Pandit Jasraj: जसरंगी-जुगलबंदी' ही पंडित जसराज को बनाती है अलहदा क़िस्म का फनकार
Pandit Jasraj Birth Anniversary: नंदोत्सव के दिन से तबला छोड़ जिस गायकी की डोर पंडित जसराज ने थामी, उसने उन्हें नंद के लाल श्रीकृष्ण की तरह ‘रसराज’ बना दिया।
Pandit Jasraj Birth Anniversary: सुसज्जित मंच पर एक ओर मां सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख प्रज्वलित होती ज्योति वहीं कला के चितेरे शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति देते दो महान फ़नकार, उनके राग अलग, रागों का वक़्त अलग, उनका स्केल अलग, दोनों की पिचिंग यानी कि जिस सुर से गाना शुरू किया, वह जगह अलग, उनकी आवाज़ें अलग, लेकिन क्या मज़ाल है कि जुगलबंदी के बीच कहीं भी बाल बराबर भी फर्क की गुंजाइश हो। लगभग एक घंटे तक लगातार मंच प्रस्तुति में कुछ भी 'अलग-सा' कानों को महसूस भर हो जाए। सुर, लय, अलाप, मुर्कियां हर चीज़ एक धागे में अलग रंग के मोतियों की तरह आपस में एक-दूसरे से गुथी हुई सी। हर मुंह से वाह, हर हाथ से दाद। यही तो खूबी थी 'जसरंगी-जुगलबंदी' की। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अज़ीम फ़नकार पंडित जसराज की बनाई हुई 'जसरंगी-जुगलबंदी' ही पंडित जसराज को अलहदा क़िस्म का फनकार बनाती थी।
ओम-अल्लाह-ओम' का जाप भी मंच पर करते थे
जो अपनी कमाल-संगीतकारी से सुनने वालों के कानों में 'नव-रस' घोला करते थे वह थे पंडित जसराज, जिनकी हर संगीत प्रस्तुति की शुरुआत 'मंगलम् भगवान विष्णु, मंगलम् गरुणध्वज:' के जप से, श्लोक से, होती थी। वही पंडित जसराज, जो कभी मंच पर ही 'ओम-अल्लाह-ओम' का जाप करते हुए भी दिखाई देते थे। 'मेरो अल्लाह मेहरबान' की टेर लगाते सुनाई देते थे। वह पंडित जसराज, जिन्होंने तीन-चार साल की उम्र में ही तय कर लिया था कि आगे की ज़िंदगी संगीत का हमराह बनकर ही गुजारनी है।
बेगम अख़्तर की ग़ज़ल ने इन्हें संगीत का दीवाना बनाया
पंडित जी उस उम्र में हैदराबाद में रहा करते थे। वहीं, स्कूल जाते वक़्त उन्होंने रास्ते में, एक रेस्त्रां पर मशहूर गुलूकार बेगम अख़्तर की ग़ज़ल सुनी थी, 'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे'। वह दिन था कि सुर, संगीत उन्हें दीवाना ही बनाते चले । फिर और वे ख़ुद अपने सुनने वालों को। अलबत्ता, यही पंडित जी थे, जिन्हें एक मर्तबा लाहौर में किसी ने कह दिया था, 'तुम मरा चमड़ा बजाते हो जसराज. तुम गायकी के बारे में क्या जानो'। वाक़ि'आ ख़ुद पंडित जी की ज़ुबानी, 'बिना चोट लगे कोई आदमी अपना रस्ता नहीं बदलता है।
नंदोत्सव के दिन से तबला छोड़ जिस गायकी की डोर पंडित जसराज ने थामी, उसने उन्हें नंद के लाल श्रीकृष्ण की तरह 'रसराज' बना दिया। 'रसराज, पंडित जसराज'। इसी नाम से उनकी जीवनी भी लिखी गई है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने सबसे पहले कहा था 'रसराज'
साल-2013 में राज्यसभा टीवी को दिए इंटरव्यू में भी पंडित जसराज ने इस बात का ज़िक्र किया था कि 'हमारे जो पूर्व प्रधानमंत्री हैं अटल बिहारी बाजपेयी, उन्होंने मुझे सबसे पहले 'रसराज' कहा था कि "पंडित जी आप जसराज नहीं, आप तो रसराज हैं" यह मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सम्मान है, मैं मानता हूं'।
किस घराने से था नाता, क्या थी पंडितजसराज की उपलब्धियां
आपको बताते चलें कि पंडित जसराज एक भारतीय शास्त्रीय गायक थे। वह मेवाती घराने से सम्बंधित थे और 75 वर्षों तक उन्होंने अनवरत शास्त्रीय संगीत की सेवा कीं। अनगिनत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय यादगार प्रस्तुतियां दीं। जहां उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि, सम्मान और प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया।
पंडित जसराज की विरासत में शास्त्रीय और अर्ध-शास्त्रीय मुखर संगीत, भक्ति और शास्त्रीय संगीत, एल्बम और फिल्म साउंडट्रैक के यादगार प्रदर्शन शामिल हैं।
उन्हें हवेली संगीत जैसी विभिन्न शैलियों में नवाचारों और मेवाती घराने को लोकप्रिय बनाने के लिए भी जाना जाता है।
पंडित जसराज ने भारत, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में पेशेवरों और शौकिया और छात्रों को संगीत सिखाया.
