कश्मीरः विरोध के फायदे

कश्मीर के सवाल पर विरोधी दल आपस में बंटे हुए हैं। कुछ दल कह रहे हैं कि कश्मीरियों पर लगे प्रतिबंध हटाओ। बस इतना ही। कुछ कह रहे हैं कि प्रतिबंध तुरंत हटाओ और वे धारा 370 और 35 ए को हटाने का भी विरोध कर रहे हैं।

Update:2019-08-24 14:29 IST
कश्मीरः विरोध के फायदे

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ : कश्मीर के सवाल पर विरोधी दल आपस में बंटे हुए हैं। कुछ दल कह रहे हैं कि कश्मीरियों पर लगे प्रतिबंध हटाओ। बस इतना ही। कुछ कह रहे हैं कि प्रतिबंध तुरंत हटाओ और वे धारा 370 और 35 ए को हटाने का भी विरोध कर रहे हैं। और कुछ विरोधी दल ऐसे हैं, जो यों तो पानी पी-पीकर भाजपा को कोसते रहते हैं लेकिन कश्मीर के मामले पर मौन धारण किए हुए हैं। जैसे आप, बसपा और पंवार-कांग्रेस !

नेता सोच रहे अपना-अपना फायदा

इन दलों के नेता अपना दूर का फायदा सोच रहे हैं। उन्हें पता है कि यदि कश्मीर पर हमने भाजपा का विरोध किया और कांग्रेस का साथ दिया तो हमारी दशा भी कांग्रेस-जैसी हो सकती है। कांग्रेस की तो मजबूरी है। उसमें गुलाम नबी आजाद जैसा- कश्मीरी, पार्टी का बड़ा नेता है। उसने संसद में पहले दिन जो बोल दिया, अब कांग्रेस उसे वापस कैसे ले सकती है, हालांकि कांग्रेस के ही कई प्रमुख नेताओं ने सरकार के कश्मीर-कदम की तारीफ कर दी है।

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द्रमुक और कांग्रेस ने कल दिल्ली में सरकार के विरोध में जो विपक्ष का प्रदर्शन रखा था, उसमें आप, बसपा और पंवार-कांग्रेस तो दिखाई ही नहीं पड़ी और तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक ने कश्मीर के सिर्फ मानव अधिकारों के दमन का मुद्दा उठाया।

वामपंथी पार्टियों और सपा के नेता कश्मीर में हुई कार्रवाई को सांप्रदायिक रंग में रंगने की कोशिश करते रहे। वे इसे हिंदू-मुसलमान का मुद्दा बनाने पर तुले हुए हैं। क्या वे नहीं जानते कि भारत के औसत मुसलमान कश्मीर को इस्लामी मुद्दा नहीं मानते। इसे वे कश्मीरियत का मुद्दा मानते हैं।

यदि कश्मीरियों के साथ उनका एकात्म होता तो वे पिछले 15-16 दिन में सारे हिंदुस्तान को सिर पर उठा लेते, क्योंकि प्रतिबंध तो सिर्फ जम्मू—कश्मीर में ही हैं। जहां तक विरोधी दलों द्वारा कश्मीरी पार्टियों के गिरफ्तार नेताओं के पक्ष में दिए जा रहे बयानों का सवाल है, मैं उनका तहे-दिल से स्वागत करता हूं, क्योंकि इसके कई फायदे हैं।

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ये हैं फायदे

एक तो यह कि ये सब बयान गिरफ्तार नेताओं के घावों पर मरहम लगाएंगे। उन्हें लगेगा कि भारत में हमारे लिए बोलनेवाले लोग भी हैं।

दूसरा, सरकार के विरोध या कश्मीरी नेताओं के समर्थन की यह आवाज भारतीय लोकतंत्र के स्वस्थ होने का संकेत देती है।

तीसरा, कश्मीर की जनता भी सोचेगी कि भारत में हमारे दुख-दर्द को समझनेवाले लोग भी हैं।

चौथा, पाकिस्तानी मीडिया इन सरकार-विरोधी बयानों का प्रचार जमकर करता है।

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इससे अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की छवि बिगड़ने से बची रहती है। यह आरोप अपने आप में खारिज हो जाता है कि भारत में तानाशाही, फाशीवाद और वंशवाद का बोलबाला हो गया है।

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