विरोधियों को किनारे नहीं लगा सके राहुल, टला मगर खत्म नहीं हुआ कांग्रेस का संकट

माना जा रहा है कि जब भविष्य में कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का विकल्प तलाशेगी तब पार्टी की अंतर्कलह एक बार फिर बाहर आ सकती है।

Update:2020-08-25 10:25 IST
Congress

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: कांग्रेस कार्यसमिति की सोमवार को करीब सात घंटे चली बैठक से एक बात साफ है कि कांग्रेस का अंदरूनी विवाद टला जरूर है मगर खत्म नहीं हुआ है। कार्यसमिति ने एकमत से सोनिया गांधी को समर्थन देते हुए पार्टी में संगठनात्मक बदलाव के लिए अधिकृत तो जरूर कर दिया। मगर बैठक के अंत में सोनिया को भी कहना पड़ा कि उनके मन में पत्र लिखने वालों के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है। माना जा रहा है कि जब भविष्य में कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी का विकल्प तलाशेगी तब पार्टी की अंतर्कलह एक बार फिर बाहर आ सकती है।

चिट्ठी लिखने वाले नेता निशाने पर

कार्यसमिति की बैठक की शुरुआत में ही सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश की मगर दिनभर चली उठापटक के बाद शाम को फिर अंतरिम अध्यक्ष के रूप में उनके नाम पर ही सहमति बनी। कांग्रेस में बड़े बदलाव की मांग करने वाले 23 वरिष्ठ नेताओं के पत्र पर राहुल की प्रतिक्रिया के बाद हंगामे की स्थिति पैदा हो गई।

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CWC Meeting

इन नेताओं की भाजपा से मिलीभगत की राहुल की बात पर बैठक के दौरान हैं विरोध का स्वर फूट पड़ा। कपिल सिब्बल व गुलाम नबी आजाद जैसे वरिष्ठ नेता विरोध पर उतर आए तब इस नए संकट से निपटने के लिए तुरंत डैमेज कंट्रोल शुरू हुआ और 4 घंटे में ही दोनों को मना ही दिया गया। पूरी बैठक के दौरान पत्र लिखने वाले नेता निशाने पर रहे।

असंतोष से ही आता है बदलाव

P Chidambaram

पार्टी में इस घमासान पर वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम की प्रतिक्रिया से साफ है कि पार्टी में पैदा हुए अंदरूनी विवाद इतनी जल्दी खत्म नहीं होने वाला। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने पत्र लिखा है वे निश्चित रूप से भाजपा के विरोधी ही हैं जैसा कि मैं या राहुल गांधी हैं। असंतोष हमेशा होता है और इसी असंतोष से ही बदलाव लाने का माहौल बनता है।

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हमें यह बात समझनी होगी कि जब तक असंतोष नहीं होगा तब तक परिवर्तन नहीं होगा। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आनंद शर्मा का कहना है कि उन्होंने सीमा में रहकर ही चिंताएं जताई है। अगर फिर भी किसी को लगता है कि हमने अनुशासन बंद किया है तो कार्रवाई की जा सकती है।

पत्र लिखने वालों के प्रति दुर्भावना नहीं

Sonia Gandhi

कार्यसमिति की बैठक की शुरुआत में राहुल गांधी के विरोधी नेताओं को किनारे करने की योजना थी। बैठक की शुरुआत से ही रणनीति पर काम होता दिखा। सोनिया ने शुरुआत में ही अंतरिम अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश कर दी। इसके बाद राहुल गांधी ने पत्र लिखने वाले नेताओं पर निशाना साधते हुए उन्हें नसीहत दे डाली।

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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और एके एंटनी जैसे वरिष्ठ नेताओं की ओर से सोनिया गांधी के नेतृत्व की जमकर वकालत की गई। मगर बैठक के अंत में सोनिया की बातों से साफ हुआ कि राहुल विरोधियों को किनारे नहीं लगाया जा सका। बैठक के अंत में सोनिया गांधी ने कहा कि पत्र लिखने वालों के प्रति मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं है और सभी को मिलकर पार्टी को मजबूत बनाना होगा।

विरोधी खेमे को दी गई नसीहत

CWC

वैसे कार्यसमिति की बैठक के अंत में पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि पार्टी के अंदरूनी मामलों पर विचार विमर्श मीडिया के माध्यम से या सार्वजनिक मंचों पर नहीं किया जा सकता। पार्टी की ओर से सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को नसीहत दी गई कि पार्टी से संबंधित मुद्दों को पार्टी के मंच पर ही रखा जाए ताकि पार्टी का अनुशासन बना रहे और संगठन की गरिमा भी न घटे। इस प्रस्ताव से साफ है कि पार्टी में बदलाव की मांग उठाने वाले नेताओं को एक संदेश देने की कोशिश की गई है।

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पार्टी का संकट टालने के लिए कमेटी बनाने की भी घोषणा की गई है। यह कमेटी संगठन के कामकाज को लेकर उठाए गए सवालों की पड़ताल करेगी। देखने वाली बात यह होती है कि इस कमेटी में किन नेताओं को रखा जाता है और किस गुट का पलड़ा भारी रहता है। वैसे राहुल विरोधी गुट के एक नेता का कहना है कि कमेटी किसी समस्या का समाधान नहीं है। असली सवाल यह है कि पार्टी की कमान किसके हाथों में होगी और भविष्य में पार्टी की ओर से विभिन्न मुद्दों को लेकर क्या कार्य शैली अपनाई जाएगी।

भविष्य में भी टकराव के आसार

Sonia-Rahul

जानकारों का कहना है कि पार्टी का एक धड़ा राहुल की दोबारा ताजपोशी नहीं चाहता है। वह उनकी पसंद के व्यक्ति को भी पार्टी की अगुवाई सपने के समर्थन में नहीं है। ऐसे में भविष्य में भी पार्टी में नेतृत्व के मुद्दे को लेकर टकराव पैदा हो सकता है। सूत्रों का यह भी कहना है कि 6 महीने में प्रियंका को कमान देने की पटकथा भी लिखी जा सकती है। सोनिया गांधी ने 1998 में पहली बार कांग्रेस की कमान संभाली थी और यह दूसरा मौका है।

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जब उनके सामने पार्टी में ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा हुई है। इससे पहले 1999 में कांग्रेस के दिग्गज नेता शरद पवार ने सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने का तीखा विरोध किया था। पवार की ओर से यह मुद्दा उठाए जाने के बाद सोनिया ने इस्तीफा दे दिया था। मगर कार्यसमिति की ओर से सर्वसम्मति से सोनिया का इस्तीफा खारिज कर दिया गया था। बाद में पवार ने कुछ बागी नेताओं के साथ कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।

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