17 अगस्त, 2020 को न्यू जर्सी में पंडित जसराज जी का निधन हुआ।
पंडित जसराज जी का पहला कार्यक्रम कब और कैसे मिला
जसराज ने 14 साल की उम्र में एक गायक के रूप में प्रशिक्षण शुरू किया, इससे पहले तक वे तबला वादक ही थे। जब उन्होने तबला त्यागा तो उस समय संगतकारों द्वारा सही व्यवहार नहीं किया गया। उन्होंने 22 साल की उम्र में गायक के रूप में अपना पहला स्टेज कॉन्सर्ट किया।
पंडित जसराज: पर्सनल लाइफ
1960 में, जसराज की मुलाकात फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से बॉम्बे में हुई और दो साल बाद 1962 में दोनों ने शादी कर ली। दंपति का एक बेटा शारंग देव पंडित और एक बेटी दुर्गा जसराज थी।
पंडित जसराज कल्चरल फाउंडेशन की कब हुई स्थापना
28 जनवरी, 2022 को, पंडित जसराज कल्चरल फाउंडेशन को दिवंगत भारतीय शास्त्रीय गायक पंडित जसराज की 92वीं जयंती के अवसर पर लॉन्च किया गया। पंडित जसराज कल्चरल फाउंडेशन की स्थापना पंडित जसराज के बेटे शारंग देव पंडित और उनकी बेटी दुर्गा जसराज ने की है। इस फाउंडेशन को भारत की राष्ट्रीय विरासत, कला और संस्कृति की रक्षा, संरक्षण, विकास और बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।
यह फाउंडेशन, नए उभरते हुये कलाकारों को सहयोग देकर, कलाकारों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए भी काम कर रहा है। इस फ़ाउंडेशन के माध्यम से संगीत के क्षेत्र में शिक्षा और शोध को भी आगे बढ़ाने का काम चल रहा हैं।
पंडित जसराज: पुरस्कार और सम्मान
1- 1975 में, उन्हें भारत में चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री मिला।
2- 1987 में, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, अभ्यास करने वाले कलाकारों को सर्वोच्च भारतीय मान्यता।
3- 1990 में, उन्हें भारत में तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण मिला।
4- 2000 में, उन्हें भारत में दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
5- 2008 में, उन्हें केरल राज्य सरकार द्वारा संगीतकारों के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान स्वाति संगीत पुरस्कारम मिला।
6- 2010 में, उन्हें संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप से सम्मानित किया गया, जिसे आधिकारिक तौर पर संगीत नाटक अकादमी रत्न सदास्य के रूप में जाना जाता है, संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रस्तुत प्रदर्शन कलाओं के लिए एक भारतीय सम्मान है। यह अकादमी द्वारा प्रदान किया जाने वाला "सबसे प्रतिष्ठित और दुर्लभ सम्मान" है और किसी भी समय 40 व्यक्तियों तक सीमित है।