Devendra Fadnavis News: महाराष्ट्र में BJP नहीं कर सकी राजस्थान और एमपी वाला प्रयोग, फडणवीस की दावेदारी को क्यों नहीं नकार सका नेतृत्व

Devendra Fadnavis News: फडणवीस पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा बने हुए हैं। पार्षद से अपना सियासी सफर शुरू करने फडणवीस ने हाल के चुनाव में छठवीं बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया है।;

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-12-05 09:36 IST

Devendra Fadnavis   (PHOTO: social media )

Devendra Fadnavis News: महाराष्ट्र में नए मुख्यमंत्री को लेकर पिछले कई दिनों से चल रही अटकलों पर आखिरकार बुधवार को विराम लग गया और देवेंद्र फडणवीस की नए मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी तय हो गई। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए गए थे और नया मुख्यमंत्री तय करने में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को 10 दिन से अधिक का समय लग गया। इस बीच मंथन के दौरान जातीय और राजनीतिक समीकरणों के लिहाज कुछ अन्य दावेदारों के नाम भी उभरे मगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व फडणवीस की अनदेखी नहीं कर सका।

पिछले दिनों भाजपा ने मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे की दावेदारी को नकार कर नए चेहरों को मौका दिया था मगर वह प्रयोग महाराष्ट्र में नहीं किया जा सका। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि भाजपा नेतृत्व के लिए फडणवीस की अनदेखी क्यों नामुमकिन हो गई।

महाराष्ट्र में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा

फडणवीस पिछले कई वर्षों से महाराष्ट्र में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा बने हुए हैं। पार्षद से अपना सियासी सफर शुरू करने फडणवीस ने हाल के चुनाव में छठवीं बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया है। महाराष्ट्र में भाजपा को बड़ी जीत दिलाने में फडणवीस की बड़ी भूमिका रही है। उल्लेखनीय बात यह है कि मौजूदा विधानसभा चुनाव ही नहीं बल्कि 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा को काफी मजबूत स्थिति में पहुंचाया था।

इस बार महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के दौरान महायुति ने शानदार जीत हासिल की है। भाजपा ने अकेले 132 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना को 57 सीटों पर विजय मिली है। गठबंधन के एक और सहयोगी दल अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी को 41 सीटें मिली हैं।


संघ का फडणवीस को मजबूत समर्थन

फडणवीस के पक्ष में एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से उनके नाम की मजबूत वकालत की जा रही थी। संघ की ओर से भाजपा नेतृत्व को देवेंद्र फडणवीस को ही राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाने का साफ संदेश दिया गया था। संघ का मानना था कि महाराष्ट्र की जीत में फडणवीस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है और इसलिए मुख्यमंत्री पद की कमान उन्हें ही सौंपी जानी चाहिए। इसके साथ ही संघ ने भाजपा में चल रही अन्य नामों की चर्चा पर भी नाराजगी भी जताई थी।

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी जीत के पीछे इस बार संघ की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। जानकारों का कहना है कि संघ के स्वयंसेवकों ने महाराष्ट्र के हर जिले में बड़ा अभियान चलाकर सत्तारूढ़ महायुति की जीत सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। संघ की ओर से सबके बीच देवेंद्र फडणवीस का चेहरा ही सामने रखा जा रहा था। ऐसे में संघ की ओर से फडणवीस के नाम की दमदार वकालत की गई थी।

संघ का यह भी मानना था कि यदि भाजपा की ओर से फडणवीस की दावेदारी को नकारा गया तो इससे महाराष्ट्र में जल्द होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। बीएमसी चुनाव में भी पार्टी को झटका लग सकता है। बीएमसी का चुनाव भाजपा के लिए काफी अहम माना जा रहा है।


महाराष्ट्र की अलग राजनीतिक स्थिति

महाराष्ट्र में नए मुख्यमंत्री के चयन को लेकर मंथन की शुरुआत से ही फडणवीस की दावेदारी को सबसे मजबूत माना जा रहा था। हालांकि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जिस तरह मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान में वसुंधरा राजे की दावेदारी को किनारे लगा दिया धा, उसे देखते हुए अटकलों का बाजार भी गरम था। इसके साथ ही देवेंद्र फडणवीस का ब्राह्मण होना भी मौजूदा राजनीतिक और जातीय समीकरण के लिहाज से फिट नहीं बैठ रहा था। इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व फडणवीस की अनदेखी नहीं कर सका।

दरअसल महाराष्ट्र की सियासत राजस्थान और मध्य प्रदेश से बिल्कुल अलग मानी जाती रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा का कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला था जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ ही शरद पवार और उद्धव ठाकरे भी पूरी मजबूती के साथ भाजपा को चुनौती देने में जुटे हुए थे। इसके बावजूद भाजपा की 132 सीटों पर जीत फडणवीस के मजबूत नेतृत्व कौशल का नतीजा मानी जा रही है।


शिंदे को पीछे धकेलने के लिए जरूरी थे फडणवीस

फडणवीस के नाम पर मुहर लगने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि भाजपा के पास उनके अलावा कोई और सर्व स्वीकार्य चेहरा नहीं था। चुनाव नतीजे की घोषणा के बाद ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने ऐलान कर दिया था कि पार्टी कार्यकर्ता इस बार चाहते हैं कि देवेंद्र फडणवीस को ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए।

इसके साथ ही भाजपा को मुख्यमंत्री पद के लिए एकनाथ शिंदे और अजित पवार को भी संतुष्ट करना था। भाजपा नेतृत्व को इस बात की बखूबी जानकारी थी कि महाराष्ट्र के इन दोनों दिग्गज नेताओं को फडणवीस के अलावा किसी और नाम पर सहमत करना मुश्किल साबित होगा।

अजित पवार ने तो मुख्यमंत्री पद की रेस से अपने पांव वापस खींच लिए थे मगर शिंदे लगातार दावेदारी में जुटे हुए थे। शिंदे को पीछे धकेलने के लिए भाजपा के पास देवेंद्र फडणवीस के अलावा दूसरा और कोई मजबूत चेहरा नहीं था और इसलिए पार्टी ने उनके नाम पर ही मुहर लगाने का फैसला किया।


समर्पित भाव से काम करने वाले नेता की छवि

पार्टी के प्रति फडणवीस का समर्पण भी उनके काफी काम आया। दरअसल 2014 से 2019 तक लगातार पांच वर्ष वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे थे मगर पार्टी नेतृत्व के निर्देश पर उन्होंने शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बनना भी स्वीकार कर लिया था। डिप्टी सीएम बनने के बाद काफी सीनियर होने के बावजूद उन्होंने शिंदे को शिकायत का कोई मौका नहीं दिया और उनके सहयोग से ही शिंदे सरकार पूरी मजबूती के साथ काम करने में कामयाब हुई। भाजपा का नेतृत्व भी फडणवीस की भूमिका को लेकर पूरी तरह संतुष्ट था।


पीएम मोदी के भरोसेमंद हैं फडणवीस

फडणवीस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी काफी भरोसेमंद माना जाता रहा है। महाराष्ट्र की सियासत में फडणवीस पीएम मोदी की उम्मीदों पर अभी तक खरे उतरते रहे हैं। उनका नाम भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी चर्चाओं में रहा है। इससे समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक उनकी कितनी मजबूत पहुंच रही है।

फडणवीस के पास अभी खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करने का आगे भी मौका है क्योंकि उनकी उम्र अभी ज्यादा नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के बाद फडणवीस राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा का बड़ा चेहरा बनेंगे।



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