Train Accident Reasons: रेल सुरक्षा के उपाय बहुत, लेकिन इसलिए बढ़ते जा रहे हादसे
Train Accident Reasons: 2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि अनेक दुर्घटनाएं सिग्नलिंग की त्रुटियों के कारण भी होती हैं जिसके लिए लोको-पायलट जिम्मेदार होते हैं।
Train Accident Reasons: एक तरफ वंदे भारत जैसी नई ट्रेनें चलाई जा रही हैं और ट्रेनों की औसत रफ्तार काफी बढ़ चुकी है वहीं ट्रेन हादसे भी बढ़ते जा रहे हैं। ये एक बड़ी और गंभीर चिंता की बात है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में जानमाल के नुकसान वाली 48 रेल दुर्घटनाएँ दर्ज की गईं। जबकि एक साल पहले इनकी संख्या 35 थी। 2022-23 में गैर-परिणामी यानी बिना जानमाल के नुकसान वाली ट्रेन दुर्घटनाओं की संख्या 162 थी, जिसमें सिग्नल पास डेंजर (एसपीएडी) के 35 मामले शामिल थे।
रेलवे पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने 2016 में ही अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आधे से ज्यादा हादसे रेलवे स्टाफ की चूक के कारण होते हैं। इस तरह की खामियों में काम में लापरवाही, खराब रखरखाव का काम, शॉर्ट-कट अपनाना, निर्धारित सुरक्षा नियमों और प्रक्रियाओं का पालन न करना शामिल है।
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लोको पायलट की लापरवाही
2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि अनेक दुर्घटनाएं सिग्नलिंग की त्रुटियों के कारण भी होती हैं जिसके लिए लोको-पायलट जिम्मेदार होते हैं। रेल यातायात बढ़ने के साथ, लोको-पायलटों को हर किलोमीटर पर एक सिग्नल मिलता है और उन्हें लगातार हाई अलर्ट पर रहना पड़ता है। इसके अलावा, वर्तमान में लोको-पायलटों के लिए कोई तकनीकी सहायता उपलब्ध नहीं है और उन्हें सिग्नल पर सतर्क निगरानी रखनी होती है और उसी प्रकार ट्रेन को नियंत्रित करना होता है।
- लोको-पायलटों से भी अधिक काम लिया जाता है क्योंकि उन्हें अपनी ड्यूटी के निर्धारित घंटों से अधिक काम करना पड़ता है। यह काम का तनाव और थकान हजारों यात्रियों के जीवन को जोखिम में डालता है और ट्रेन संचालन की सुरक्षा को प्रभावित करता है।
- 2023 में भी स्थिति ज्यादा बदली नहीं है। एक रिपोर्ट में एक कारण यह गिनाया गया है कि कर्मचारियों की भारी कमी है। इस कारण लोको पायलटों को लंबे समय तक काम करना पड़ता है। लेकिन इसके अलावा भी कई अन्य कारण हैं।
- रेलवे बोर्ड ने हाल ही में लोको पायलटों को उनके निर्धारित कार्य घंटों से अधिक पर तैनात किए जाने के मुद्दे को उठाया है। नियमों के अनुसार किसी भी परिस्थिति में चालक दल के काम के घंटे 12 घंटे से अधिक नहीं हो सकते।लेकिन मैनपावर की कमी के कारण कई क्षेत्रीय रेलवे में लोको पायलटों को निर्धारित ड्यूटी से कहीं ज्यादा काम कराया गया है।
सिग्नल की अनदेखी
सिग्नल की अनदेखी को सिग्नल पास्ड एट डेंजर (एसपीएडी) कहा जाता है और ये बेहद खतरनाक स्थिति होती है। एसपीएडी तब होती है जब कोई ट्रेन बिना किसी अधिकार के खतरे के सिग्नल से गुजरती है। इसके संभावित विनाशकारी परिणाम को देखते हुए यह किसी भी रेल प्रणाली के लिए एक भयावह घटना है। दुनिया में हर रेलवे प्रणाली इस सुरक्षा जोखिम के बारे में बेहद चिंतित हैं। एसपीएडी के वर्तमान कारणों के रूप में, इसके न होने की गारंटी नहीं है।
- सिग्नलिंग सिस्टम रेलवे नेटवर्क में काफी एडवांस और ऑटोमेटिक हो चुका है। भारतीय रेलवे ने ट्रेनों की टक्कर रोकने के लिए "कवच" सिस्टम भी लागू किया है। भारतीय रेलवे वर्तमान वित्तीय वर्ष में 2000 रूट-किमी पर इसे स्थापित करने के काम में लगी है। 2028 तक भारतीय रेल के 68,446 रूट-किमी नेटवर्क को लैस करने के उद्देश्य से कवच को प्रत्येक वर्ष 4000 रूट-किमी पर स्थापित किया जाएगा।
एक पटरी पर दो ट्रेनें होने की स्थिति में या जब ड्राइवर खतरे का संकेत पार करता है तो कवच सिस्टम स्वचालित रूप से ब्रेक लगाता है।
- अनुमान है कि रेल नेटवर्क पर इसे स्थापित करने के लिए 250 अरब रुपये खर्च होंगे।