बीबी लाल: आलोचक भी नहीं काट सके तर्क, किया था इस बात का बड़ा खुलासा
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में 1921 में पैदा होने वाले बीबी लाल की उम्र इस समय 100 वर्ष की हो चुकी है। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से पहले उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।
नई दिल्ली: इस साल के पद्म पुरस्कारों की घोषणा की जा चुकी है। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण के लिए जिन सात लोगों को चुना गया है उनमें प्रोफ़ेसर ब्रज बासी लाल (बी.बी.लाल) का नाम भी शामिल है। पुरातत्व के क्षेत्र में बी.बी.लाल ने उल्लेखनीय काम किया है और वे 1968-72 के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के प्रमुख के तौर पर भी काम कर चुके हैं।
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वैसे तो उनके खाते में तमाम उपलब्धियां दर्ज हैं मगर सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि प्रोफेसर लाल ने ही बाबरी मस्जिद के नीचे राम मंदिर के दबे होने की बात का खुलासा किया था। इस खुलासे के बाद उन्हें दुनिया भर के वामपंथी इतिहासकारों की आलोचना का शिकार बनना पड़ा था।
पद्म विभूषण से पहले पद्मभूषण
उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में 1921 में पैदा होने वाले बीबी लाल की उम्र इस समय 100 वर्ष की हो चुकी है। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से पहले उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। यह सम्मान उन्हें सन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय मिला था। इस सम्मान के करीब दो दशक बाद उन्हें पद्म विभूषण देने का एलान किया गया है।
बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर होने का खुलासा
प्रोफ़ेसर बीबी लाल की अगुवाई में हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश), शिशुपालगढ़ (उड़ीसा), पुराना किला (दिल्ली) और कालीबंगन (राजस्थान) आदि प्रमुख स्थानों पर खुदाई की जा चुकी है।
उन्होंने ही इस बात का पता लगाया था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद की नींव के नीचे राम मंदिर है। बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में उनकी थ्योरी ने भी काफी मदद की और आखिरकार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो सका।
बदल दी अयोध्या विवाद पर बहस की दिशा
प्रोफेसर बीबी लाल की एक किताब राम उनकी ऐतिहासिकता, मंदिर और सेतु: साहित्य पुरातत्व और अन्य विज्ञान काफी चर्चित रही है और इस पुस्तक को लेकर खासी बहस हुई थी। इस पुस्तक ने अयोध्या विवाद से जुड़ी बहस की दिशा ही बदल दी क्योंकि इसमें विवादित ढांचे के नीचे मंदिर होने की बात कही गई थी।
प्रोफेसर बीबी लाल ने रामायण से जुड़े अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, श्रृंगवेरपुर, नंदीग्राम और चित्रकूट जैसे स्थलों की खुदाई करके दुनिया को कई नए तथ्यों की जानकारी दी।
शोध पत्रों में महत्वपूर्ण जानकारियां
हिंदू धर्म के जिस इतिहास को गायब कर दिया गया था, इन तथ्यों के जरिए उसे पुनः जागृत करने में काफी मदद मिली। उन्होंने इस संबंध में 150 से अधिक शोधपत्र लिखे हैं और इन शोध पत्रों में इन धार्मिक स्थलों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं।
उन्होंने करीब 67 साल पहले दिल्ली के पुराने किले की खुदाई की थी जिसमें कई प्राचीन अवशेष मिले थे। इन अवशेषों को बाद में संरक्षित किया गया। देश की आजादी के बाद 1953 में यह पहली खुदाई थी। यहां 1969-73 में फिर से उनकी अगुवाई में उत्खनन कार्य किया गया था।
आलोचना के बावजूद मत पर कायम
दरअसल वह पांडवों की भव्य राजधानी इंद्रप्रस्थ के बारे में पता लगाने की कोशिश में जुटे हुए थे। आर्य-द्रविड़ की थ्योरी को खारिज करके उसे झूठा साबित करने वाले प्रोफेसर बीबी लाल को वामपंथी बुद्धिजीवियों की आलोचना का भी सामना करना पड़ा। लगातार आलोचनाओं के बावजूद वह अपने मत पर कायम रहे और कई पुस्तकों व शोध पत्रों के जरिए हिंदुत्व के इतिहास को नया रूप दिया।
उत्खनन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम
प्रोफ़ेसर बीबी लाल की अगुवाई में 1953-54 और उसके बाद 1969-73 में किए गए उत्खनन में टेराकोटा खिलौने और चित्रित कटोरे भी मिले थे। इन दोनों का संबंध में 1200 से 800 साल पूर्व तक का माना गया है। हाल में 2018 में की गई खुदाई में भी इससे मिलते-जुलते प्रमाण मिले थे।
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पुरातात्विक उत्खनन के क्षेत्र में प्रोफेसर बीबी लाल के योगदान को उल्लेखनीय माना जाता है। वे अपनी बातों को इतना तर्क और साक्ष्यों के आधार पर कहते हैं कि उन्हें काटना उनके आलोचकों के लिए भी काफी मुश्किल हो जाता है। 100 वर्ष की आयु में पद्म विभूषण सम्मान मिलने पर विविध क्षेत्रों से जुड़ी तमाम हस्तियों ने प्रोफ़ेसर बीबी लाल को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।
रिपोर्ट- अंशुमान तिवारी
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