बैंक को ठगने के बाद माल्या, नीरव सहित इन लुटेरों ने लगाया नागरिकों को 6 हजार का चूना! 

Update:2018-02-24 14:52 IST

नई दिल्ली। पिछले दिनों एक के बाद एक बड़े-बड़े कारोबारियों के वाइट कॉलर पर काला धब्बा तब लग गया जब इनकी काली कमाई का सच लोगों के सामने उजागर हो गया। किंगफ़िशर प्रमुख 'माल्या', रोटोमैक मालिक 'विक्रम कोठारी' व सबसे बड़े पीएनबी फ्रॉड में शामिल 'नीरव मोदी' और ओरिएंटल बैंक को 390 करोड़ का चूना लगाने वाले हीरा कारोबारियों ने बैंको की हालत तो ख़राब कर ही दी है। साथ ही साथ भारतीय नागरिकों को भी कर्ज तले दबा दिया है।

बता दें कि, इन लुटेरों की वजह से भारतीय बैंकों की हालत खस्ता हो गई है। भारतीय बैंकों का डूबत खाता सितंबर 2017 तक 8 लाख 29 हजार करोड़ तक पहुंच गया है। यानी यह बैंकों द्वारा बांटे गए कर्ज का वो पैसा है जिसकी वसूली की संभावना नहीं है। यह इतना पैसा है कि देश की 133 अरब आबादी से अगर इस पैसे की वसूली की जाए तो हर शख्स को 6,233 रुपए देने होंगे। दूसरी ओर उद्योगों पर 28 लाख 92 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। अगर देश के हर व्यक्ति से ये रकम वसूली जाए तो हर एक व्यक्ति को 4195 रुपए देने होंगे।

आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, उद्योगों पर 28 लाख 92 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। यह बांटे गए कुल कर्ज का 37 प्रतिशत है । अगर बैंकों ने 100 रुपए का कर्ज बांटा है तो उसमें 37 रुपए उद्योगों को दिया है। उद्योगों को मिले इस 37 रुपए में 19 प्रतिशत एनपीए है। मतलब बैंकों के 100 रुपए में से 19 रुपए उद्योगों की वजह से डूबने की कगार पर हैं। सही रकम के तौर पर देखें तो इन 19 रुपए का मतलब है पांच लाख 58 हजार करोड रुपए। यह इतनी रकम है कि देश के हर व्यक्ति से वसूली जाए तो हर एक को 4195 रुपए देने होंगे।

कुल मिलाकर एक तरफ जहां छोटे ग्राहक कर्ज चुकाकर बैंकों को आमदनी दे रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बड़े धन्नासेठ कर्ज दबाकर बैंकों की हालत पतली कर रहे हैं।

हैरानी की बात तो ये है कि जितना देश में एनपीए है उससे देश के बच्चों को 25 साल तक मिड-डे मील दिया जा सकता है।ये रकम देश के एक तिहाई बजट के बराबर है । इस रकम से मनरेगा जैसी 15 योजनाएं चलाई जा सकती हैं । भारत का रक्षा बजट दो लाख 95 हजार करोड का है। डूब रही रकम से तीन साल के रक्षा बजट का खर्च निकल सकता है।

ये राशि हेल्थ, एजुकेशन और सामाजिक सुरक्षा के 9 साल के बजट के बराबर है । इन तीन मद में एक लाख 53 हजार करोड खर्च होते हैं यानी नौ साल तक हेल्थ, एजुकेशन में अलग से पैसे की जरूरत नहीं होगी।उज्जवला योजना का बजट चार हजार 800 करोड का है । यानी उज्जवला जैसी 172 योजनाए एनपीए की राशि से तैयार हो सकती हैं।

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एस सिसोदिया कहते हैं कि एनपीए में बड़े उद्योगों का हिस्सा करीब 70 फीसदी है। उन्होंने कहा, बैंक तो आम आदमी को दिए लोन की आमदनी से चल रहे हैं। "उद्योगों को 4 से 6% की दर पर लोन मिलता है और आम आदमी को 8 से 15% तक की दर पर। उद्योगों को दिए 100 रुपए के कर्ज में 19 रुपए डूब रहे हैं तो आम आदमी के महज 2, और जोकि ये भी बाद में वसूल लिए जाते है।

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