ओजोन लेयर में अब तक का सबसे बड़ा छेद, वैज्ञानिकों ने किया ये दावा

कोरोना वायरस के चलते ज्यादातर देशों में लॉकडाउन किया गया है, जिसके चलते दक्षिणी ध्रुव के ओजोन परत का छेद कम हुआ।

Update:2020-04-10 10:08 IST
ओजोन लेयर में अब तक का सबसे बड़ा छेद, वैज्ञानिकों ने किया ये दावा

नई दिल्ली: धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ओजोव परत (ozone layer) होती है। जिसके कारण धरती पर जीवन संभव है। कोरोना वायरस के चलते ज्यादातर देशों में लॉकडाउन किया गया है, जिसके चलते दक्षिणी ध्रुव के ओजोन परत का छेद कम हुआ। तो वहीं दूसरी ओर उत्तरी ध्रुव, यानी धरती का आर्कटिक वाला क्षेत्र, के ओजोन लेयर पर एक बड़ा छेद देखा गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह इतिहास का सबसे बड़ा छेद देखा गया है।

ओजोन परत इस वजह से हो रही पतली

धरती का आर्कटिक वाले क्षेत्र के ऊपर एक ताकतवर ध्रुवीय शीर्ष (Polar vertex) बना हुआ है। कहा जा रहा है कि उत्तरी ध्रुव के ऊपर ऊंचाई पर स्थित समताप मण्डल (Stratosphere) पर बन रहे बादलों की वजह से ओजोन परत पतली होती जा रही है।

इस समय स्ट्रेटोस्फेयर में बादल, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स इन तीनों की मात्रा बढ़ गई है। जिसकी वजह से जब स्ट्रेटोस्फेयर में जब सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वाइलेट किरणें टकराती हैं तो उनसे क्लोरीन और ब्रोमीन के Atom निकलते हैं। इन्हीं एटम की वजह से ओजोन लेयर पतली हो रही हैं। जिससे ओजोन परत का छेद बड़ा होता जा रहा है।

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आमतौर पर ऐसी स्थिति दक्षिणी ध्रुव में होती है

नासा के साइंटिस्ट्स के मुताबिक, आमतौर पर ऐसी स्थिति दक्षिणी ध्रुव यानी अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में देखने को मिलती है। लेकिन इस बार ऐसी स्थिति उत्तरी ध्रुव यानी धरती का आर्कटिक वाला क्षेत्र के ऊपर ओजोन लेयर में दिखाई दे रहा है।

आपको बता दें कि समताप मण्डल यानि Stratosphere की लेयर धरती के करीब 10 से 50 किलोमीटर ऊपर तक होती है। इसके बीच में ही ओजोन लेयर होती है, जो पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वाइलेट किरणों से बचाने का काम करती है।

उत्तरी ध्रुव में पहली बार वहां बड़ा छेद देखने को मिला

दक्षिणी ध्रुव के ऊपर जो ओजोन परत होती है, वह बसंत ऋतु में तकरीबन 70 प्रतिशत तक गायब हो जाती है। यहां तक कि सि दौरान कुछ जगहों पर लेयर बचती ही नहीं है। लेकिन उत्तरी ध्रुव पर ऐसा देखने को नहीं मिलता है। उत्तरी ध्रुव में ओजोन परत पतली जरुर हुई है, लेकिन पहली बार वहां बड़ा छेद देखने को मिला है।

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ओजोन लेयर का अध्ययन करने वाले कॉपनिकस एटमॉस्फेयर मॉनिटरिंग सर्विस के निदेशक विनसेंट हेनरी पिउच ने ऐसा कम तापमान (Temperature) और सूरज की किरणों के टकराव के बाद हुई रासायनिक प्रक्रिया के चलते हुआ है।

उन्होंने कहा कि हमें पॉल्युशन को कम करने की कोशिश करनी चाहिए। इस बार ओजोन लेयर में हुआ छेद, दुनियाभर के तमाम वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का विषय है। उन्होंने कहा कि हमें समताप मण्डल में बढ़े क्लोरीन और ब्रोमीन के स्तर को कम करना होगा।

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विनसेंट हेनरी पिउच ने यह उम्मीद जताई है कि ओजोन लेयर में हुआ यह छेद जल्द ही भर जाएगा। ऐसा मौसम में बदलाव होने से ही संभव होगा। उन्होंने कहा कि इस वक्त में 1987 में हुए मॉन्ट्रियल समझौते को लागू करना होगा। सबसे पहले चीन के उद्योगों के चलते होने वाले प्रदूषण को रोकना होगा।

क्या है ओजोन लेयर?

ओज़ोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमें ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है। ओज़ोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है। ओजोन परत 20 से 40 किलोमीटर के बीच के वायुमंडल में पाई जाती है। ओजोन परत पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वाइलट किरणों से बचाने का काम करती है। बता दें कि अगर सूर्य की अल्ट्रा वाइलट किरणें सीधा धरती पर पहुंचती है तो यह मनुष्य, पेड़-पौधों और जानवरों के लिए भी बेहद खतरनाक हो सकती है। ऐसे में ओजोन परत का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है।

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