महागठबंधन से निकल भाजपा के साथ गए नीतीश के सामने कमजोर दिख रहे पूर्व अध्यक्ष
‘‘विजेंद्र यादव को सीएम उम्मीदवार बता मुंह की खा चुके हैं। चुनाव आयोग में असल-नकल की लड़ाई दो बार हार चुके हैं। तीसरी बार जाने की तैयारी भी बता चुके हैं। ऐसे में शरद यादव असल में चाहते क्या हैं, यह बड़ा सवाल है। दरअसल, शरद यादव अरसे बाद बिहार की राजनीति में अपनी ‘रिकवरी’ ढूंढ़ रहे हैं और वह भी नीतीश कुमार के ‘सिस्टम’ में।’’
शिशिर कुमार सिन्हा की स्पेशल रिपोर्ट
पटना। केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो शरद यादव के संसदीय क्षेत्र मधेपुरा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर लालू प्रसाद यादव ने जगह-जगह बोर्ड लगवाए थे - ‘यह सडक़ केंद्र सरकार की है।’ शरद तब भाजपा के नेतृत्व वाली अटल बिहारी सरकार में थे और राजद से अलगाव ताजा-ताजा ही था। यह बोर्ड पूरे देश में चॢचत हुआ था। राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष ने जो दांव तब शरद यादव के खिलाफ खेला था, वही अब उनके साथ आने पर खेल रहे हैं।
जदयू के राज्यसभा सांसद और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष होकर भी शरद यादव लगातार विपक्षी दल राजद के मुखिया लालू प्रसाद के साथ मंचासीन ही नहीं हो रहे, बल्कि उनके समर्थन में लगातार बयान दे रहे हैं। इन बयानों के बीच वह कुछ दांव भी खेल रहे हैं, हालांकि अब तक सभी फेल ही हुए हंै। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सिस्टम में अपने राजनीतिक कॅरियर का पासवर्ड ढूंढऩे की एक बड़ी कोशिश में शरद झटके में औंधे मुंह आ गिरे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है। वह लगातार ऐसी कोशिश में जुटे हैं।
तस्वीर से भ्रमित हो पकड़ी यह राह
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन सरकार का इस्तीफा सौंपकर जैसे ही रातों-रात भाजपा के साथ का ऐलान किया तो राज्यसभा सांसद शरद यादव ने अपनी आपत्ति जाहिर की। इस आपत्ति के बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी राह चले तो शरद पटना आए। अरसे बाद यहंा कैंप भी किया। इस आगमन पर उन्हें कुछ लोगों का साथ नजर आया और बताया जाता है कि इसी साथ ने उन्हें भ्रमित कर दिया। शरद यादव के साथ शुरू में नजर आए राज्य स्तर के दो नेताओं से ‘अपना भारत’ ने बात की।
उन्होंने कहा- पटना एयरपोर्ट से जिस भ्रम की शुरुआत हुई, उसपर होमवर्क नहीं किया गया। जदयू ने इसपर होमवर्क किया और ज्यादातर नेताओं को वापस समेट लिया गया, जिनके शरद के साथ जाने की उम्मीद (आशंका) थी। शरद ने पीछे मुडक़र नहीं देखा कि कितने उनके साथ रहे और उनकी अपनी बिसात क्या है। इसी कारण शरद को राजद की ‘भाजपा भगाओ-देश बचाओ’ रैली में भी खास तवज्जो नहीं मिली। हालत यह रही कि उनके सुर में सुर मिलाने वाले जदयू से निलंबित राज्यसभा सांसद अली अनवर को पीछे की कुॢसयों पर जगह तलाशनी पड़ी।
विजेंद्र यादव का नाम सामने लाकर फंसे
शरद यादव खेमा लगातार नीतीश के सिस्टम में सेंध का प्रयास कर रहा है। इसी प्रयास के तहत जातिगत आधार पर सितंबर के अंतिम हफ्ते में अचानक बयान आया कि नीतीश सरकार के ऊ$र्जा मंत्री विजेंद्र यादव कभी भी पाला बदल शरद के साथ आ सकते हैं। विजेंद्र को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा तक कर डाली गई। लेकिन, यह घोषणा बुरी तरह पिट गई। विजेंद्र ने फौरन सामने आकर इसे बकवास करार दिया। दरअसल, विजेंद्र यादव नीतीश मंत्रिमंडल के सबसे बुजुर्ग और अनुभवी मंत्री होने के साथ ही मुख्यमंत्री के करीबी भी माने जाते हैं।
ऐसे में उनका सामने आकर तुरंत सब कुछ साफ करना तय ही था। विजेंद्र यादव का नाम सामने लाकर शरद खेमे ने ‘यादव दांव’ खेला था, लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों ने इसे लालू प्रसाद का ही दांव माना। इसलिए, इसके बाद जनता दल (यू) ने शरद यादव को पार्टी में सेंध लगाने लायक ही नहीं छोड़ा। यही कारण रहा कि शरद ने जितनी तेजी से चुनाव आयोग के पास अपने दावे को मजबूत करने के लिए अपनी कार्यकारिणी तैयार की, उतनी ही तेजी से इसकी हकीकत भी सामने आती गई। सांसद-विधायक के साथ राष्ट्रीय कार्यकारिणी और कार्यसमिति सदस्यों के समर्थन के अभाव में शरद यादव चुनाव आयोग के सामने खुद को असली जदयू नहीं ठहरा सके।
दबाव बनाकर घर वापसी की उम्मीद
जदयू को उम्मीद है कि शरद यादव वापस आएंगे। ऊ$र्जा मंत्री विजेंद्र यादव के साथ ही जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह लगातार दोहरा रहे हैं कि शरद को अपनी गलती का एहसास होगा। राष्ट्रीय महासचिव व सांसद आरसीपी सिंह भी यही बात कह रहे, हालांकि उनका अंदाज दूसरा है। आरसीपी का कहना है कि चुनाव आयोग की ओर बार-बार जाकर शरद यादव जदयू पर दबाव बनाना चाह रहे, जबकि हकीकत यही है कि जदयू की राज्यसभा सांसदी के लिए उनके पास एक ही उपाय है- घर वापसी।
इन बयानों के पीछे वजह यह है कि शरद बिना टीम के बिहार की राजनीति के मैदान में उतरने का प्रयास कर रहे हैं। जदयू समझ रहा है कि वह इस तरह ज्यादा दिन टिक नहीं सकेंगे और राजद का नेता होकर उन्हें जदयू वाली इज्जत भी नहीं मिलेगी, इसलिए एक तरफ उन्हें सही रास्ते पर लौटने की सलाह भी दी जा रही है और दूसरी तरफ उन्हें यह भी संदेश दिया जा रहा है कि अगर ज्यादा परेशानी है तो पार्टी से मुक्त हो जाएं।
वशिष्ठ नारायण सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, जनता दल यूनाइटेड