पाक एजेंसियां सोशल मीडिया के मार्फत कश्मीरी युवकों को चरमपंथ के मार्ग पर धकेल रही हैं : सेना

सेना के एक कमांडर ने सोमवार को कहा कि नियंत्रण रेखा के पार (एलओसी) से आतंकवादियों की घुसपैठ कराने में विफल रहने पर पाकिस्तानी एजेंसियां कश्मीरी युवकों को चरमपंथी बनाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रही हैं

Update: 2019-05-20 16:33 GMT

उधमपुर: सेना के एक कमांडर ने सोमवार को कहा कि नियंत्रण रेखा के पार (एलओसी) से आतंकवादियों की घुसपैठ कराने में विफल रहने पर पाकिस्तानी एजेंसियां कश्मीरी युवकों को चरमपंथी बनाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रही हैं और जनवरी से अब तक 40 लोग आतंकवाद से जुड़ चुके हैं।

उत्तरी कमान के जनरल अफसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने कहा,‘‘पाकिस्तान इसे ( को) स्थानीय आंदोलन दिखाने की कोशिश में लगातार जुटा हुआ है। (लेकिन) भारतीय सेना की प्रभावी आतंकवाद रोधी ग्रिड की वजह से वे विफल नजर आ रहे हैं।’’

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उन्होंने कहा कि स्थानीय भर्ती अब भी चिंता का विषय है लेकिन युवक भी महसूस कर रहे हैं कि उन्हें पाकिस्तानी एजेंसियों के लिए बलि का बकरा नहीं बनना चाहिए।

सिंह ने कश्मीर में आतंकवादी संगठनों द्वारा भर्ती करने के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘ नियंत्रण रेखा के पार से सफल घुसपैठ एक तरह से बड़ी मुश्किल हो गयी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ अतएव, आतंकवाद जारी रखने के लिए वह (पाकिस्तान) चाहता है कि स्थानीय उपस्थिति बढ़े।’’

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सैन्य कमांडर ने कहा, ‘‘स्थानीय भर्ती हम सभी के लिए चिंता का विषय है। पिछले साल 217 स्थानीय युवकों ने आतंकवाद का मार्ग अपना लिया था। इस साल संख्या काफी घट गयी है। अब तक केवल 40 ऐसे युवक हैं जिन्होंने हथियार उठाए हैं।’’

सेना ने कहा कि गुमराह युवकों के परिवारों और शिक्षकों से संपर्क के उसके कार्यक्रमों के चलते बड़ी संख्या में ऐसे लोग समाज की मुख्यधारा में लौट आए हैं ।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार आतंकवाद से जुड़ने वाले युवकों की संख्या वर्ष 2016 से लगातार बढ़ रही है। 2015 में 66 युवकों ने और 2014 में 53 युवकों ने आतंकवाद का मार्ग अपना लिया था। वर्ष 2017 में 126 स्थानीय लोग आतंकवाद का हिस्सा बन गये थे।

सेना का कहना है कि दक्षिण कश्मीर के चार जिले- पुलवामा, शोपियां, कुलगाम और अनंतनाग आतंकवादियों के लिए अनुकूल स्थान माने जाते हैं क्योंकि वहां के कई युवक आतंकवादी बन चुके हैं।

हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर ए तैयबा जैसे संगठनों को यहां अधिक रंगरूट मिल जाते हैं।

आंकड़े के हिसाब से वर्ष 2018 में 217 आतंकी रंगरूटों में से 154 दक्षिण कश्मीर से थे। सबसे ज्यादा 69 पुलवामा से थे।

सैन्य कमांडर ने कहा , ‘‘मुझे पक्का यकीन है कि सभी संबंधित पक्षों की मदद से हम आने वाले समय में इस प्रवृति (स्थानीय युवकों के आतंकवाद से जुड़ने) को थाम लेने में कामयाब हो जायेंगे।’’ \

(भाषा)

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