करने में कामयाब नहीं हो सका।

मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे प्रमुखता से उठाने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने दो सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे मगर उन्हें भी कामयाबी नहीं मिल सकी। पीएफआई के राजनीतिक संगठन एसडीपीआई ने भी कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई थी मगर उसे भी कामयाबी नहीं मिली। एसडीपीआई के 16 प्रत्याशियों में से कोई भी जीत नहीं दर्ज कर सका।

हिजाब विवाद का बड़ा केंद्र रहा है कर्नाटक

कर्नाटक हिजाब को लेकर पैदा हुए विवाद का सबसे बड़ा केंद्र रहा है। उडुपी से पैदा हुआ विवाद राज्य के कई इलाकों में फैला था और इसे लेकर लंबी अदालती लड़ाई भी लड़ी गई थी। कर्नाटक में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) भी काफी सक्रिय रहा है। केंद्र सरकार की ओर से पिछले दिनों पीएफआई पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया था। पीएफआई पर बैन लगाया जाने के बाद कर्नाटक में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की है।

इस बार के विधानसभा चुनाव में पीएफआई की गूंज भी खूब सुनाई पड़ी। भाजपा की ओर से कांग्रेस पर बजरंग दल की तुलना पीएफआई से करने का आरोप लगाकर जमकर हमले किए गए थे। भाजपा नेताओं ने अपनी चुनावी सभाओं में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। दरअसल कांग्रेस के घोषणापत्र में बजरंग दल और पीएफआई जैसे धार्मिक संगठनों पर बैन लगाने की बात कही गई थी जिसके बाद भाजपा ने हमलावर रुख अपनाया था।

डिप्टी सीएम का पद और पांच अच्छे विभाग मांगे

इस बीच कर्नाटक के मुस्लिम नेताओं ने राज्य में डिप्टी सीएम का पद किसी मुस्लिम को सौंपने की मांग करके कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सुन्नी उलमा बोर्ड के मुस्लिम नेताओं ने डिप्टी सीएम के साथ ही गृह, राजस्व और स्वास्थ्य सहित पांच अच्छे महकमे मुस्लिम विधायकों को सौंपने की मांग भी की है। कर्नाटक वक्फ बोर्ड के चेयरमैन शफी सादी ने कहा कि हमने चुनाव से पहले ही डिप्टी सीएम के पद की मांग की थी। इसके साथ ही हमने तीस मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने की भी मांग की थी।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस की ओर से 15 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए जिनमें से नौ उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। मुस्लिमों के समर्थन के कारण कांग्रेस को 72 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई है। मुस्लिम समुदाय की ओर से कांग्रेस को व्यापक समर्थन दिया गया है और बदले में अब कांग्रेस को भी मुस्लिम समुदाय को बहुत कुछ देना चाहिए।

अब मांग को पूरा करने का वक्त

उन्होंने मांग की कि राज्य में मुस्लिम डिप्टी सीएम के साथ ही मुस्लिम विधायकों को मंत्रिमंडल के पांच अच्छे विभाग दिए जाने चाहिए। शफी सादी ने कहा कि हमने एक आपात बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा भी की है। उन्होंने कहा कि किस मुस्लिम विधायक को कौन सा महकमा सौंपा जाएगा, इस बात का फैसला करना कांग्रेस नेतृत्व का काम है। मुस्लिम समाज के नेताओं ने कहा कि उन्होंने चुनाव से पहले ही यह मांग रखी थी और अब इस मांग को पूरा करने का वक्त आ गया है।

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