रामदेव की दवा पर निम्स चेयरमैन का बड़ा बयान, कोरोनिल के ट्रायल पर कही ये बात
पतांजलि की कोरोनिल दवा का क्लीनिकल ट्रायल करने वाले निम्स विश्वविद्यालय के मालिक और चेयरमैन बीएस तोमर ने भी बड़ा बयान दिया है।
नई दिल्ली: योग गुरु राम देव की कोरोना के इलाज को लेकर हाल ही लॉन्च हुई पतांजलि की कोरोनिल दवा चर्चा में बनी हुई है। अब इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल करने वाले निम्स विश्वविद्यालय के मालिक और चेयरमैन बीएस तोमर ने भी बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि उनके अस्पतालों में कोरोना की दवा का कोई क्लिनिकल ट्रायल नहीं किया गया हैं।
कोरोनिल का क्लिनिकल टेस्ट करने वाले निम्स चेयरमैन पलटे:
दरअसल, पतंजलि की कोरोनिल दवा को लेकर किये गए दावों के बाद आयुष मंत्रालय ने इसके ट्रायल से जुड़ी पूरी जानकारी कम्पनी से मांगी थी।
एक महीने में रामदेव के साथ मिल कर निम्स ने लॉन्च की दवा
कहा गया कि कोरोनिल का क्लीनिकल ट्रायल निम्स यूनिवर्सिटी में हुआ। जानकारी के मुताबिक, 20 मई को निम्स विश्वविद्यालय ने सीटीआरआई से औषधियों के इम्यूनिटी टेस्टिंग के लिए इजाजत ली थी। 23 मई को इसका ट्रायल शुरू हुआ और एक महीने के अंदर 23 जून को दवा लॉन्च कर दिया गया।
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बीएस तोमर बोले-रामदेव बताएं कैसे बनाई दवा
लेकिन अब निम्स चेयरमैन बीएस तोमर कोरोनिल को लेकर पलट गए। उन्होंने इसके ट्रायल को लेकर कहा कि हमने इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर ट्रायल के दौरान अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी दिया था। मैं नहीं जानता कि योग गुरु रामदेव ने इसे कोरोना का शत प्रतिशत इलाज करने वाला कैसे बता दिया।
उन्होंने बताया कि ये दवा कैसे बनी इसके बारे में वो कुछ नहीं जानते। लेकिन रामदेव ही बता सकते हैं कि कोरोना के इलाज की दवा को कैसे बनाया।
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मंगलवार को राम देव ने की कोरोना की दवा लॉन्च
गौरतलब है कि पतंजलि ने मंगलवार को COVID-19 के इलाज के लिए कोरोनिल दवा को लॉन्च किया था। इस दौरान रामदेव ने दावा किया था कि इस दवा की 100 फीसदी रिकवरी रेट और शून्य डेथ रेट है। 7 दिन में मरीज पूरी तरीके से ठीक हो जाएगा। इसके बाद पतंजलि आयुर्वेद की इस दवा पर कई लोगों ने सवाल उठा दिए।
आयुष मंत्रालय ने आपत्ति जताते हुए माँगा जवाब
केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने कोरोनिल दवा को संज्ञान में लेते हुए पतंजलि को नोटिस भेजकर तत्काल दवा के विज्ञापन पर रोक लगा दी। वहीं कहा गया कि बिना आईसीएमआर (ICMR) की प्रमाणिकता के फार्मेसी ऐसा दावा कैसे कर सकती है। मामले में उत्तराखंड के आयुष विभाग को पत्र भेजकर दवा से जुड़ी सारी जानकारी मांगी गयी।
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