Karnataka Politics: कर्नाटक में अभी खत्म नहीं हुआ सियासी नाटक, इन दिग्गजों ने कांग्रेस की बढ़ाई परेशानी

Karnataka Politics: 20 मई को बेंगलुरू में भव्य शपथग्रहण समारोह की तैयारियां शुरू हो गईं। लेकिन इस बीच राज्य में कांग्रेस के उन दिग्गज नेताओं ने खुलेआम अपनी आहत भावनाओं को प्रकट करना शुरू कर दिया।

Update:2023-05-19 19:05 IST
Karnataka G Parameshwara and MB Patil (photo: social media )

Karnataka Politics: कर्नाटक में बड़ी जीत हासिल करने के बावजूद कांग्रेस को सीएम की कुर्सी पर बैठने वाला वो शख्स कौन होगा, ये तय करने में पसीने छूट गए। बेंगलुरू से लेकर दिल्ली तक पांच दिनों तक मैराथन बैठकों का दौर चला और सूत्रों के हवाले से मीडिया में खबरें छन-छन कर आती रहीं। कभी सिद्धारमैया तो कभी डीके शिवकुमार का पलड़ा भारी बताया जाता रहा। लेकिन अंततः बाजी कर्नाटक की राजनीति के रजनीकांत कहे जाने वाले कद्दावर ओबीसी लीडर सिद्धारमैया के हाथ लगी।

यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के दखल के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के तेवर पर नरम पड़े और वे सिद्धारमैया के डिप्टी बनने के लिए तैयार हो गए। कल यानी 20 मई को बेंगलुरू में भव्य शपथग्रहण समारोह की तैयारियां शुरू हो गईं। लेकिन इस बीच राज्य में कांग्रेस के उन दिग्गज नेताओं ने खुलेआम अपनी आहत भावनाओं को प्रकट करना शुरू कर दिया, जिन्हें उम्मीद थी कि सिद्धारमैया-शिवकुमार के बीच चल रही जंग का फायदा तीसरे शख्स के रूप में उन्हें मिलेगा।

कर्नाटक कांग्रेस के जिन दो नेताओं ने आलाकमान के घोषणा के बाद फौरन मीडिया में नाराजगी जाहिक की वे कोई मामूली नेता बल्कि अपने-अपने समुदाय से आने वाले बड़े नेता हैं। ये हैं दलित लीडर जी परमेश्वर और लिंगायत नेता एमबी पाटिल। विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो इस बार इन दोनों समुदायों ने कांग्रेस पार्टी को जमकर वोट किया है। जिसके कारण इन दो कद्दावर नेताओं को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री न सही तो कम से कम उपमुख्यमंत्री का पद उनके हिस्से जरूर आएगा।

जी परमेश्वर ने खुलेआम जाहिर की थी नाराजगी

6 बार के विधायक और आठ साल तक कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे जी परमेश्वर की पहचान राज्य में कद्दावर नेता के रूप में होती है। दलित वर्ग से आने वाले परमेश्वर का इस तबके में खासा प्रभाव है। 1989 में पहली बार विधायकी का चुनाव जीतने वाले परमेश्वर कई सरकारों में मंत्री भी रहे हैं। साल 2018 में कांग्रेस और जेडीएस की मिलीजुली सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया था, वे राज्य के पहले दलित डिप्टी सीएम थे।

18 मई को जब दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान ने कर्नाटक के कप्तान (सीएम) और उप कप्तान (डिप्टी सीएम) की घोषणा की थी तो परमेश्वर से रहा नहीं गया। उन्होंने फौरन मीडिया के जरिए अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि मैं भी सरकार चला सकता था। राज्य में एक दलित सीएम की डिमांड थी। अगर सीएम नहीं तो कम से कम मुझे डिप्टी सीएम तो जरूर बनाना चाहिए था। अकूल संपत्ति के मालिक परमेश्वर कहते हैं कि मैं भी 50 विधायकों को अपने समर्थन में खड़ा सकता हूं।

