Mahatma Gandhi Jayanti: गांधी को नहीं था नेताजी सुभाष की मौत पर यकीन

सुभाषचंद्र बोस के मन में महात्मा गांधी की नीतियों उनके सत्य अहिंसा के व्रतों के लिए अभूतपूर्व सम्मान था। इसका उदाहरण है कि जब 1944 में उन्होंने देश की पहली स्वतंत्र सरकार बनाई जिसे 14 देशों ने मान्यता भी दी। उस समय रेडियो सिंगापुर से एक संदेश में उन्होंने सबसे पहले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया।

Update: 2020-10-01 07:52 GMT
Mahatma Gandhi Jayanti: गांधी को नहीं था नेताजी सुभाष की मौत पर यकीन

राम कृष्ण वाजपेयी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जब नाम लिया जाता है तो दो धुर विरोधियों की एक छवि मन में उभरती है जो दोनो को एक दूसरे के दुश्मन के रूप में चित्रित करती है इसे लेकर तमाम दृष्टांत दिये जाते हैं लेकिन उनसे कहीं भी ये बात स्पष्ट नहीं होती है कि दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति क्या विचार थे।

सुभाष बाबू वैचारिक रूप से गरम दल के समर्थक थे

ये सच है कि गांधी से प्रभावित होकर ही नेताजी बोस कांग्रेस में शामिल हुए थे और फिर युवा इकाई के अध्यक्ष हुए थे। हां ये बात सही है कि सुभाष बाबू वैचारिक रूप से गरम दल के समर्थक थे और गांधी अहिंसा के पुजारी। इसलिए सुभाष तिलक के समर्थक थे तो गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले के। और इसी के कारण नेताजी को कांग्रेस में अपना भविष्य़ नहीं दिखा और उन्होंने फारवर्ड ब्लाक बना लिया। इसके बाद भगत सिंह की फांसी के मौके पर एक बार नेताजी की इच्छा का अहिंसा के इस व्रती ने निरादर किया, नेताजी चाहते थे कि महात्मा गांधी भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए पहल करें जबकि गांधी जी सपने में भी हिंसा को बढ़ावा देने के पक्ष में नहीं थे।

Mahatma Gandhi Jayanti: गांधी को नहीं था नेताजी सुभाष की मौत पर यकीन-(courtesy- social media)

एक व्यक्ति के रूप में दोनो एक दूसरे के विरोधी थे

कहा जा सकता है कि गरम विचारधारा के चलते अहिंसा के व्रती गांधी के वह इतने प्रिय नहीं हो सके जितने जवाहरलाल नेहरू हुए। या कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस के लिए वह स्पेस नहीं बन सका जो नेहरू के लिए बन गया। और नेहरू वह मुकाम पा गए। लेकिन इन सब बातों से ये कहीं स्पष्ट नहीं होता कि एक व्यक्ति के रूप में दोनो एक दूसरे के विरोधी थे या एक दूसरे का अनादर करते थे।

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सबसे पहले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया

सुभाषचंद्र बोस के मन में महात्मा गांधी की नीतियों उनके सत्य अहिंसा के व्रतों और देश को आजादी की लड़ाई में खड़ा करने के लिए अभूतपूर्व सम्मान था। इसका उदाहरण है कि जब 1944 में उन्होंने देश की पहली स्वतंत्र सरकार बनाई जिसे 14 देशों ने मान्यता भी दी। उस समय रेडियो सिंगापुर से एक संदेश में उन्होंने सबसे पहले महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। जिसे बाद में पूरे देश ने स्वीकार किया। इसी तरह नेताजी ने तो पूर्ण स्वराज का नारा दिया जिसे बाद में कांग्रेस ने स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है कहकर अंगीकार किया।

Mahatma Gandhi Jayanti: गांधी को नहीं था नेताजी सुभाष की मौत पर यकीन-(courtesy- social media)

पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक किया

इसी तरह से 2015 में जब पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक किया। तो एक अहम जानकारी सामने आई। 1946 की एक गुप्त फाइल के अनुसार गांधीजी ने अपने एक पत्र में लिखा था कि कुछ साल पहले अखबारों में नेताजी के मरने की ख़बर छापी गई थी। मैंने इस रिपोर्ट पर भरोसा कर लिया था। लेकिन मुझे लगता है कि जब तक नेताजी का स्वराज का सपना पूरा नहीं हो जाता वह हमें छोड़कर नहीं जा सकते क्योंकि नेताजी की अपने दुश्मनों को चकमा देने की क़ाबिलियत भी है। बस यही सब बातें हैं जिससे मुझे लगता रहा कि वह अभी भी जिंदा हैं।

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Mahatma Gandhi Jayanti: गांधी को नहीं था नेताजी सुभाष की मौत पर यकीन-(courtesy- social media)

सुभाष के देशप्रेम को देख गांधी जी भी उनसे काफी प्रभावित थे

ये बात एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि जिन दो विभूतियों के मन में एक-दूसरे के प्रति ऐसी उदात्त भावनाएं रही हों वह एक-दूसरे के विरोधी नहीं हो सकते।

वस्तुतः महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस दोनों ही देश सेवा कर रहे थे। और सुभाष के देशप्रेम को देख गांधी जी भी उनसे काफी प्रभावित थे। सुभाष बाबू भी गांधी का अंत तक आदर करते रहे।

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