महावीर जयंती: ‘आपात स्थिति में मन को डगमगाना नहीं चाहिए’
महावीर जयंती जैन समुदाय का सबसे प्रमुख त्योहार है और इनका जन्म दिवस चैत्र की शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। भगवान महावीर ने 527 ईसा पूर्व कार्तिक कृष्णा द्वितीया तिथि को अपनी देह का त्याग किया और जिस वक़्त उन्होंने अपने देह का त्याग किया उस समय उनकी आयु 72 वर्ष थी।
लखनऊ: ‘धर्म में कभी दिखावा नहीं होना चाहिए क्योंकि दिखावे से सदा दुख होता है’ ये सोच थी भगवान महावीर स्वामी की जो कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे, जिन्होंने दुनिया को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया। एक राज परिवार में जन्म लेने वाले वर्धमान ने राज-पाठ, परिवार, धन-संपदा छोड़कर युवावस्था में ही लोगों को सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाया।
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महावीर जयंती जैन समुदाय का सबसे प्रमुख त्योहार है और इनका जन्म दिवस चैत्र की शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। भगवान महावीर ने 527 ईसा पूर्व कार्तिक कृष्णा द्वितीया तिथि को अपनी देह का त्याग किया और जिस वक़्त उन्होंने अपने देह का त्याग किया उस समय उनकी आयु 72 वर्ष थी।
कैसे मनाई जाती है महावीर जयंती?
महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद मूर्ति को एक रथ पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। इस यात्रा में जैन धर्म के अनुयायी प्रवचन देते हैं। भारत में गुजरात और राजस्थान में जैन धर्म को मानने वालों की तादाद अच्छी खासी है।
यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है और कई तरह के आयोजन किए जाते हैं और कई जगहों पर मांस और शराब की दुकानें बंद रखी जाती है। जैन धर्म को मानने वाले महावीर जयंती के दिन गरीबों को अन्न, कपड़े, पैसे और अन्य वस्तुओं का दान करते हैं। महावीर जयंती के दिन लोग अपने खास लोगों को शुभकामना संदेश भी भेजते हैं।
30 वर्ष की आयु में ज्ञान के लिए घर छोड़ा
वर्धमान ने 30 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त करने के लिए घर-परिवार छोड़ दिया और सत्य, अहिंसा और प्रेम की शक्ति को महसूस किया। वर्धमान में क्षमा करने का एक अद्भुत गुण था और कहा जाता है कि क्षमा वीरस्य भूषणम। जिसके बाद उन्हें महावीर कहा जाने लगा। तीर्थंकर महावीर ने अपने सिद्धांतों को जनमानस के बीच रखा। उन्होंने ढोंग, पाखंड, अत्याचार, अनाचारत व हिंसा को नकारते हुए दृढ़तापूर्वक अहिंसक धर्म का प्रचार किया।
महावीर ने समाज को अपरिग्रह, अनेकांत और रहस्यवाद का मौलिक दर्शन समाज को दिया। कर्मवाद की एकदम मौखिक और वैज्ञानिक अवधारणा महावीर ने समाज को दी। उस समय भोग-विलास एवं कृत्रिमता का जीवन ही प्रमुख था, मदिरापान, पशुहिंसा आदि जीवन के सामान्य कार्य थे। बलिप्रथा ने धर्म के रूप को विकृत कर दिया था।
कैसे बने महावीर?
मनुष्यों को अंधविश्वास, पाखंड और अज्ञानता का शिकार होता देखकर राजा सिद्धार्थ के पुत्र महावीर का मन बदलने लगा और उन्होने सांसारिक मोह माया को छोड़ने का फैसला किया। जिसके बाद बारह वर्षों तक लगातार तपस्या करने के बाद उन्हें ज्ञान कि प्राप्ति हुई जिससे वह महावीर कहे जाने लगे।
महावीर का अर्थ होता है- साधना के पथ पर आने वाली वाह्य बाधाओं पर परकरम के साथ विजय प्राप्त करने वाला।
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कुछ अनोखे विचार:
1. मनुष्य के दुखी होने की वजह खुद की गलतियां ही हैं जो मनुष्य अपनी गलतियों पर काबू पा सकता है वही मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति भी कर सकता है।
2. आपात स्थिति में मन को डगमगाना नहीं चाहिए।
3. आत्मा अकेले आती है, अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।
4. खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।
5. आपने कभी किसी का भला किया हो तो उसे भूल जाओ और कभी किसी ने आपका बुरा किया हो तो उसे भूल जाओ।