New President Droupadi Murmu: द्रौपदी और उनके पति को पसंद नहीं थी सियासत, बड़ी मुश्किल से चुनाव लड़ने को हुई थीं तैयार

New President Droupadi Murmu: द्रौपदी मुर्मू के सियासी मैदान में लाने का श्रेय मयूरभंज के तत्कालीन भाजपा जिला अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो को दिया जाता है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-07-25 10:27 IST

New President Droupadi Murmu (photo: social media )

New President Droupadi Murmu: देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के साथ द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने इतिहास रच दिया है। देश में पहली बार कोई आदिवासी महिला देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने में कामयाब हुई है। मुर्मू पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने काउंसलर से राष्ट्रपति पद तक का सफर तय किया है मगर कम लोगों को यह बात मालूम है कि मुर्मू सियासी मैदान में अपनी पहली सीढ़ी यानी काउंसलर का चुनाव लड़ने के लिए काफी मुश्किल से तैयार हुई थीं। उनके पति को भी शुरुआत में सियासत मंजूर नहीं थी और वे मुर्मू के टीचर बने रहने से ही संतुष्ट थे।

द्रौपदी को चुनाव लड़ाने के लिए मयूरभंज के तत्कालीन जिला अध्यक्ष रविंद्र नाथ के महत्व को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। काउंसलर के इसी चुनाव ने मुर्मू के लिए देश की बुलंदी पर पहुंचने का रास्ता खोला। आज द्रौपदी मुर्मू के पति श्याम चरण मुर्मू वह दिन देखने के लिए इस दुनिया में नहीं है जब उनकी पत्नी द्रौपदी मुर्मू ने काउंसलर से लेकर राष्ट्रपति पद से तक का सफर तय किया है।

चुनाव लड़ने का प्रस्ताव लेकर पहुंचे थे महतो

द्रौपदी मुर्मू ने 25 साल पहले 1997 में सियासी मैदान में कदम रखा था। उनको सियासी मैदान में लाने का श्रेय मयूरभंज के तत्कालीन भाजपा जिला अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो को दिया जाता है। दरअसल 1997 में रायरंगपुर के वार्ड नंबर 2 के काउंसलर पद के लिए भाजपा को किसी अच्छे प्रत्याशी की तलाश थी। काउंसलर की यह सीट आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित थी। भाजपा के राज्य नेतृत्व की तरफ से महतो से काउंसलर के इस चुनाव के लिए किसी योग्य आदिवासी महिला का की तलाश करने को कहा गया।

महतो द्रौपदी मुर्मू को काफी दिनों से जानते थे। मुर्मू जब भुवनेश्वर के आदिवासी आवासीय विद्यालय में पढ़ने गई थीं, महतो उसी समय से द्रौपदी मुर्मू को से परिचित थे। द्रोपदी महतो को चाचा की तरह सम्मान देती थी। भाजपा के स्टेट लीडरशिप का निर्देश मिलने के बाद महतो की नजर सबसे पहले द्रौपदी मुर्मू पर ही गई और वे द्रौपदी मुर्मू को काउंसलर का चुनाव लड़ाने की कोशिश में जुट गए।

द्रौपदी और उनके पति भी नहीं हुए तैयार

महतो के पुत्र और मयूरभंज भाजपा के जिलाध्यक्ष विकास महतो का कहना है कि उस समय द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर के एक स्कूल में टीचर के रूप में पढ़ा रही थीं जबकि उनके पति श्याम चरण मुर्मू बैंक मैनेजर के रूप में कार्यरत थे। रविंद्र नाथ महतो जब चुनाव लड़ने का अनुरोध लेकर श्याम चरण मुर्मू और द्रौपदी मुर्मू के पास पहुंचे तो श्याम चरण मुर्मू ने यह प्रस्ताव एकबारगी ठुकरा दिया। उनका कहना था कि राजनीति का क्षेत्र हम जैसे लोगों के लिए नहीं है। औरतों के लिए तो सियासी मैदान में जाना बिल्कुल भी उचित नहीं है।

काफी मनाने पर मानीं द्रौपदी और उनके पति

द्रौपदी मुर्मू को भी टीचर का काम छोड़कर सियासी मैदान में आना मंजूर नहीं था। दूसरी ओर रविंद्र नाथ महतो द्रौपदी को चुनाव लड़ाने पर अड़े हुए थे और उन्होंने इसके लिए आगे भी प्रयास जारी रखा। श्याम चरण मुर्मू और द्रौपदी को तैयार करने के लिए बाद में वे कई भाजपा कार्यकर्ताओं को लेकर दोनों के पास पहुंचे। दोनों पक्षों के बीच काफी देर तक इस मुद्दे पर गहन चर्चा होती रही।

आखिरकार रविंद्र नाथ महतो के अनुरोध और दबाव के आगे श्याम चरण और द्रौपदी को झुकना पड़ा। दोनों काफी मुश्किल से तैयार हुए और उसके बाद द्रोपदी मुर्मू ने वार्ड नंबर 2 से काउंसलर का चुनाव लड़ा और पहली बार में ही इस चुनाव में विजय पताका फहरा दी।

जीत के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

काउंसलर के चुनाव से ही द्रौपदी मुर्मू के सियासी मैदान में आने का रास्ता खुला। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे दो बार ओडिशा की रायरंगपुर विधानसभा सीट से विधायक चुनी गईं। उड़ीसा की बीजू जनता दल और भाजपा गठबंधन की नवीन पटनायक सरकार में उन्होंने कई मंत्रालयों का कामकाज संभाला। उन्होंने वाणिज्य, परिवहन और बाद में पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की जिम्मेदारी संभाली। भाजपा की ओर से उन्हें 2006 में अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। उन्होंने मयूरभंज जिला भाजपा अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाली।

2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया। पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद कोरोना महामारी के मद्देनजर उन्हें सेवा विस्तार दिया गया था।। उन्होंने 6 वर्ष 54 दिनों तक झारखंड के राज्यपाल के रूप में काम किया। अब उन्होंने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की शपथ ली है। वे इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला आदिवासी हैं।

पीएम के फोन पर भावुक हो गई थीं द्रौपदी

जून महीने की 21 तारीख को जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर मुर्मू को एनडीए का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की जानकारी दी थी तो वे इस फैसले को लेकर सुनकर हैरान रह गई थीं। 2010 से 2014 के बीच अपने पति और दो बेटों को होने वाली मुर्मू राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने की बात सुनकर भावुक हो गई थीं और उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े थे।

मयूरभंज जिला भाजपा अध्यक्ष विकास महतो का कहना है कि पीएम से बातचीत के बाद मैंने और मुर्मू की बेटी इतिश्री ने उन्हें किसी तरह संभाला था। बेटों की मौत के बाद तो उन्होंने एक बार राजनीति छोड़ने तक का मन बना लिया था मगर उस समय रविंद्र नाथ महतो ने किसी तरह समझा-बुझाकर उन्हें ऐसा फैसला न करने के लिए तैयार किया था। उसके बाद मुर्मू ने मानसिक मजबूती दिखाई और आज वे देश के सबसे बड़े पद पर पहुंचने में कामयाब हुई हैं।

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