Karnataka: पीएम के खिलाफ अपशब्द अपमानजनक लेकिन देशद्रोह नहीं

Karnataka: न्यायमूर्ति चंदनगौदर ने अपने फैसले में कहा : सरकारी नीति की रचनात्मक आलोचना की अनुमति है, लेकिन नीतिगत निर्णय लेने के लिए संवैधानिक पदाधिकारियों का अपमान नहीं किया जा सकता है।

Update:2023-07-07 19:14 IST
वित्तीय अनियमितता करने वाले पूर्व प्रधान की जमानत अर्जी निरस्त: Photo- Social Media

Karnataka: कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि प्रधानमंत्री के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल अपमानजनक तो है लेकि देशद्रोह के तहत नहीं आती है. एफआईआर रद कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक स्कूल प्रबंधन के खिलाफ देशद्रोह के मामले को रद्द करते हुए ये बात कही है। कर्नाटक हाईकोर्ट की कलबुर्गी पीठ में न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर ने बीदर के शाहीन स्कूल के सभी प्रबंधन व्यक्तियों अलाउद्दीन, अब्दुल खालिक, मोहम्मद बिलाल इनामदार और मोहम्मद महताब के खिलाफ पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को रद कर दिया। अदालत ने कहा कि मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 (ए) (धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य पैदा करना) के तत्व नहीं पाए जाते हैं। अदालत ने कहा : ''प्रधानमंत्री को जूते से मारने जैसे अपशब्द कहना न केवल अपमानजनक है बल्कि गैर-जिम्मेदाराना है। न्यायमूर्ति चंदनगौदर ने अपने फैसले में कहा : सरकारी नीति की रचनात्मक आलोचना की अनुमति है, लेकिन नीतिगत निर्णय लेने के लिए संवैधानिक पदाधिकारियों का अपमान नहीं किया जा सकता है।

क्या था मामला?

21 जनवरी, 2020 को बीदर के शाहीन स्कूल के कक्षा 4, 5 और 6 के छात्रों द्वारा सीएए और एनआरसी के खिलाफ एक नाटक खेला गया था। इसके बाद स्कूल अधिकारियों के खिलाफ राजद्रोह की एफआईआर दर्ज की गई थी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ता नीलेश रक्षाला की शिकायत के बाद चार लोगों पर आईपीसी की धारा 504 (जानबूझकर किसी का अपमान करना), 505 (2), 124 ए (देशद्रोह), और 153 ए के साथ आईपीसी की धारा 34 के तहत आरोप लगाए गए थे। आरोप लगाया गया था कि नाटक में सरकार के विभिन्न अधिनियमों की आलोचना की गई थी और कहा गया था कि "यदि ऐसे अधिनियमों को लागू किया जाता है, तो मुसलमानों को देश छोड़ना पड़ सकता है।"

क्या कहा अदालत ने

अदालत ने कहा कि "नाटक स्कूल परिसर के भीतर खेला गया था। बच्चों द्वारा लोगों को हिंसा के लिए उकसाने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के लिए कोई शब्द नहीं बोले गए हैं।" अदालत ने कहा : यह नाटक तब सार्वजनिक हुआ जब एक आरोपी ने इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपलोड किया।इसलिए, किसी भी स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं ने लोगों को सरकार के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाने या सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने के इरादे से नाटक किया था। इसलिए.आवश्यक सामग्री के अभाव में धारा 124 ए (देशद्रोह) और धारा 505 (2) के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करना अस्वीकार्य है।
अदालत ने अपने फैसले में स्कूलों को बच्चों को सरकारों की आलोचना से दूर रखने की भी सलाह दी। अदालत ने कहा कि वर्तमान राजनीतिक मुद्दों पर मंडराते रहने से युवा दिमाग पर छाप पड़ती है या भ्रष्ट हो जाती है। उन्हें ज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि का ज्ञान दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें लाभ हो।
हाई कोर्ट का पूरा निर्णय हाल ही में अपलोड किया गया था।

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