मिजोरम चुनाव: बड़े दलों का खेल बिगाड़ेगा एमएनएफ

Update: 2018-11-16 10:41 GMT

एजल: मिजोरम की शांति के पीछे २० साल का हिंसक इतिहास छिपा हुआ है। वो इतिहास जिसमें मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के दशकों के सशस्त्र संघर्ष के बाद १९८६ में केंद्र सरकार के साथ शांति समझौता किया। एमएनएफ के करिश्माई नेता लालदेंगा के निधन के बाद उनके करीबी जोरमथांगा ने संगठन की कमान संभाली और २००८ तक दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। २००८ में कांग्रेस ने राज्य में चुनाव जीता और तबसे लाल थन्हवला वहां के सीएम हैं। अब ७४ वर्षीय जोरमथांगा इस बार के चुनाव में जोरदार वापसी की उम्मीद लगाए हुए हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस इस बार १० सीटें भी नहीं पा सकेगी।

मिजोरम में विधानसभा की ४० सीटें हैं और एमएनएफ सभी पर चुनाव लड़ रही है। फ्रंट के नेता प्यू जौमा कहते हैं कि फ्रंट को २५ से ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद है। फ्रंट ने किसी भी पार्टी के साथ चुनाव पूर्व गठजोड़ से इनकार किया है और कहा है कि उसका भाजपा के साथ कोई गुप्त समझौता नहीं है जैसा कि आरोप लगाया जा रह है। फ्रंट विकास और शराबबंदी के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। जोरमथांगा का कहना है कि शराब यहां बहुत बड़ा मुद्दा है और शराबबंदी खत्म करने के लिए कांग्रेस सरकार दोषी है। इसके अलावा सडक़ों की दयनीय स्थिति, विकास के नाम पर कुछ भी न होना, गरीबी भी बड़े मुद्दे हैं। जहां तक भाजपा की बात है तो मिजोरम जैसे इसाई बहुल राज्य में हिंदुत्ववादी पार्टी की विचारधारा स्वीकार्य नहीं है।

मिजोरम में जीत कर सत्ता की हैट्रिक लगाने का सपना देख रही कांग्रेस की डगर इस बार मुश्किल नजर आ रही है। पहले तो विधानसभा अध्यक्ष हाइफेई समेत पांच विधायकों ने पार्टी से नाता तोड़ कर विपक्ष का दामन थाम लिया। उसके बाद भाजपा ने इस बार सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का एलान कर उसके वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर ली है। इन मुश्किलों से जूझने के लिए ही कांग्रेस ने अबकी एक दर्जन नए चेहरों को मैदान में उतारा है।

मिजोरम में वर्ष 2008 से ही ललथनहवला की अगुवाई वाली कांग्रेस सत्ता में है। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 39 फीसदी वोट और 40 में से 32 सीटें मिली थीं। विपक्षी एमएनएफ को वोट तो 31 फीसदी मिले थे। लेकिन उसे महज तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।

वर्ष 2013 के चुनावों में कांग्रेस के वोट भी बढ़े और सीटें भी। उसको मिलने वाले वोट बढ़ कर 45 फीसदी हो गए और सीटें 34 तक पहुंच गई। एमएनएफ ने पांच सीटें जरूर जीतीं। लेकिन उसके वोट घट कर 29 फीसदी रह गए। उस समय भाजपा ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। उसको मिलने वाले वोट भी 0.5 से घट कर 0.4 फीसदी रह गए थे। लेकिन अबकी एमएनएफ ने सत्ता में वापसी के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

कांग्रेस सरकार को अबकी सत्ता-विरोधी लहर के अलावा भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और ब्रू शरणार्थियों के मुद्दे से जूझना पड़ रहा है। उधर, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी पूर्वोत्तर को कांग्रेस-मुक्त करने का संकल्प दोहराते हुए कहा है कि पार्टी अबकी मिजोरम में भी सत्ता पर कब्जा करेगी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जी.वी. लूना कहते हैं कि अब मिजोरम के लोगों के लिए पार्टी अछूत नहीं रही और उसे हर तबके के लोगों का भारी समर्थन मिल रहा है।

हटाए गए मिजोरम के चीफ इलेक्शन अफसर

चुनाव आयोग ने मिजोरम के मुख्य चुनाव अधिकारी एसबी शशांक को हटाने का फैसला किया है। मिजोरम में लंबे समय से शशांक को हटाने की मांग चल रही थी। राजधानी आइजवाल समेत कई शहरों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उन्हें हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किया था। आयोग ने नए मुख्य चुनाव अधिकारी के लिए मिजोरम के मुख्य सचिव से नया पैनल मांगा है।

मिजोरम की सिविल सोसायटी के लोगों ने चुनाव आयोग से एसबी शशांक को हटाने और त्रिपुरा में शरणार्थी ब्रू समुदाय के लोगों को मिजोरम की सीमा में मतदान करने देने की मांग की थी। चुनाव आयोग ने दोनों मांगें स्वीकार कर ली हैं।

चर्च से जुड़े संगठनों ने साधी चुप्पी

ईसाई बहुल राज्य होने के कारण हिंदुवादी संगठनों को मिजोरम में पांव जमाने में काफी मशक्कत करना पड़ रहा है। इससे पहले चर्च और ईसाई मिशनरीज के पादरियों का बयान हिंदुवादी संगठनों को परेशान करते रहे हैं लेकिन इस बार वे सब चुप्पी साधे हुए हैं। खासकर हिंदुवादी संगठनों के खिलाफ कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। मिजोरम की 87 फीसदी आबादी ईसाई है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जे.वी.लूना के मुताबिक बीजेपी की छवि पहले काफी खराब थी। जिसमें अब सुधार हुआ है। पहले भाजपा को अछूत मानने वाले भी अब भगवा की तरफ झुक रहे हैं।

मिजोरम में भाजपा पांच बार चुनाव लडऩे के बावजूद अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी। इस बार पार्टी को काफी उम्मीदें हैं। इसाई संगठनों की चुप्पी के बारे में भाजपा नेताओं का कहना है कि देश की मुख्यधारा में शामिल होने की गरज से लोग भारतीय जनता पार्टी को ही तरजीह देंगे। बीजेपी ने आरोप लगाया कि मिजोरम के लोग कांग्रेस व बाकी क्षेत्रीय पार्टियों के घोटालों से परेशान है।

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