CBI Inquiry: निठारी और आरुषी हत्याकांड को लेकर सीबीआई की जांच पर उठने लगे सवाल, क्या कहते हैं कानून के जानकार
CBI Inquiry: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निठारी कांड के दो आरोपियों सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढ़ेर को सोमवार को फांसी की सजा से बरी करते हुए जांच पर सवाल उठाए और सीबीआई को फटकारा।
CBI Inquiry: देश में जब कोई मामला सामने आता है और पीड़ित पक्ष को ऐसा लगता है कि उसके साथ स्थानीय पुलिस न्याय नहीं कर पाएगी, तो उनकी एक ही मांग सामने आती है – ‘सीबीआई इन्कवायरी’ । माना जाता है कि अगर कोई जांच सीबीआई के हाथों में पहुंचती है तो उसका निष्कर्ष हमेशा न्यायपूर्ण ही आएगा। देश की सबसे बड़ी और ताकतवर जांच एजेंसी के सामने लोगों के इस भरोसे पर खड़ा उतरने की चुनौती बनी रहती है। देश में ऐसे कई मामले हैं, जिन्हें सीबीआई भी नहीं सुलझा सकी है।
कई मामलों में तो केंद्रीय एजेंसी खुद ही उलझ गई और आरोपियों को कोर्ट से राहत मिल गई। कई बार सीबीआई को कोर्ट से कड़ी फटकार भी सुननी पड़ी है। नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड और आरुषी हत्याकांड में भी जांच एजेंसी का यही हश्र हुआ है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निठारी कांड के दो आरोपियों सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढ़ेर को सोमवार को फांसी की सजा से बरी करते हुए जांच पर सवाल उठाए और सीबीआई को फटकारा।
Nithari Case: 17 साल में सज़ा-ए-मौत से बरी होने की कहानी
हाईकोर्ट ने कोली और पंढ़ेर को क्यों किया रिहा ?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बहुचर्चित निठारी कांड में सोमवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए दोनों आरोपियों सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढ़ेर बरी कर सबको चौंका दिया। अदालत का ये फैसला सीबीआई के लिए भी बहुत बड़ा झटका था क्योंकि गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने ही दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी और जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए तल्ख टिप्पणियां भी की हैं और जांच में रह गई कमी को उजागर किया है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ऐसा लगता है कि जांच एजेंसी ने घर के गरीब नौकर को फंसा कर जांच पूरी करने का आसान रास्ता चुना। इस मामले में मानव अंग व्यापार की संभावना की जांच तक नहीं की गई, जबकि घटनास्थल के पास के ही घर से किडनी मामले के आरोपी की गिरफ्तारी हुई थी। यहां तक कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भी मानव अंग तस्करी की संभावना की जांच की सिफारिश की थी, पर उसे भी ताक पर रख दिया गया। ये ज़िम्मेदार जाँच एजेंसी के ज़रिए लोगों के विश्वास से धोखे से कम नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में जांच करने में गड़बड़ हुई और सबूत जमा करने के बुनियादी सिद्धांतों का भी पालन नहीं किया गया। जिस तरह से गिरफ्तारी, बरामदगी और इकबालिया बयान जैसे महत्वपूर्ण पहलूओं को हल्के तरीके से लिया गया, वो चिंताजनक है। अदालत ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि सुरेंद्र कोली का इकबालिया बयान पुलिस रिमांड के 60 दिन बाद लिया गया। वो भी बिना किसी मेडिकल जांच के, उसे कोई कानूनी सहायता भी नहीं मुहैय़ा कराई गई और न ही पुलिस टॉर्चर के आरोप की जांच की गई।
क्या था निठारी हत्याकांड ?
बहुचर्चित निठारी कांड 2005 से 2006 के बीच हुआ था। पूरा मामला पहली बार तब खुला जब दिसंबर 2006 को एक युवती की गुमशुदगी के मामले की जांच कर रही पुलिस मनिंदर सिंह पंढ़ेर के घर पहुंची। पुलिस को उसकी कोठी के पीछे से बह रह नाले से 19 बच्चों और महिलाओं के कंकाल मिले थे। मानव अंगों को 40 पैकेट में भरकर नाले में फेंका गया था।
आरूषि हेमराज हत्याकांड में क्या हुआ ?
निठारी कांड की तरह नोएडा का आरूषि हेमराज हत्याकांड भी एक बहुचर्चित मामला है। जिसकी जांच एक पहेली बन चुकी है। 13 मई 2008 को नोएडा के सेक्टर -27 के जलवायु विहार में आरूषि तलवार और उसके नौकर हेमराज की हत्या कर दी गई थी। घटना के 17 दिन बाद यानी 1 जून 2008 को मामला सीबीआई के हाथों में आया। केंद्रीय एजेंसी की जांच का हश्र ये हुआ कि उसके द्वारा दो बार कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई और दोनों ही बार उसे खारिज कर दिया गया।
केस का करेंट स्टेटस ये है कि गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट द्वारा दोषी करार आरूषि के पिता डॉक्टर राजेश तलवार व माता डॉ नूपुर तलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। सीबीआई की तमाम दलीलों को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया गया था। जांच एजेंसी ने इस मामले को लेकर तलवार दंपत्ति का नार्को टेस्ट से लेकर ब्रेन मैपिंग और लाई डिटेक्टर टेस्ट तक किया था, फिर भी उसके हाथ कोई ऐसा सबूत नहीं लगा जो दोनों को सजा दिलाने लायक हो।
क्या कहते हैं कानून के जानकार ?
देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सीबीआई द्वारा कुछ मामलों की जांच में अपेक्षित परिणाम न देने को लेकर कानून के जानकारों ने अपनी राय दी है। उनका कहना है कि किसी भी घटना में प्राथमिक साक्ष्यों का एकत्रित करना सबसे महत्वपूर्ण होता है। पुलिस शुरूआत में ही लापरवाही दिखाती है और उसे ठीक से एकत्रित नहीं करती। जब तक यह मामला सीबीआई तक पहुंचता है, तब तक सबूत इधर से उधर हो जाते हैं। ऐसे में सीबीआई के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है।