Kerala HC: 'लिव-इन रिलेशनशिप को कानून नहीं मानता शादी', तलाक की मांग पर केरल हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी

Kerala HC on Live In Relationship: हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा है कि, सामाजिक संस्था के रूप में विवाह सामाजिक और नैतिक आदर्शों को दर्शाता है। इनका पालन भी किया जाता है। कानून में भी इसे पुष्ट किया है। वर्तमान में कानूनी रूप से लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह का दर्जा प्राप्त नहीं है।

Update:2023-06-13 21:10 IST
केरल हाईकोर्ट (Social Media)

Kerala HC on Live In Relationship: केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों पर अहम टिप्पणी की है। केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि, 'इन संबंधों को शादी के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती। ऐसा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है जो लिव इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) को विवाह के रूप में मान्यता देता हो।'

केरल हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि, अगर दो लोग केवल आपसी समझौते के आधार पर एक साथ रहते हैं, तो इसका तात्पर्य ये नहीं है कि वे विवाह अधिनियम (Marriage Act) के दायरे में आते हैं। केरल हाईकोर्ट के जस्टिस मोहम्मद मुश्ताक (Justice Mohammed Mushtaq) और जस्टिस सोफी थॉमस (Justice Sophie Thomas) की दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि, 'ऐसे जोड़ों का साथ रहना विवाह होना नहीं है। ना ही इसमें तलाक की मांग की जा सकती है।'

लिव-इन रिलेशनशिप पर क्या कहा हाईकोर्ट ने?

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले पर आगे कहा, 'सामाजिक संस्था के रूप में 'विवाह' सामाजिक और नैतिक आदर्शों को दर्शाता है। वहां इनका पालन भी किया जाता है। कानून भी इसे पुष्ट करता है। सामाजिक तौर पर इसे मान्यता दी गई है। कोर्ट ने आगे कहा, वर्तमान में कानूनी रूप से लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह (Live In Relationship vs Marriage) का दर्जा नहीं दिया गया है। कानून केवल तभी मान्यता देता है, जब विवाह को व्यक्तिगत कानून (Personal Law) के अनुसार या विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के अनुसार संपन्न किया जाता है।'

क्या है मामला?

केरल उच्च न्यायालय ने ये टिप्पणी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक जोड़े की याचिका पर की। बता दें, याचिकाकर्ता जोड़े में एक हिंदू तो दूसरा ईसाई है। दोनों ने साल 2006 में एक समझौते के आधार पर पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने का निर्णय लिया था। रिश्ते में साथ रहने के दौरान उनका एक बच्चा भी है। अब वे दोनों अपने रिश्ते को खत्म करना चाहते हैं। इसी बाबत दोनों ने परिवार न्यायालय (Family Court) का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, वहां से उन्हें निराशा हाथ लगी। फैमिली कोर्ट ने भी उन्हें तलाक देने से साफ इनकार कर दिया था। कोर्ट ने तर्क दिया कि उनका विवाह किसी अधिनियम के तहत नहीं हुआ था। ऐसे में वे तलाक की मांग नहीं कर सकते। जिसके बाद जोड़ा केरल हाई कोर्ट की शरण में गया।

कोर्ट ने की अहम टिप्पणी

इस याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने ये भी कहा कि तलाक (Divorce) कानूनी रूप से शादी तोड़ने का एक जरिया भर है। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों को इस तरह की कोई मान्यता नहीं दी जा सकती।

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