खतने के चलते खतरे में मुस्लिम महिलाओं की जिन्दगी, इस संगठन ने जताई चिंता

मुस्लिम महिलाओं में खतने के धार्मिक रिवाज के चलते उनकी जिन्दगी खतरे में पड़ती जा रही है। इसके चलते कई महिलाओं की मौत तक हो जाती है। तमाम महिलाएं ताउम्र...

Update: 2020-03-02 13:47 GMT

लखनऊ। मुस्लिम महिलाओं में खतने के धार्मिक रिवाज के चलते उनकी जिन्दगी खतरे में पड़ती जा रही है। इसके चलते कई महिलाओं की मौत तक हो जाती है। तमाम महिलाएं ताउम्र शारीरिक और मानसिक परेशानियों से जूझती रहती हैं। खतने से होने वाली बिमारियों के लिए इलाज पर सालाना 9 हजार 961 करोड़ रूपये खर्च करना पड़ता हैं।

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अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी इसे मानवधिकारों का दुरूपयोग मानता हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मुस्लिम महिलाओं में किये जाने वाले खतने को लेकर यह चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनिया भर में २० करोड़ से अधिक मुस्लिम लड़कियां और महिलाएं इस पीड़ादायक प्रक्रिया से गुजरती हैं।

वार्षिक खर्च का 10 से 30 फीसदी की धनराशि व्यय करनी पड़ती है

क्योंकि इसके पीछे पांरपरिक रीतियां होती और गैर चिकित्सकीय सलाह। ये नवजात लड़कियों से लेकर 15 साल के उम्र के बीच की लड़कियों के साथ होता है। एजेंसी के मुताबिक वैश्विक स्तर पर अलग-अलग देशों में खतने से होने वाली बीमारी पर कुल वार्षिक खर्च का 10 से 30 फीसदी की धनराशि व्यय करनी पड़ती है।

संगठन के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अनुसंधान विभाग के निदेशक इयान अस्केव ने बताया कि खतना मानवाधिकारों का भयावह दुरूपयोग है। यह देश के आर्थिक संसाधनों को भी खत्म करता है। खतना पीड़ितों के साथ हो रहे अन्याय रोकने के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत नहीं है।

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हैरतअंगेज है कि खतना से बचे 5.2 करोड़ महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य पर भी इसका असर पड़ता है। मिस्र में खतना प्रक्रिया पर प्रतिबंध है। किन्तु सूडान जैसे देशों में यह आम है। खतने के दौरान कई लड़कियों की मौत की रिपोर्ट भी सामने आई है।

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