Nagaland Village: नागालैंड का खोनोमा गांव नहीं देखा तो क्या देखा
Nagaland Village:खोनोमा गाँव नागालैंड के सबसे बड़े वर्षा वनों से घिरा हुआ है जो इसे जबर्दस्त खूबसूरती प्रदान करता है। आसपास हरे भरे धान के खेत हैं ।
Nagaland Village: हो सकता है आपने कई गांव देखे हों, लेकिन नागालैंड का खोनोमा गांव बहुत खास है। इस गांव को एशिया का पहला हरित गांव कहा जाता है, और अब इसे भारत के टॉप 50 पर्यटन स्थलों में से एक के रूप में नामित किया गया है। टूरिज्म चैलेंज मोड प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में खोनोमा का चयन पर्यटन क्षेत्र में इसकी अपार संभावनाओं को उजागर करता है।
शानदार लोकेशन
खोनोमा गाँव नागालैंड के सबसे बड़े वर्षा वनों से घिरा हुआ है जो इसे जबर्दस्त खूबसूरती प्रदान करता है। आसपास हरे भरे धान के खेत हैं ।
खोनोमा अंगामी जनजाति का घर है जो यहां 500 से अधिक वर्षों से रह रहे हैं। प्रकृति संरक्षण और प्राकृतिक जीवन की प्रथाओं को संरक्षित करने के प्रयासों के लिए गांव को 2005 में ग्रीन विलेज की मान्यता मिली।
खोनोमा गांव की वास्तुकला आज भी काफी हद तक संरक्षित है। नागालैंड में "मोरंग" एक आम विशेषता है। मोरंग एक विशेष भवन होता है और परंपरागत रूप से इसका इस्तेमाल युवाओं के लिए एक शैक्षणिक संस्थान के रूप में किया जाता था। यहां युवाओं को अपनी संस्कृति, रीति-रिवाजों के बारे में सीखा और युद्ध, मार्शल आर्ट और क्राफ्ट में प्रशिक्षण दिया जाता था। मोरंग, लोककथाओं की परंपराओं जैसे कि गाने और देशी खेलों से भी जुड़े हुए थे। हालाँकि आज, इनका उपयोग युद्धों में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न हस्तशिल्प, कला और हथियारों को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। इस गांव में भी एक खूबसूरत मोरंग है।
गौरवपूर्ण इतिहास
खोनोमा ने 1850 से 1880 के दशक में ब्रिटिश सेना के खिलाफ जबरदस्त धैर्य और साहस दिखाया था। इसके बाद, अंग्रेजों को आखिरकार इस गांव के लोगों के साथ एक समझौता करना पड़ा था। खोनोमा के अंगामी लोगों द्वारा दिखाया गया प्रतिरोध अभी भी ग्रामीणों के दिमाग में ताजा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही वीरता की कहानियों को याद करते हैं। 1890 में, गाँव ईसाई धर्म से परिचित हो गया था और आज इसके लगभग सभी निवासी इस धर्म के हैं।
आक्रमण से बचाने के लिए गाँव को तीन बस्तियों में विभाजित किया गया है। गाँव में तीन पुनर्निर्मित किले उन शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए अपनी जान गंवाई थी। चट्टानों से बने इन किलों को बार-बार तोड़ा और फिर से बनाया गया है।
प्रकृति संरक्षण
1993 में नागालैंड के 300 राजकीय पक्षी ब्लिथ्स ट्रागोपन एक शिकार प्रतियोगिता में मारे गए। इस घटना ने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील खोनोमा के लोगों को बहुत दुखी कर दिया। उसी समय यहां खोनोमा नेचर कंजर्वेशन एंड ट्रैगोपैन सैंक्चुअरी के गठन के साथ शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इससे लुप्तप्राय ब्लीथ्स ट्रैगोपैन को नया जीवन मिल गया। निगरानी रखने वालों को नियुक्त करके आगे की देखभाल की गई और जल्द ही सभी पेड़ों को काटने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कदम भी उठाए गए। कचरा फेंकने के खिलाफ जुर्माना और सज़ा लगाई गई।
इन पहलों के साथ सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइट का उपयोग करके इको-टूरिज्म डेस्टिनेशन को बढ़ावा मिला। गांव में पारंपरिक आवासों की सुरक्षा की गई, प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। परंपराओं का संरक्षण किया गया।
यही सब चीजें खोनोमा के लोगों और गांव को अद्वितीय बनाती हैं। 2005 में, भारत के पर्यटन मंत्रालय ने खोनोमा को भारत के पहले "ग्रीन विलेज" के रूप में नामित किया और 3 करोड़ रुपये की राशि गांव के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए दी गई।
आप भी इस गांव में जा कर कुछ दिन बिता कर बहुत कुछ सीख सकते हैं।