जान लो! NRC की कहानी, इस वृद्ध ने बढ़ाया था कदम
मोदी सरकार की प्रमुख मुद्दों में से एक एनआरसी अर्थात 'नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस' रहा है। असम में एनआरसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य याचिकाकर्ता अभिजीत शर्मा के मुताबिक 10 साल पहले 2009 में प्रदीप कुमार भुयन ने इस दिशा में पहल की थी, और उन्होंने इस मुद्दे को उठाया है।
असम: असम के लिए आज सबसे खास दिन रहा। असम में एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी की जा चुकी है। इस लिस्ट में 19 लाख लोग बाहर रह गए हैं। अब उन 19 लाख लोगों को ये साबित करना होगा कि वे भारतीय नागरिक है।
क्या आप जानते हैं कि एनआरसी के पीछे की क्या कहानी रही, इस मुद्दे को उठाने वाले वृद्ध पुरुष कौन थे? आइये आप को बताते हैं,10 साल पहले कैसे शुरू हुई एनआरसी लागू करवाने की लड़ाई..
एनआरसी प्रमुख मुद्दा...
मोदी सरकार की प्रमुख मुद्दों में से एक एनआरसी अर्थात 'नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस' रहा है। असम में एनआरसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुख्य याचिकाकर्ता अभिजीत शर्मा के मुताबिक 10 साल पहले 2009 में प्रदीप कुमार भुयन ने इस दिशा में पहल की थी, और उन्होंने इस मुद्दे को उठाया है।
प्रदीप कुमार ने एनआरसी को लेकर एक याचिका तैयार की थी और स्वयंसेवी संगठन असम पब्लिक वर्क्स के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा को सुप्रीम कोर्ट में याचितकाकर्ता बनने के लिए मनाया था। उसके बाद से ही पूरे देश में एनआरसी का मुद्दा चर्चा का विषय बना रहा।
अभिजीत ने बताया...
अभिजीत ने बताया कि प्रदीप कुमार भुयन,असम में एनआरसी लागू करवाने के लिए बड़ी कानूनी लड़ाई लड़ी और उनकी पत्नी बांती भुयन और सरकारी अफसर नबा कुमार डेका की वजह से ही एनआरसी का मसौदा बन पाया।
खास बात यह है कि प्रदीप कुमार भुयन ने एनआरसी के मसले पर कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए अपने पास से मोटी रकम खर्च की है।
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प्रदीप कुमार भुयन पर एक नजर...
बता दें कि प्रदीप कुमार भुयन 1958 बैच के आईआईटी खड़गपुर से पास आउट हैं। भुयन शिक्षाविद रहे हैं। 70 के दशक में उन्होंने गुवाहाटी में अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की शुरुआत की थी।
उल्लेखनीय है कि प्रदीप कुमार भुयन ने एनआरसी का मुद्दा उछलने के बाद भी मीडिया से दूरी बना ली थी। एनआरसी की पहली लिस्ट बाहर आने के बाद लोगों का मानना है कि भुयन न होते तो असम में एनआरसी लागू नहीं होता।
आये मीडिया के सामने...
84 साल के प्रदीप भुयन ने मीडिया के सामने आये और एनआरसी के मुद्दे पर खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि पहली बार 2009 में एनजीओ चलाने वाले अभिजीत शर्मा उनके पास गये थे।
अभिजीत ने माना था कि असम को बाहरी घुसपैठिए बर्बाद कर रहे हैं, साथ ही एनआरसी का मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा है। अभिजीत ने ही प्रदीप कुमार भुयन को एनआरसी का मसौदा बनाने के लिए तैयार किया।
प्रदीप कुमार भुयन ने बताया कि मसौदा बनाना काफी कठिन था। मसौदा तैयार करने के लिए असम मे रह रहे लोगों के डेटा की जरूरत थी। उन्होंने 1971 के चुनाव आयोग का डेटा हासिल किया।
साथ ही उन्होंने डेटा हासिल करने के बाद हर चुनाव क्षेत्र के वोटर्स और उसके चुनाव नतीजों की गहराई से पड़ताल की। जुलाई 2009 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया।
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राजनीति का शिकार हुआ यह मुद्दा...
प्रदीप कुमार ने मानते हैं कि यह मुद्दा भी राजनीति की भेंट चढ़ गया था। सिर्फ राजनीति की वजह से इस मुद्दे को लटकाया जा रहा था। वोटबैंक पॉलिटिक्स असम को बर्बाद कर रही थी। बाहरी घुसपैठिए राजनीतिक ताकत हासिल कर रहे थे। असम के अपने ही लोग सबकुछ देखते हुए कुछ नहीं कर पा रहे थे।
लिस्ट से बाहर लोगों का अब क्या...
प्रदीप भुयन ने मीडिया के सामने आये और एनआरसी के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि 1985 से इस मसले को क्यों लटका कर रखा गया? एनआरसी की प्रक्रिया इतनी लंबी और मशक्कत वाली है कि इसका असर होना ही था। एक फीसदी की गड़बड़ी भी लाखों लोगों को प्रभावित कर सकती है। सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
साथ ही साथ प्रदीप कुमार का कहना है कि बाहर से आए लोगों को अचानक से देश के बाहर फेंक देना भी ठीक नहीं होगा। सरकार पहले ही कह चुकी है कि एनआरसी लिस्ट से बाहर रह गए लोगों को मौका दिया जाएगा। वो फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं। उनके लिए कई विकल्प खुले है, हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।