अहमद पटेल: कांग्रेस के संकटमोचक, गांधी परिवार ने हमेशा आंख मूंदकर किया भरोसा

अहमद पटेल की गिनती सोनिया गांधी के सबसे करीबी सलाहकारों में होती थी। कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार किए जाने वाले पटेल कभी सरकार का हिस्सा नहीं रहे। उनके निधन को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

Update: 2020-11-25 04:23 GMT
अहमद पटेल: कांग्रेस के संकटमोचक, गांधी परिवार ने हमेशा आंख मूंदकर किया भरोसा

नई दिल्ली: गांधी परिवार के काफी करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल का बुधवार को तड़के निधन हो गया। 1977 में आपातकाल के खिलाफ गुस्से की लहर के बावजूद लोकसभा का चुनाव जीतने वाले अहमद पटेल को कांग्रेस का स्तंभ माना जाता रहा है।

सियासी हलकों में उन्हें कांग्रेस का चाणक्य और संकटमोचक माना जाता था और उनकी गिनती सोनिया गांधी के सबसे करीबी सलाहकारों में होती थी। कांग्रेस के सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार किए जाने वाले पटेल कभी सरकार का हिस्सा नहीं रहे। उनके निधन को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

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पिता की छत्रछाया में सीखा सियासत का ककहरा

गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर में 21 अगस्त 1949 को पैदा हुए अहमद पटेल अपने लंबे सियासी जीवन के दौरान आठ बार सांसद बनने में कामयाब हुए। उन्होंने तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता जबकि पांच बार वे राज्यसभा के सदस्य बने। अहमद पटेल के पिता मोहम्मद इशक जी पटेल भी कांग्रेस के नेता थे और अहमद पटेल ने पिता की छत्रछाया में ही सियासत का ककहरा सीखा। सियासी मैदान में उतरने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांधी परिवार का इतना करीबी होने के बावजूद उन्होंने अपने बेटे और बेटी को सियासत में स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं किया।

1977 में चुनाव जीतकर सबको चौंकाया

आपातकाल के बाद 1977 में हुए उपचुनाव के दौरान कांग्रेस को पूरे देश में जबर्दस्त झटका लगा था मगर आपातकाल विरोधी लहर के बावजूद अहमद पटेल उस समय 26 साल की उम्र में लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। उन्होंने अपनी इस जीत से सभी सियासी पंडितों को चौंका दिया था। इसके बाद पटेल 1980 और 1984 का चुनाव भी भरूच लोकसभा सीट से जीतने में कामयाब रहे। सियासी जानकारों का कहना है कि 1980 में सत्ता में वापसी के बाद इंदिरा गांधी उन्हें सरकार में लेना चाहती थी मगर अहमद पटेल इसके लिए राजी नहीं हुए।

मंत्री बनने की जगह संगठन को तरजीह

1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को जबर्दस्त बहुमत मिला था। राजीव गांधी की अगुवाई में कांग्रेस 400 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही थी। चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने भी अहमद पटेल को अपनी कैबिनेट में शामिल करने की इच्छा जताई थी मगर अहमद पटेल ने फिर संगठन के काम को ही प्राथमिकता देने का रास्ता चुना। अहमद पटेल 1977 से 1982 तक गुजरात युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और फिर 1983 से दिसंबर 1984 तक वह कांग्रेस के जॉइंट सेक्रेटरी भी रहे।

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बुरे दौर में भी की पार्टी की सेवा

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने तो पटेल को कांग्रेस कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया। वे अंत तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य बने रहे। हालांकि 1991 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद पटेल को किनारे लगा दिया गया और उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सदस्यता के अलावा सभी पदों से हटा दिया गया। इस दौरान भी पटेल लगातार पार्टी की सेवा में निष्ठा के साथ जुटे रहे और हर कदम पर गांधी परिवार मदद देने का काम नहीं छोड़ा।

गांधी परिवार की पटेल पर निर्भरता

अहमद पटेल की एक खासियत यह भी थी कि गांधी परिवार का सबसे करीबी और भरोसेमंद होने के बावजूद वे हमेशा लोप्रोफाइल में रहा करते थे। इतना ताकतवर नेता होने के बावजूद उन्होंने कभी भी सरकार में मंत्री पद स्वीकार नहीं किया और हमेशा संगठन का ही काम करते रहे। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी अपने तमाम फैसलों के लिए अहमद पटेल पर ही निर्भर रहा करती थीं। सियासी जानकारों के मुताबिक कोई भी मुद्दा सामने आने पर सोनिया यह कहा करती थी कि वह सोचकर बताएंगी। बाद में वे अहमद पटेल की सलाह पर ही फैसले लिया करती थीं।

भाजपा की घेरेबंदी को कर दिया था फेल

अहमद पटेल को सियासत का काफी माहिर खिलाड़ी माना जाता था। गुजरात में पिछले राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा के जबर्दस्त घेराबंदी के बावजूद अहमद पटेल चुनाव जीतने में कामयाब रहे। भाजपा ने पटेल को हराने के लिए हर संभव प्रयास किया मगर पटेल ने सियासी कौशल से भाजपा की हर चाल को नाकाम करते हुए विजय हासिल करने में कामयाबी पाई।

महत्वपूर्ण फैसलों में होती थी पटेल की भूमिका

जानकारों का कहना है कि पटेल देर रात तक काम किया करते थे और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ उनका नजदीकी जुड़ाव था। वे पार्टी की रणनीति बनाने में काफी माहिर थे और यही कारण था कि यूपीए वन और टू के कई महत्वपूर्ण फैसले अहमद पटेल की सहमति के बाद ही लिए गए थे। वे गांधी परिवार के काफी भरोसेमंद थे और गांधी परिवार भी महत्वपूर्ण फ़ैसले के लिए उन्हीं पर निर्भर रहा करता था। यही कारण है कि अहमद पटेल के निधन को सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि गांधी परिवार के लिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है।

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राहुल और प्रियंका को लगा झटका

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने शोक संदेश में अहमद पटेल को पार्टी का स्तंभ बताया है। राहुल ने कहा कि वे कठिन समय में भी पार्टी के साथ खड़े रहे और हम उन्हें हमेशा याद रखेंगे। उन्होंने परिवार के प्रति अपनी संवेदना जताई है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा कि मैं लगातार उनसे सलाह और परामर्श लेती थी। वह ऐसे दोस्त थे जो हम सभी के साथ खड़े रहे। उनके निधन ने एक विशाल शून्य छोड़ा है। प्रियंका ने उनकी आत्मा की शांति की कामना की है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कई अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भी अहमद पटेल के निधन पर गहरा शोक जताया है।

अंशुमान तिवारी

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