कर्नाटक कांग्रेस में जी परमेश्वर को सिद्धारमैया विरोधी खेमे का नेता माना जाता है। साल 2013 में महज छह साल पहले पार्टी में शामिल हुए सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बना दिया गया था, जिससे उन्हें काफी झटका लगा था। दोनों के बीच मतभेद उस समय सार्वजनिक हो गए जब परमेश्वर ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कोलार सीट से शिकस्त का ठीकरा सिद्धारमैया पर फोड़ दिया था। मुस्लिम – दलित बहुल इस सीट पर सिद्धारमैया का खासा असर है और वे इस बार यहां से भी चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें केवल एक सीट वरूणा से ही चुनाव लड़ने को कहा था।

एमबी पाटिल सीएम पद पर ठोंकी थी दावेदारी

कर्नाटक का सबसे प्रभावशाली समुदाय लिंगायत बीएस येदियुरप्पा के कारण बीजेपी का वोटबैंक माना जाता है। जिसमें इसबार कांग्रेस सेंध मारने में सफल रही। पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार और पूर्व मंत्री लक्ष्मण सावदी जैसे बड़े भाजपाई लिंगायत नेताओं के पार्टी छोड़ने के कारण वो बीजेपी को लिंगायत विरोधी साबित करने में काफी हद तक सफल रहे। जिसके कारण बीजेपी की टिकट पर लड़ने वाले ज्यादातर लिंगायतों की हार हुई। इस नतीजे से कांग्रेस में लिंगायत के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले एमबी पाटिल का कद बढ़ गया है।

एमबी पाटिल विधानसभा चुनाव में प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष थे। 5 बार के विधायक, सांसद और मंत्री रह चुके पाटिल पहले ही सीएम पद की अपनी लालसा को जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी के अन्य नेताओं की तरह मैं भी मुख्यमंत्री बनने की काबिलियत रखता हूं। डिप्टी सीएम का पोस्ट न मिलने से नाराज पाटिल ने कांग्रेस को सरकार में लिंगायतों को उचित स्थान देने की मांग कर दी है, ऐसा उन्होंने नतीजों को ध्यान में रखकर कहा है।

इन नेताओं की दावेदारी कैसे हुई खारिज ?

दरअसल, कांग्रेस आलाकमान शुरू में अगले आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए कर्नाटक की लगभग सभी प्रमुख जातियों को साधने का प्लान बनाया था। ताकि 2024 में बीजेपी को यहां अधिक से अधिक नुकसान हो। कांग्रेस सिद्धारमैया के रूप में ओबीसी सीएम के साथ-साथ तीन डिप्टी सीएम बनाना चाहती थी, जो कि अन्य प्रभावशाली समुदायों मसलन वोक्कालिगा, लिंगायत और दलित वर्ग से आते। तय फॉर्मूले के मुताबिक, डीके शिवकुमार वोकालिग्गा कोटे से, जी परमेश्वर दलित कोटे से और एमबी पाटिल को लिंगायत कोटे से उपमुख्यमंत्री बनाया जाना था। लेकिन डीके शिवकुमार ने एकमात्र डिप्टी सीएम की मांग रखकर हाईकमान के सामने बड़ी चुनौती पैदा कर दी और आखिरकार वे अपनी मांग मनवाने में सफल रहे।

दिल्ली रवाना हुए सिद्धारमैया और डीके

कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी के बीच सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार शपथग्रहण समारोह से एक दिन पहले दिल्ली रवाना हो गए हैं। माना जा रहा है कि इस दौरान वे शपथग्रहण का न्योत देने के साथ-साथ पार्टी के सीनियर नेताओं के बागी रूख पर भी चर्चा करेंगें। हालांकि, पार्टी के केंद्रीय नेताओं के दखल के बाद मीडिया में बयानबाजी कर रहे एमबी पाटिल और परमेश्वर के स्वर अब बदलने लगे हैं और उन्होंने हाईकमान के फैसले का अब समर्थन करना शुरू कर दिया है।

Tags:    

Similar News