CAA & NRC: क्या भारत का मुसलमान मोदी सरकार से डरा हुआ है?
नागरिकता कानून संसोधन (CAA) और नेशनल सिटिजन रजिस्टर (NRC) को लेकर मोदी सरकार लोगों के निशाने पर है। कई विदेशी मीडिया भी इन मुद्दों को लेकर सरकार की आलोचना कर चुके हैं। विपक्ष सदन से लेकर सड़क तक हो हल्ला मचा रहा है।
लखनऊ: नागरिकता कानून संसोधन (CAA) और नेशनल सिटिजन रजिस्टर (NRC) को लेकर मोदी सरकार लोगों के निशाने पर है। कई विदेशी मीडिया भी इन मुद्दों को लेकर सरकार की आलोचना कर चुके हैं। विपक्ष सदन से लेकर सड़क तक हो हल्ला मचा रहा है। साथ ही मोदी सरकार पर मुसलमानों को डराने का आरोप लगा है।
वहीं अब वाल स्ट्रीट जर्नल ने भी अपने एक ताजा लेख में मोदी सरकार पर निशाना साधा है। लेख में कहा गया है कि मोदी सरकार चाहती तो मुस्लिम समुदाय में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) और एनआरसी को लेकर फैले डर को कम कर सकती थी, लेकिन सरकार इसके उलट काम कर रही है और अल्पसंख्यकों के डर को और बढ़ा रही है।
सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई में भारत का मुसलमान आज मोदी सरकार से डरा हुआ है? अगर ऐसा नहीं हैं तो फिर बार- बार पीएम मोदी और अमित शाह को क्यों बार जनता के बीच जाकर सफाई देनी पड़ रही है?
लोगों को ये क्यों बताने की आज जरूरत पड़ रही है कि CAA & NRC पर देश में भ्रम फैलाया जा रहा है। मुसलमानों को इससे कोई नुकसान नहीं होने वाला है। उन्हें उनकी नागरिकता को कोई नहीं छिनने जा रहा है।
यह बिल न असंवैधानिक है और न ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। आइये बयानों के जरिये समझने की कोशिश करते हैं, आखिर सच्चाई क्या है?
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क्या है CAB?
सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल (CAB) संसद से पास होने के बाद अब सिटिजनशिप अमेंडमेंट ऐक्ट यानी कानून (CAA) बन चुका है। इस कानून के प्रावधानों के तहत तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उन छह धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारतीयता नागरिकता देने की प्रक्रिया में ढील दी गई है जिन्होंने भारत में शरण ले रखी है।
क्या है CAA?
इस नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बुद्ध धर्मावलंबियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
एनआरसी क्या है?
एनआरसी यानी नेशनल सिटिज़न रजिस्टर। इसे आसान भाषा में भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट समझा जा सकता है। एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. जिसका नाम इस लिस्ट में नहीं, उसे अवैध निवासी माना जाता है।
असम भारत का पहला राज्य है जहां वर्ष 1951 के बाद एनआरसी लिस्ट अपडेट की गई। असम में नेशनल सिटिजन रजिस्टर सबसे पहले 1951 में तैयार कराया गया था और ये वहां अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की कथित घुसपैठ की वजह से हुए जनांदोलनों का नतीजा था।
इस जन आंदोलन के बाद असम समझौते पर दस्तख़त हुए थे और साल 1986 में सिटिज़नशिप एक्ट में संशोधन कर उसमें असम के लिए विशेष प्रावधान बनया गया।
इसके बाद साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन यानी आसू के साथ-साथ केंद्र ने भी हिस्सा लिया था।
ऐसे हुई विवाद की शुरुआत
11 दिसंबर, 2019 का दिन भारत के इतिहास में दर्ज हो गया। लोकसभा के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक(CAB) राज्यसभा में भी पारित हो गया। इस विधेयक के पास होने के साथ ही पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। इस विधेयक में दूसरे देशों में रहने वाले हिंदू, जैन, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध समेत छह धर्मों के नागरिकों को शामिल किया गया है।
विपक्ष ने सदन से लेकर सड़क तक इस विधेयक का विरोध किया। साथ ही इस विधेयक को मुसलमान विरोधी बताया है। उनका कहना है कि उन्हें ये बिल किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं है। ये देश की अखंड़ता को तोड़ने वाला है। इससे मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ती है।
जबकि मोदी सरकार का कहना है कि भारत के मुसलमानों को बिल्कुल भी डरने की जरूरत नहीं है। ये बिल भारत के मुसलमानों के खिलाफ नहीं है। ये नागरिकता का अधिकार देने वाला बिल है न की छिनने वाला। इस बिल के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता दी जाएगी।
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यहां पढ़ें मुसलमानों को लेकर किसने क्या कहा?
