कभी कांपा था पाकिस्तान इस प्रधानमंत्री से, आज है इनकी पुण्यतिथि

मोरारजी का पूरा नाम मोरारजी रणछोड़जी देसाई था। वह 1977 से लेकर 1979 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। वो देश के चौथे और पहले गैर कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री थे। लेकिन इससे इतर वह एकमात्र ऐसी शख्सियत थे जिसे भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न व पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशाने पाकिस्तान दोनो से सम्मानित किया गया।

Update: 2020-04-10 10:27 GMT

देश के पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई वैसे तो अपनी सरलता और सहजता के लिए मशहूर रहे हैं लेकिन उनका क्रोध भी बहुत जबर्दस्त था हालांकि पाकिस्तान ने बाद में उन्हें अपने यहां के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा लेकिन उनके क्रोध की झलक उस समय देखने को मिली थी जब एक मीटिंग में उन्हें पाकिस्तान द्वारा परमाणु बम बनाने की सूचना अमेरिका ने साझा की तो वो भभक उठे और पाकिस्तान को बर्बाद कर देने तक की चेतावनी दे डाली।

मोरारजीभाई देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली नामक स्थान पर हुआ था और निधन 10 अप्रैल 1995 में मुंबई में हुआ।

वैसे तो उनके शासनकाल में पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में उल्लेखनीय सुधार हुआ था और यहां तक कहा गया था कि यदि वह कुछ समय तक और प्रधानमंत्री रह गए होते तो दोनों देशों के संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जाते।

मोरारजी का पूरा नाम मोरारजी रणछोड़जी देसाई था। वह 1977 से लेकर 1979 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। वो देश के चौथे और पहले गैर कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री थे। लेकिन इससे इतर वह एकमात्र ऐसी शख्सियत थे जिसे भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न व पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशाने पाकिस्तान दोनो से सम्मानित किया गया।

गांधी के आह्वान पर छोड़ दी थी नौकरी

मोरारजी देसाई बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान ये करीब 12 वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर रहे, लेकिन महात्मा गांधी से प्रेरित होकर वो 1930 में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. 1931 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ले ली।

1952 में मोरारजी देसाई को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया था। देश की राजनीति में वह लगातार सक्रिय भूमिका निभाते रहे। जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में मोरारजी गृहमंत्री के पद पर रहे, इसके बाद इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में वो उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री रहे।

महात्मा गांधी के सच्चे अनुयाई के रूप में वह तानाशाही की प्रवृत्ति के हमेशा विरोधी रहे। 1969 में जब इंदिरा गांधी ने उनसे वित्तमंत्रालय छीनकर 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तो उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस सिंडिकेट के तहत इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर्गेनाइजेशन) की स्थापना कर दी। हालांकि बाद में वह फिर कांग्रेस में आ गए लेकिन इंदिरा गांधी ने जब इमरजेंसी लगाई तो उन्होंने इसका फिर आगे बढ़कर विरोध किया था और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जब सामूहिक विपक्षी एकजुटता में जनता पार्टी बनी तो उन्होंने उसका नेतृत्व किया। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई तो उन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला।

मोरारजी के लिए देशहित सर्वोपरि था

70 के दशक में भारत-पाक युद्ध के कारण और पूर्वी बंगलादेश के आजाद होने के कारण दोनो देशों के संबंध बहुत अधिक खराब थे। मोरारजी देसाई ने भारत पाक संबंध सुधारने का प्रयास किया हालांकि बाद में उनपर यह आरोप लगा कि उन्होंने भारत की खुफिया जानकारी पाकिस्तान को दी थी लेकिन एक घटनाक्रम से यह बात तो साबित होती है कि मोरारजी देसाई पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते सुधारना चाहते थे, लेकिन देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता से वो किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं थे। यह बात भी प्रमाणित है।

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पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि ‘अगर कुछ भी होता है तो तुम जिम्मेदार होगे. मैं ऐसा शख्स नहीं हूं, जो सिर्फ बातें करता है. मैं एक्शन लेता हूं।’ इसी तरह एक बार उन्होंने एक अमेरिकी अधिकारी से भी कहा था कि ‘अगर पाकिस्तान के पास परमाणु बम है तो हम उसे बर्बाद कर देंगे.’ इससे यह बात साबित होती है कि मोरारजी देसाई के लिए देशहित सर्वोपरि था। 1986 में पाकिस्तान ने मोरारजी देसाई को निशान-ए-पाकिस्तान सम्मान से सम्मानित किया और 1991 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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