One Nation-One Election: कैबिनेट मंजूरी के बाद भी आसान नहीं है राह, मोदी सरकार को इन चुनौतियों से जूझना होगा

One Nation-One Election: मोदी सरकार ने इस दिशा में बड़ा कदम तो उठाया है मगर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की राह आसान नहीं मानी जा रही है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2024-09-20 11:48 IST

PM Modi (photo: social media )

One Nation-One Election: पूरे देश में एक साथ चुनाव को लेकर इन दिनों राजनीतिक गलियारों और आम लोगों के बीच खूब चर्चा हो रही है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस संबंध में कोविंद समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठिति समिति ने पिछले मार्च महीने के दौरान इस बाबत राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। मोदी सरकार ने इस दिशा में बड़ा कदम तो उठाया है मगर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की राह आसान नहीं मानी जा रही है।

दरअसल कई विपक्षी दलों की ओर से इस प्रस्ताव का तीखा विरोध किया जा रहा है। पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए कई संवैधानिक संशोधन पारित कराने होंगे और इसके लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। यही कारण है कि कांग्रेस समेत कई प्रमुख क्षेत्रीय दलों के विरोध के कारण यह काम आसान नहीं माना जा रहा है।

क्या की गई है रिपोर्ट में सिफारिश

कोविंद समिति की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि ‘एक देश,एक चुनाव’ के फैसले को दो चरणों में लागू किया जा सकता है। समिति की ओर से सिफारिश की गई है कि पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं और उसके 100 दिन बाद स्थानीय निकायों के चुनावों को पूरा कराया जा सकता है।

मोदी सरकार की ओर से लंबे समय से ‘एक देश-एक चुनाव’ की वकालत की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाने की मजबूत वकालत की थी। उनका कहना था कि इससे पैसे और समय की बचत होगी और देश की प्रगति के काम भी अवरुद्ध नहीं होंगे।

पहले समर्थन मगर अब बदलने लगा कई दलों का सुर

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर सभी दलों से राय मांगी थी। 47 राजनीतिक दलों में से 32 ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाने के विचार का समर्थन किया था जबकि 15 राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया था। ‘एक देश,एक चुनाव’ का समर्थन करने वाले अधिकांश दल या तो भाजपा के सहयोगी हैं या उनका रवैया एनडीए के प्रति सहानुभूति वाला है।

हालांकि कुछ दलों का रवैया अब बदलता हुआ नजर आ रहा है। बीजू जनता दल ने पहले इस प्रस्ताव का समर्थन किया था मगर अब पार्टी के सुर बदल गए हैं और पार्टी इसका विरोध करने की दिशा में आगे बढ़ गई है। जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस का भी सुर बदलता हुआ नजर आ रहा है।

संवैधानिक संशोधन की अड़चन

पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर मोदी सरकार की राह इसलिए मुश्किल मानी जा रही है क्योंकि इसके लिए कई संवैधानिक संशोधन करने होंगे। इन संशोधनों को पारित कराने के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी। लोकसभा और राज्यसभा के नंबर गेम को देखा जाए तो यह काम आसान नहीं माना जा रहा है। संवैधानिक संशोधन पारित करने के लिए लोकसभा में सरकार को 361 और राज्यसभा में 156 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी।

लोकसभा और राज्यसभा का नंबर गेम

अब यदि लोकसभा के नंबर गेम को देखा जाए तो भाजपा ने इस बार 240 सीटों पर जीत हासिल की थी। सहयोगी दलों को मिलाकर एनडीए के पास 293 सांसदों की ताकत है। इस कारण लोकसभा में भाजपा को 68 सांसदों का जुगाड़ करना होगा। यदि छोटे-मोटे दलों ने एनडीए को समर्थन भी दे दिया तो फिर भी विपक्ष संवैधानिक संशोधनों की राह में बड़ी बाधा खड़ी कर सकता है।

दूसरी ओर इंडिया ब्लॉक के पास 237 सांसदों की ताकत है और कांग्रेस अन्य दलों का समर्थन भी हासिल करने की कोशिश में जुटी हुई है। यदि राज्यसभा के नंबर गेम को देखा जाए तो यहां भी एनडीए दो तिहाई बहुमत के आंकड़े से काफी पीछे है। एनडीए के पास 121 सांसदों की ताकत है जो कि बहुमत के लिए जरूरी 156 के आंकड़े से काफी पीछे है।

सरकार की आगे की राह क्यों है जटिल

सरकार के लिए ‘एक देश,एक चुनाव’ के मुद्दे पर सियासी राह इसलिए मुश्किल मानी जा रही है क्योंकि इंडिया गठबंधन में शामिल दल पूरी मजबूती के साथ सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस के साथ ही डीएमके,टीएमसी, समाजवादी पार्टी,आम आदमी पार्टी और माकपा की ओर से सरकार के इस कदम का विरोध किया जा रहा है।

मोदी सरकार की ओर से अन्य राजनीतिक दलों को रजामंद करने का दावा जरूर किया जा रहा है मगर यह आसान साबित नहीं होगा। विपक्ष भी इस मुद्दे पर एनडीए की रणनीति को विफल करने की कोशिश में जुटा हुआ है। इसी कारण सरकार के लिए आगे की राह जटिल मानी जा रही है।

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