कपिल सिब्बल
कपिल सिब्बल ने नागरिकता संशोधन विधेयक को पूरी तरह से असंवैधानिक बताते सदन में कहा था कि सरकार इस बिल(CAA) के जरिए संविधान की धज्जियां उड़ा रही है।
गृहमंत्री अमित शाह ने सही कहा कि यह ऐतिहासिक बिल है। सरकार संविधान का मूल ढांचा बदलने जा रही है। भारत का मुसलमान सरकार से नहीं डरता है। इस सरकार का लक्ष्य और नजरिया हमें मालूम है।
असदुद्दीन ओवैसी
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जब संविधान बना था तब और आज समाज में बड़ा बदलाव आ गया है। उन्होंने कहा कि इस बिल में मुसलमानों को नहीं रखा गया है, उससे उन्हें बहुत फ़र्क़ नहीं पड़ता है लेकिन आज मुसलमानों से इतनी नफ़रत क्यों की जा रही है।
उन्होंने कहा कि इस बिल की वजह से असम में एनआरसी के तहत सिर्फ़ मुसलमानों पर केस चलेगा और सिर्फ़ बंगाली हिंदुओं के वोट के लिए बीजेपी सरकार यह सब कर रही है।
ओवैसी ने कहा कि चीन के तिब्बती बौद्धों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, ऐसा उन्होंने इसलिए नहीं किया क्योंकि भारत के गृह मंत्री चीन से डरते हैं।
उन्होंने कहा, "यह क़ानून इसलिए बनाया जा रहा है ताकि दोबारा बंटवारा हो और यह हिटलर के क़ानून से भी बदतर है। हम मुसलमानों का गुनाह कि हम मुसलमान हैं। मैं पूछता हूं कि श्रीलंका के 10 लाख तमिल, नेपाल के मधेसी क्या हिंदू नहीं हैं।
म्यांमार में चिन, काचिन, अराकान लोगों को क्यों नहीं इसमें शामिल किया गया। यह स्वतंत्रता दिलवाने वाले लोगों की बेज़्ज़ती है।"ओवैसी ने कहा कि महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका में लोगों को बांटने वाले नेशनल रजिस्टर कार्ड को फाड़ दिया था।
मीर मोहम्मद फैयाज
पीडीपी के सांसद मीर मोहम्मद फैयाज ने सदन में कहा था कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से अब कोई मुसलमान इस देश में नहीं आएगा। जिन लोगों को बिल के तहत नागरिकता दी जा रही है, हम उसका विरोध नहीं कर रहे हैं लेकिन मुसलमानों को बाहर निकालने का विरोध करते हैं। हमारे पुरखों ने पाकिस्तान के साथ ना जाकर हिंदुस्तान के साथ आने का निर्णय लिया था लेकिन मुझे लगता है कि हमारे पुरखों ने गलती की थी।
सीपीआई नेता अमीर हैदर ज़ैदी
एक टीवी चैनल पर डिबेट के दौरान सीपीआई के नेता ने मुसलमानों को एनआरसी लिस्ट में नाम दर्ज न कराने की सलाह दी। सीपीआई नेता की इस बात पर भाजपा प्रवक्ता भड़क उठे और उन्होंने सीपीआई नेता से पूछा कि मुसलमान क्या कानून से ऊपर हैं?
इसपर एंकर ने सीपीआई नेता से पूछा कि घुसपैठियों की गिनती से आप को क्या दिक्कत है? इस पर सीपीआई नेता अमीर हैदर ज़ैदी ने कहा “घुसपैठियों की गिनती से किसी भी देश के नागरिक को आपत्ति नहीं है। आपत्ति इस बात से है कि ये धर्म देख कर नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया कह रहे हैं कि हम कानूनी सहायता देंगे लेकिन धर्म देख कर।
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