नई दिल्ली। पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए ऑपरेशन जिब्राल्टर चलाया था जिसके फेल होने के कारण दोनों देशों के बीच 1965 का युद्ध हुआ था। इस युद्ध को शांत करने के लिए दोनों देशों के बीच ताशकंद समझौता हुआ था। हम आपको बता रहें हैं कि यह समझौता किस प्रकार और किन परिस्तिथियों के हुआ था।
क्या है आपरेशन जिब्राल्टर
अगस्त 1965 के पहले सप्ताह में, पाकिस्तान के 30 हजार से 40 हजार सैनिकों ने कश्मीर से लगी भारतीय सीमा में घुसने के लिए “ऑपरेशन जिब्राल्टर” चलाया था। इनका लक्ष्य कश्मीर के चार ऊंचाई वाले इलाकों गुलमर्ग, पीरपंजाल, उरी और बारामूला पर कब्ज़ा करना था ताकि यदि भारी लड़ाई छिड़े तो पाकिस्तान की सेना ऊँचाई पर बैठकर भारत की सेना के दांत खट्टे कर सके और अंत में कश्मीर पर कब्ज़ा किया जा सके।
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जानिए ताशकंद समझौता कब हुआ
ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 11 जनवरी 1966 को हुआ एक शांति समझौता था। इस समझौते में यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान अपनी-अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से तय करेंगे। 25 फरवरी 1966 तक दोनों देश अपनी सेनाएं सीमा रेखा से पीछे हटा लेंगे।
दोनों देशों के बीच आपसी हितों के मामलों में शिखर वार्ताएं तथा अन्य स्तरों पर वार्ताएं जारी रहेंगी। भारत-पाक के बीच संबंध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित होंगे। दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध फिर से स्थापित किए जाएंगे।
आप को बता दें कि वर्ष 1966 में ताशकंद में भारत-पाकिस्तान समझौते पर दस्तख़त करने के बाद शास्त्री बहुत दबाव में थे। पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस कर देने के कारण उनकी भारत में काफ़ी आलोचना हो रही थी।
उन्होंने देर रात अपने घर दिल्ली फ़ोन मिलाया। "जैसे ही फ़ोन उठा, उन्होंने कहा अम्मा को फ़ोन दो। उनकी बड़ी बेटी फ़ोन पर आई और बोलीं अम्मा फ़ोन पर नहीं आएंगी। उन्होंने पूछा क्यों? जवाब आया इसलिए क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया। वो बहुत नाराज़ हैं। शास्त्री को इससे बहुत धक्का लगा।
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वाजपेई व मेनन ने की थी ताशकंद समझौते की थी आलोचना
कहते हैं इसके बाद वो कमरे का चक्कर लगाते रहे। फिर उन्होंने अपने सचिव वैंकटरमन को फ़ोन कर भारत से आ रही प्रतिक्रियाएं जाननी चाही। वैंकटरमन ने उन्हें बताया कि तब तक दो बयान आए थे, एक अटल बिहारी वाजपेई का था और दूसरा कृष्ण मेनन का और दोनों ने ही उनके इस क़दम की आलोचना की थी।"
ताशकंद में शास्त्री जी का हुआ था देहांत
11 जनवरी, 1966 अर्थात समझौते का दिन शास्त्री की जिंदगी का आखिरी दिन साबित हुआ। रात करीब 9:30 बजे का वक्त था और पूरा प्रोग्राम निपट गया था, अयूब और शास्त्री ने आखिरी बार हाथ मिलाकर विदा ली।
इसके बाद वो दोनों अपने-अपने कमरों में चले गए। कहते हैं कि करीब चार घंटे बाद, रात तकरीबन डेढ़ बजे लाल बहादुर शास्त्री को दिल का दौरा आया। उनकी वहीं मौत हो गई। अरशद शामी खान की एक किताब है- Three Presidents and an Aide: Life, Power and Politics। अरशद ने इस किताब में शास्त्री की मौत के समय का एक वाकया लिखा है-
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अजीज अहमद को शास्त्री की खबर मिली। वो खुशी से झूमता हुआ भुट्टो के कमरे में पहुंचा और कहा- वो ‘हरा*’ मर गया। भुट्टो ने पूछा- दोनों में से कौन? हमारा वाला या उनका वाला?
समझौते पर दस्तखत किए जाने के कुछ ही घंटों के भीतर उनकी मौत हो गई। शास्त्री जी की मौत को लेकर कई तरह के कयास लगाए जाते हैं। कोई कहता है कि अमेरिका का हाथ, कोई पाकिस्तान का हाथ, कोई कहता है उन्हें जहर दिया गया था और कई तरह की कॉन्सपिरेसी थिअरीज हैं।
मरणोपरांत शास्त्री जी को दिया गया भारत रत्न
भारत का यह दुर्भाग्य ही रहा कि ताशकंद समझौते के बाद वह इस छोटे क़द के महान पुरुष के नेतृत्व से हमेशा-हमेशा के लिए वंचित हो गया। उन्हें 1966 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया।