कौन है दुल्ला भट्ठीः और वह लोहड़ी पर ही क्यों याद आता है

लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं। लोहड़ी के सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही जोड़ा जाता है। यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं ऐसा क्यों है। दुल्ला भट्ठी कौन था।

Update:2020-01-13 16:12 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

आज लोहड़ी का पर्व है। पंजाब में यह पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। पंजाबी समुदाय के बीच इस दिन होली जैसी आग जलाकर उसके इर्द गिर्द नृत्य किया जाता है। जिसमें नई ब्याहली बेटियां बहुएं आगे रहती हैं। लोहड़ी से कुछ दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ 'लोहड़ी' के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं।

लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं। लोहड़ी के सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही जोड़ा जाता है। यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं ऐसा क्यों है। दुल्ला भट्ठी कौन था।

दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था! उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत खत्म कराया। उसने लड़कियों को न केवल मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी हिन्दू लडको से करवाई और उनकी शादी की सभी व्यवस्था भी करवाई।

दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था। इसलिए लोहड़ी पर उसे याद किया जाता है।

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लोहड़ी पर बच्चा पार्टी घर घर जाकर लकड़ी मांगने में जुट जाती थी। लोहिडी की लकड़ी मांगते समय एक गीत गाया जाता है। बच्चों का समवेत स्वरों में यह गान बड़ा आकर्षक और मनमोहक होता था। उसके बोल देखिये कितने मजेदार होते थे-

सुंदर मुंदरिए - हो तेरा कौन विचारा-हो

दुल्ला भट्टी वाला-हो

दुल्ले ने धी ब्याही-हो

सेर शक्कर पाई-हो

कुडी दे बोझे पाई-हो

कुड़ी दा लाल पटाका-हो

कुड़ी दा शालू पाटा-हो

शालू कौन समेटे-हो

चाचा गाली देसे-हो

चाचे चूरी कुट्टी-हो

जिमींदारां लुट्टी-हो

जिमींदारा सदाए-हो

गिन-गिन पोले लाए-हो

इक पोला घिस गया जिमींदार वोट्टी लै के नस्स गया - हो!

गिद्दे के लिए हुक्के उत्ते हुक्का

हुक्के उत्ते हुक्का ए घर भुक्का!

अब जिसने लकड़ी दे दी उस को तो बधाइयां गाते थे जिसने नहीं दी उसको हुक्के उत्ते हुक्का ए घर भुक्का!

कोसते हुए आगे बढ़ जाते थे। ये क्रम लोहड़ी आने तक रोज बिना नागा जारी रहता था।

लड़कियों की टोली अलग गीत गाकर लोहड़ी मांगने निकलती थी। जिसके बोल थे...

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पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढेगा हाथी हाथी

उत्ते जौं तेरे पुत्त पोत्रे नौ!

नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई

टेर नी मां टेर नी

लाल चरखा फेर नी!

बुड्ढी सांस लैंदी है

उत्तों रात पैंदी है

अन्दर बट्टे ना खड्काओ

सान्नू दूरों ना डराओ!

चारक दाने खिल्लां दे

पाथी लैके हिल्लांगे

कोठे उत्ते मोर सान्नू

पाथी देके तोर!

लोग लड़कियों को बुलाकर गीत सुनते थे और मजे लेते हुए लकड़ी और कंडे देते थे। और इसमें हर जाति बिरादरी के लोग शामिल होते थे। शाम को जब लोहड़ी जलती थी तो उस समय भी महिलाएं खड़े होकर ठुमकती हुई तालियों की ताल दे गाती थीं-

कंडा कंडा नी लकडियो

कंडा सी

इस कंडे दे नाल कलीरा सी

जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा नी,

पा माई पा,

काले कुत्ते नू वी पा

काला कुत्ता दवे वदाइयाँ,

तेरियां जीवन मझियां गाईयां,

मझियां गाईयां दित्ता दुध,

तेरे जीवन सके पुत्त,

सक्के पुत्तां दी वदाई,

वोटी छम छम करदी आई।

बहुत पहले पंजाब में एक दुल्ला भट्टी नाम का लड़का था। जो कि बहुत बहादुर था। उसके परिवार के लोग भट्टी राजपूत थे। संदल बार में कभी इनका शासन रहा। उन्होने बताया कि यह जगह अब पाकिस्तान में है। दुल्ला भट्टी मुग़लों के शासन काल में जब अकबर शासन था पंजाब में रहता था। उस समय संदल बार में लड़कियों को ग़ुलामी के लिए जबरदस्ती अमीरों को बेच दिया जाता था। इसे देखकर दुल्ला भट्टी को बहुत गुस्सा आया और उसने एक योजना बनाकर तमाम लड़कियों को मुक्त करवाया। इसके बाद उसने उन लड़कियों की शादी हिन्दू लड़कों से करवाई और शादी की सभी व्यवस्था भी उसने करवाई। इसी सबके चलते उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उसकी याद में ही यह लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है।

इसके लोहड़ी को दक्ष प्रजापति की कन्या सती से भी जोड़ा जाता है जिन्होंने योगबल से अपने शरीर को जला लिया था। हरिद्वार कनखल में दक्षेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। कहा जता है कि इस मंदिर में वह हवन कुंड है जहां सती मैया जलकर मरी थीं। लोहड़ी पर माता सती को याद करके लोग मन्नत मानते हैं। और जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है वह और उत्साह से मनाते हैं। कथाएं चाहे जो हों लोहड़ी परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से जुड़ गई है। लोहड़ी का एक फायदा यह भी है कि लोग अगले दिन मकर संक्रांति स्नान करके लौटते हैं तो लोहड़ी की आग तापते हुए घर आते हैं। ये सामाजिक समरसता का पर्व है।

 

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